- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- खोया, ठहरा, भगवान...
कल 75वां स्वतंत्रता दिवस। तभी सोचना अनिवार्य है कि भारत का पचहतर वर्षों का सफर कैसा रहा? क्या सफर दिल-दिमाग की मौजूदा अवस्था में उमंग, उल्लास बनाए हुए है? क्या मंजिल का विश्वास और सुकून है? क्या नागरिकों के आजादी से उड़ने के अवसरों का आकाश खुला हुआ है? लोग पिंजरों में भयाकुल, गुलाम है या बेखौफ, उन्मुक्त और विश्वास से उड़ते हुए? इन सवालों पर समग्रता से 'गपशप' कॉलम में विश्लेषण संभव नहीं हैं। यह कॉलम तात्कालिकता लिए हुए है तो अभी यही सोचना चाहिए कि कल लालकिले पर प्रधानमंत्री के भाषण, रिपोर्ट कार्ड और घोषणाओं में जो होगा वह क्या मौजूदा वक्त का सत्य लिए होगा? संभव ही नहीं है। इसलिए कि देश अलग रियलिटी में जी रहा है और प्रधानमंत्री अलग रियलिटी में! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अच्छे दिन, खुशहाल भारत, दौड़ते भारत, टोक्यों औलपिंक से प्रमाणित गोल्डन भारत, विश्व गुरू भारत, हिंदू शूरवीरता वाले भारत की छप्पर इंची छाती बतलाते हुए होंगे जबकि 140 करोड लोग दिन-रात इन ख्यालों में है कि करें तो क्या करें! कैसे जीएंगे? पैसा कहां से आएगा? काम-धंधा कब तक ऐसे चलेगा? बच्चों की पढ़ाई-रोजगार का क्या होगा? बीमारी- महामारी कब खत्म होगी? कहीं कोरोना की तीसरी लहर तो नहीं आएगी? कब वक्त वापिस सामान्य होगा?