सम्पादकीय

अविश्वास प्रस्ताव में हार: यह इमरान की राजनीति का अंत नहीं, आगे की रणनीति पर कयासबाजी

Neha Dani
11 April 2022 2:01 AM GMT
अविश्वास प्रस्ताव में हार: यह इमरान की राजनीति का अंत नहीं, आगे की रणनीति पर कयासबाजी
x
यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आगे की राजनीति के लिए वह खुद को किस तरह तैयार करते हैं।

एक चुने हुए प्रधानमंत्री के तौर पर इमरान खान की पारी का तभी अंत हो गया था, जब पाक सेना को एहसास हुआ कि वह उनके लिए बोझ बन गए हैं। इमरान खान 2018 में पाकिस्तान का प्रधानमंत्री तब बने थे, जब उनकी पार्टी पीटीआई (पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ) ने देश की दो स्थापित राजनीतिक पार्टियों-पीपीपी (पाकिस्तान पीपल्स पार्टी) तथा पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज (पीएमएल नवाज) को पीछे छोड़कर नेशनल असेंबली में बहुमत हासिल किया था।

हालांकि तब व्यापक तौर पर यह माना गया था कि सेना ने इमरान और उनकी पार्टी की मदद की थी। इमरान 'नया पाकिस्तान' गढ़ने के वादे के साथ सत्ता में आए थे। पर दुर्भाग्य से ऐसा कुछ तो वह नहीं ही कर पाए, उल्टे देश की आर्थिक स्थिति भी बदतर होती चली गई। वैसे में, हताश इमरान ने उन नीतियों पर अमल करना शुरू कर किया, जो सेना को पसंद नहीं थी। इमरान ने सत्ता में बने रहने के लिए तमाम हथकंडे अपनाए, पर सेना का भरोसा खो चुकने के बाद उनका प्रधानमंत्री बने रहना संभव नहीं था।
विपक्षी पार्टियों ने सुनहरा मौका देखकर नेशनल असेंबली में इमरान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने पर विचार किया। विगत 28 मार्च को पीएमएल (एन) के शहबाज शरीफ ने, जो पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के छोटे भाई और संभावित अगले प्रधानमंत्री हैं, संसद में अविश्वास प्रस्ताव रखा। इमरान सरकार के बारे में दीवार पर लिखी इबारत तभी बहुत स्पष्ट हो गई थी, जब पीटीआई के एक सहयोगी दल ने कहा था कि उसके सात सांसद विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट देंगे। सत्तारूढ़ दल के एक दर्जन से अधिक सदस्यों ने भी वोटिंग के दौरान पाला बदलने की बात पहले कह दी थी। सांसदों के इस तरह पाला बदलने से पीटीआई स्पष्ट तौर पर अल्पमत में आ गई थी। इमरान खान ने अविश्वास प्रस्ताव को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। जबकि शीर्ष अदालत ने ही नेशनल असेंबली के स्पीकर को अविश्वास प्रस्ताव शुरू करने के लिए कहा था।
शनिवार की रात को अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया शुरू होने से पहले हुई कैबिनेट की बैठक में इमरान खान ने इस्तीफा न देने का फैसला किया, जबकि उनकी सरकार साफ तौर पर अल्पमत में दिख रही थी। और अविश्वास प्रस्ताव शुरू होने के कुछ मिनट पहले नेशनल असेंबली के स्पीकर असद कैसर और डिप्टी स्पीकर कासिम सूरी ने इस्तीफा दे दिया। इससे साफ हो गया कि वे इमरान खान और उनकी सरकार के मददगार थे, जबकि ऐसे महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों से ईमानदार और निरपेक्ष होने की उम्मीद की जाती है। अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया को बाधित करने के कई प्रयासों के बावजूद प्रक्रिया शुरू हुई और 342 सदस्यीय सदन में 174 सांसद अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में थे। दूसरी ओर, वोटिंग के दौरान सत्तारूढ़ दल के सांसद सदन से गायब थे। इस तरह अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों की तरह इमरान खान भी पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा करने में सफल नहीं हो पाए। यही नहीं, पाकिस्तान में अविश्वास प्रस्ताव हारकर सत्ता गंवाने वाले वह पहले प्रधानमंत्री हो गए हैं। विपक्ष के नेता शहबाज शरीफ के अगले प्रधानमंत्री बनने की बात है। लेकिन उनके आने से पाकिस्तान में राजनीतिक स्थिरता आने की उम्मीद नहीं कर सकते।
इमरान खान को सत्ता से बाहर करने के लिए दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने हाथ मिलाया, पर यह मानना मुश्किल है कि सत्ता चलाने के दौरान भी इन दोनों पार्टियों के बीच ऐसी ही दोस्ती रहेगी। अलबत्ता मौजूदा परिदृश्य में यह बड़ी राजनीतिक चुनौती नहीं साबित होने वाली, क्योंकि अगस्त, 2023 तक वहां चुनाव होने वाले हैं। दूसरी ओर, सत्ता से बाहर हुए इमरान खान जल्दी चुनाव चाहते हैं। आने वाले दिनों में होने वाले चुनाव में वह पीड़ित कार्ड चलना चाहते हैं, ताकि उन्हें मतदाताओं की सहानुभूति मिले। वह उम्मीद कर रहे हैं कि इससे अगला चुनाव जीतना उनके लिए आसान हो जाएगा। हालांकि चुनाव में स्थिति उनके लिए उतनी सहज नहीं होने वाली, जितनी वह मान रहे हैं।
इसके अलावा इमरान खान पिछले काफी समय से उन्हें हटाने की बड़ी विदेशी साजिश की भी बात करते आए हैं। उनका आरोप है कि अमेरिका ने उन्हें और उनकी पार्टी को सत्ता से बाहर करने के लिए बड़ी साजिश रची है। हालांकि अमेरिका लगातार इस आरोप का खंडन करता रहा है, लेकिन इमरान का कहना है कि उन्हें हटाकर पाकिस्तान में एक आयातित सरकार लाने की बात चल रही है। वह खुद को पाकिस्तान के उद्धारक और इसकी संप्रभुता के रक्षक के तौर पर पेश करते आए हैं। उनका यह भी आरोप है कि पश्चिमी ताकतें पाकिस्तान में ऐसी विदेश नीति लागू करने की साजिश रच रही हैं, जो उनके अपने हित में हो। इस संदर्भ में आश्चर्यजनक रूप से उन्होंने भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की एक से अधिक बार प्रशंसा की है, जो भारतीय नागरिकों के हित में है। हालांकि इमरान की इन टिप्पणियों का कोई व्यापक महत्व नहीं है। दरअसल अपनी सरकार बचाने और अपने प्रति सहानुभूति हासिल करने के लिए उन्होंने इस तरह की टिप्पणियां की थीं।
इमरान ने अपने संबोधन में समर्थकों से सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करने के लिए कहा है। लिहाजा आने वाले दिनों में वहां की सड़कों पर इमरान के पक्ष और विपक्ष में प्रदर्शन देखे जाएं, तो आश्चर्य नहीं होगा। इससे पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ेगी ही। लेकिन इससे भारत को बहुत परेशान होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि पाकिस्तान की विदेश और सुरक्षा नीति उसकी ताकतवर सेना द्वारा संचालित होती है। इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि वर्ष 2021 में लागू हुए संघर्ष विराम के बाद, जिसके पीछे पाक सेना की भूमिका थी, भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थिति थोड़ी सुधरी है। बल्कि हो सकता है कि नई सरकार आने के बाद सीमा पर स्थिति बेहतर हो, क्योंकि पाक सेना अभी ऐसा ही चाहती है। अविश्वास प्रस्ताव में हार इमरान खान के लिए निश्चित तौर पर एक बड़ा झटका है, लेकिन इसे उनके राजनीतिक भविष्य का अंत नहीं मानना चाहिए। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आगे की राजनीति के लिए वह खुद को किस तरह तैयार करते हैं।

सोर्स: अमर उजाला

Next Story