सम्पादकीय

खोया, ठहरा, भगवान भरोसे देश!

Triveni
14 Aug 2021 4:04 AM GMT
खोया, ठहरा, भगवान भरोसे देश!
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कल 75वां स्वतंत्रता दिवस। तभी सोचना अनिवार्य है कि भारत का पचहतर वर्षों का सफर कैसा रहा?

कल 75वां स्वतंत्रता दिवस। तभी सोचना अनिवार्य है कि भारत का पचहतर वर्षों का सफर कैसा रहा? क्या सफर दिल-दिमाग की मौजूदा अवस्था में उमंग, उल्लास बनाए हुए है? क्या मंजिल का विश्वास और सुकून है? क्या नागरिकों के आजादी से उड़ने के अवसरों का आकाश खुला हुआ है? लोग पिंजरों में भयाकुल, गुलाम है या बेखौफ, उन्मुक्त और विश्वास से उड़ते हुए? इन सवालों पर समग्रता से 'गपशप' कॉलम में विश्लेषण संभव नहीं हैं। यह कॉलम तात्कालिकता लिए हुए है तो अभी यही सोचना चाहिए कि कल लालकिले पर प्रधानमंत्री के भाषण, रिपोर्ट कार्ड और घोषणाओं में जो होगा वह क्या मौजूदा वक्त का सत्य लिए होगा? संभव ही नहीं है। इसलिए कि देश अलग रियलिटी में जी रहा है और प्रधानमंत्री अलग रियलिटी में! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अच्छे दिन, खुशहाल भारत, दौड़ते भारत, टोक्यों औलपिंक से प्रमाणित गोल्‍डन भारत, विश्व गुरू भारत, हिंदू शूरवीरता वाले भारत की छप्पर इंची छाती बतलाते हुए होंगे जबकि 140 करोड लोग दिन-रात इन ख्यालों में है कि करें तो क्या करें! कैसे जीएंगे? पैसा कहां से आएगा? काम-धंधा कब तक ऐसे चलेगा? बच्चों की पढ़ाई-रोजगार का क्या होगा? बीमारी- महामारी कब खत्म होगी? कहीं कोरोना की तीसरी लहर तो नहीं आएगी? कब वक्त वापिस सामान्य होगा?

कईयों का मानना हो सकता है कि भाजपा को वोट देने वाले, नरेंद्र मोदी के दीवाने 20-22 करोड मतदाताओं, नागरिकों का वैसे ही सोचना है जैसे नरेंद्र मोदी का है। मतलब अच्छे दिन है। भारत विश्व शक्ति, विश्व गुरू और हिंदू गर्व-गौरव का साहसी हिंदू राष्ट्र बन गया है! लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता। भाजपा के वोट तो दूर संघ-भाजपा के नेता-कार्यकर्ता भी धुंध में ठहरे-ठिठके हुए है। तभी पिछड़ी जातियों, ओबीसी आरक्षण जैसे उन झूनझूनों को अपनाने की मजबूरी में है जिससे पिछड़ी जातियों में यह नैरेटिव बन सकें कि देखों नरेंद्र मोदी पिछड़ों का भारत बना डाल रहे है। अच्छे दिन अब पिछड़ों के!
सो हिंदू के, भारत के अच्छे दिनों की बजाय पिछड़ी जातियों के अच्छे दिनों का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले लाल किले से नैरेटिव बनवाएं लेकिन। उससे 140 करोड़ों लोगों की सामूहिकता में कोई उल्लास, उमंग नहीं बनना है। 2014 से 2021 के सात सालों का फर्क है जो संघ-शक्ति, हिंदू शक्ति अब जात की राजनीति में कनवर्टेड है और धीरे-धीरे भाजपा भी उसी राजनीति में देश को ले आई है जिसके गुरू कभी लालू यादव थे।
याद करें, लालू प्रसाद यादव के पंद्रह सालों में बिहार का क्या अनुभव था? क्या बिहार का वह वक्त खोया, ठहरा, और भगवान भरोसे (चाहे तो लालू यादव भरोसे माने) प्रदेश का नहीं था? वे भी डराते हुए थे। आबादी के एक तिहाई हिंदू- मुसलमान जयकारा लगाते हुए तो बाकि लोग डरे, बुझे, निराश और बिहार से भागते हुए! तब बिहार में काम-धंधा, चला आ रहा रोजगार, आर्थिकी सब साल-दर-साल जर्जर और व्यवस्था-प्रशासन के नाम पर या तो मुख्यमंत्री या अफसरशाही की मनमर्जी! लालू की पूरी पार्टी, सारे नेता, सामाजिक न्याय का पूरा दर्शन लालू यादव के दरवाजे मत्था ठेके और जयकारा लगाते हुए था।
वही आज का भारत है। सवाल है भारत की आजादी का धीरे-धीरे, साल-दर-साल की यात्रा के बाद आज जो प्लेटफार्म है वह क्या 1947 या मौजूदा राज के ही 2014 की पंद्रह अगस्त जैसी उम्मीद, उत्साह, उमंग, उल्लास को लिए हुए है? 140 करोड़ लोगों की मनोदशा के बाजे बजे हुए है या जोश है? जवाब जगजाहिर है। लोगों का अनुभव, बाजार की चहल-पहल, राजनीति की दशा-दिशा, संसद संचालन, दुनिया की एजेंसियों-संस्थाओं की रपटों, आर्थिक आंकड़ों और 80 करोड लोगों के पांच किलों आटे-दाल, उज्जवला गैस वाले जीवन के खुद सरकारी प्रोपेंगेड़ा से जाहिर है। भारत और 140 करोड लोगों का वैसा जीना है ही नहीं जैसा 2014 में था! सत्य यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार बहुमत और डंडे के तमाम औजारों के बावजूद खुद भी जैसे-तैसे जीते हुए है। भगवान भरोसे है। घटनाओं पर अब नरेंद्र मोदी का वह नियंत्रण नहीं है जो 2014-15 में था। सो न केवल देश, जनता का जीना ठहरा, खोया हुआ व भाग्य भरोसे है बल्कि मोदी सरकार का भी वैसे ही जीना है। इसलिए नोट करके रखें कि 15 अगस्त 2021 के दिन प्रधानमंत्री मोदी आजादी की हीरक जयंती के हवाले पचहतर साला जश्न का चाहे जो आव्हान करें, अगला वर्ष लोगों को ज्यादा बेजान बनाने वाला होगा।


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