सम्पादकीय

प्रेम गली है संकरी

Gulabi Jagat
16 March 2022 7:09 PM GMT
प्रेम गली है संकरी
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लगता है तेज़ी से बदलते इस युग में हमें प्रेम को नए अर्थ देने पड़ेंगे

लगता है तेज़ी से बदलते इस युग में हमें प्रेम को नए अर्थ देने पड़ेंगे। बहुत दिन तक शरीर से शरीर के मिलन और गर्म सांसों की अदला-बदली को हम प्रेम का सुनहरा फ्रेम देते रहे। कवि कर्म को प्रेमिल तितलियों के बहुरंगे पंखों के साथ बांधते रहे। लेकिन फिर जब जीवन के तराजू पर ये रंग-बिरंगे पंख टूट कर तुलने लगे तो इसमें सूफी काव्य से लेकर छायावाद और रहस्यवाद की ओट लेने का प्रयास भी किया गया। लेकिन आज प्रेम कैसा बेहाल हुआ जाता है। नारी स्वातंत्र्य और सशक्तिकरण के इस डिस्को रूप में घूंघट ओढ़ कर बैठा प्रेम का यह सकुचाता रूप घूंघट ओढ़ बैठा नज़र आता है। एक ओर राफेल विमान को उड़ाने के लिए महिला पायलट सामने आ रही हैं और दूसरी ओर दिल्ली के निर्भया कांड और हिमाचल के गुडि़या कांड की पुनरावृत्ति हाथरस और बलरामपुर कांड जैसे निर्मम दुष्कर्मी कांडों में हो रही है जिनमें जाति और धर्म का कटघरावादी राजनीतिकरण चुनाव लड़ने और वोट हथियाने का साधन बन रहा है।

लीजिए, वक्त बदलने के साथ-साथ प्रेम करने के पैमाने भी बदल गए। अब 'सजनी वही जो पिया मन भाए' की तरह घटना की जांच-पड़ताल वही जो खोजी को नेता बनाए, चुनाव जितवाए। सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचाए। सीढ़ी के शिखर तक पहुंचता व्यक्ति चिल्लाता है, 'नहीं, मैं अब और अन्याय नहीं होने दूंगा। दूध का दूध और पानी का पानी कर दूंगा।' दूध तो वंशवादी हो ऊंची मंजि़लों तक जाएगा और पानी झुग्गी-झोंपडि़यों में खैरात की तरह बंटेगा, बशर्ते कि उसमें इतना प्रदूषण न हो जाए कि चिकित्सा विशारद उसे कोरोना फैलाने का कारण ही बताने लगे। आप कहेंगे कि ऐसा असम व्यवहार तो सदियों से होता रहा है। आदमी को जूता बनाने की परंपरा आज की नहीं है। नहीं तो कार्ल मार्क्स दो सदी पहले 'दास कैपिटल' क्यों लिखते? परंतु लिखने के बाद उसके लिए खोखले भाषण देने की परंपरा तो आज से मकबूल हुई। अब तो लोगों को इस प्रक्रिया से इतना इश्क हो गया लगता है कि लोग प्रेम की परिभाषा बदल बैठे। इस रीति-नीति का पालन करो तो हथेली पर सरसों उगाने की कल्पना सच होती लगती है।
यही है आज का प्रेम? उसका कोई टकसाली रूप भी नहीं। वक्त बदलने के साथ इसे अपना रंग बदलते देर नहीं लगती। लेकिन इतना ही क्यों? अकबर इलाहाबादी की सुर में कहें तो यही कहेंगे कि हाकिम को रियाया की बहुत फिक्र ही नहीं, बहुत इश्क है, लेकिन अपना डिनर खाने के बाद। यह डिनर दुनिया भर में अभी प्रसारित हुआ रिश्वतखोरी का सूचकांक आपको बता सकता है कि इस देश के भद्र जनों के रिश्वतखोरी, लालफीताशाही और भ्रष्टाचार से इतना प्यार हो गया कि दुनिया के कम से कम छिहत्तर देश पिछले साल अगर इससे कम बेईमान थे तो इस बरस सतहत्तर देश आगे आ गए। पहले बरखुरदार की शादी के लिए लड़की तलाशते हुए इशारा किया जाता था कि आमदन तो ठीक है, ऊपर से कुछ बालाई भी हो जाती है। अब तो परिचय में बालाई आमदन का ब्यौरा पहले दिया जाता है। असल वेतन की खबर कौन पूछता है? अब इश्क उन लोगों से ही होता है जो जल्द से जल्द अपने आपको साइकिल से बदल कर बीएमडब्ल्यू में तबदील कर लें। शुरू से सुनते आए हैं कि प्रेम की गली अति सांकरी, जिसमें दो न समाए। प्रेमी और प्रेमिका एक रूप हो जाएं। यही है असली प्रेम। जनाब प्रेम की गली तो आज भी सांकरी है, लेकिन इतनी सांकरी भी नहीं कि जिसमें प्रेमी और उसकी आयातित गाड़ी न समा सके। हां, अगर प्रेमी उम्र भर अपनी फटीचर साइकिल पर भूतपूर्व प्रेमिका अर्थात् वर्तमान पत्नी के लिए अपने मैले थैले में सब्ज़ी ढोने का भविष्य दिखाए तो भला ऐसे प्रेमी के लिए इस संकरे प्रेम मार्ग पर चलने के लिए जगह कहां?
सुरेश सेठ


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