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- प्रेम गली है संकरी
लगता है तेज़ी से बदलते इस युग में हमें प्रेम को नए अर्थ देने पड़ेंगे। बहुत दिन तक शरीर से शरीर के मिलन और गर्म सांसों की अदला-बदली को हम प्रेम का सुनहरा फ्रेम देते रहे। कवि कर्म को प्रेमिल तितलियों के बहुरंगे पंखों के साथ बांधते रहे। लेकिन फिर जब जीवन के तराजू पर ये रंग-बिरंगे पंख टूट कर तुलने लगे तो इसमें सूफी काव्य से लेकर छायावाद और रहस्यवाद की ओट लेने का प्रयास भी किया गया। लेकिन आज प्रेम कैसा बेहाल हुआ जाता है। नारी स्वातंत्र्य और सशक्तिकरण के इस डिस्को रूप में घूंघट ओढ़ कर बैठा प्रेम का यह सकुचाता रूप घूंघट ओढ़ बैठा नज़र आता है। एक ओर राफेल विमान को उड़ाने के लिए महिला पायलट सामने आ रही हैं और दूसरी ओर दिल्ली के निर्भया कांड और हिमाचल के गुडि़या कांड की पुनरावृत्ति हाथरस और बलरामपुर कांड जैसे निर्मम दुष्कर्मी कांडों में हो रही है जिनमें जाति और धर्म का कटघरावादी राजनीतिकरण चुनाव लड़ने और वोट हथियाने का साधन बन रहा है।