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By: divyahimachal
क्रिकेट की टीम इंडिया ने लगातार छठी बार बड़े टूर्नामेंट का फाइनल हारा है। विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप के फाइनल में ऑस्टे्रलिया ने भारत को 209 रनों से करारी पराजय दी है। खेल में हार-जीत चिंता का सबब नहीं होना चाहिए, लेकिन पराजय ही जब मनोवृत्ति बन जाए और टीम विश्व कप तथा वैश्विक मैचों में पराजय की सोच के साथ ही उतरने लगे, तो कईतरफा सवाल उठने लगते हैं। करोड़ों रुपए का जो खर्च खिलाडिय़ों पर किया जाता रहा है, वह भी फिजूल लगता है। सवाल ये भी किए जाने चाहिए कि क्या भारत में क्रिकेट की नई पीढ़ी ने जन्म लेना ही छोड़ दिया है अथवा हमारा उस पर फोकस ही नहीं है? ऑस्टे्रलिया एकदिनी क्रिकेट का पांच बार का विश्व चैम्पियन है। वह 2021 में टी-20 क्रिकेट के फटाफट प्रारूप का भी विश्व चैम्पियन बना और अब पांच दिनी टेस्ट क्रिकेट का भी ‘बादशाह’ है। कुछ माह पहले ऑस्टे्रलिया की यही भरी-पूरी टीम भारत के प्रवास पर थी, जब टीम इंडिया ने एकतरफा मुकाबलों में उसे पराजित कर शृंखला जीती थी। अब लंदन के ‘ओवल’ मैदान में हम एकदम फिसड्डी क्यों रहे? क्या फाइनल मुकाबले भी इस तरह एकतरफा होते हैं? दरअसल हमारे क्रिकेटरों की मानसिकता ऐसी हो चुकी है कि वे अपने खेल की आलोचना पसंद ही नहीं करते। कप्तान रोहित शर्मा, पूर्व कप्तान एवं 28 शतकों वाले बल्लेबाज विराट कोहली और टीम इंडिया की ‘नई दीवार’ के विशेषण वाले चेतेश्वर पुजारा, यकीनन, महान बल्लेबाज रहे हैं, लेकिन आज बड़े मैचों में वे नर्वस होकर नाकाम क्यों रहे हैं? वे खेलते हुए नौसीखिया लगते हैं और अक्सर गलत शॉट पर आउट होते हैं। हम गलत हो सकते हैं, लेकिन हमारा सरोकार राष्ट्रीय है कि टीम इंडिया 2013 के बाद से लगातार हार क्यों रही है और टीम एक भी आईसीसी ट्रॉफी क्यों नहीं जीत पाई है? बड़े मुकाबलों में 10,15, 20 या कभी-कभार अद्र्धशतक बनाने वाले बल्लेबाजों को, कमोबेश, ‘महान’ श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
इस पर हमारे क्रिकेटरों का अहंकार ऐसा है कि वे पै्रक्टिस करना ‘तौहीन’ समझते हैं और मैदान पर, खेल शुरू होने के, औसतन 30-45 मिनट पहले ही उतरना पसंद करते हैं। ऑस्टे्रलिया के खिलाडिय़ों ने, भारत में शृंखला हारने के बाद, बल्लेबाजी, गेंदबाजी और कैच का लगातार अभ्यास किया। अधिकतर क्रिकेटर ने आईपीएल खेलने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। टीम इंडिया के ज्यादातर क्रिकेटरों ने जमकर आईपीएल खेला और जाहिर है कि अभ्यास भी किया होगा। कमोबेश गेंदबाजी की धार, लाइन, लेंथ, गति आदि तो सटीक रहनी चाहिए। बल्लेबाजी जरूर प्रभावित होती है, लेकिन ‘महान’ बल्लेबाज तो ‘महान’ ही होते हैं! टीम इंडिया के ‘पुराने चावल’ अजिंक्या रहाणे ने ही कंगारुओं का जमकर, डटकर, मुकाबला किया। दरअसल हमारे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटरों के खेल में निरंतरता की जबरदस्त कमी दिखाई देती रही है। तेज गेंदबाजों में शमी और सिराज पर ही भरोसा करना पड़ा। उमेश यादव तो टीम पर ‘पुराने बोझ’ हैं। कभी श्रेष्ठ गेंदबाज रहे होंगे! क्रिकेट के महान विशेषज्ञों का स्पष्ट आकलन है कि ओवल की पिच 469 रन बनाने वाली नहीं थी, लेकिन टीम इंडिया ने ऑस्टे्रलिया के बल्लेबाजों को दो-दो शतक समेत ढेरों रन बटोरने दिए। भारत की हार की प्रस्तावना यहीं से लिख दी गई थी। जिस गेंदबाज आर. अश्विन ने करीब 475 विकेट लिए हों और कई मैचों में टीम इंडिया को जिताने का श्रेय जिसे कई बार मिला हो, उसे बाहर बिठा कर रखा गया। यह रणनीति और दलील समझ में नहीं आती। ऐसा कई बार हो चुका है। इसके अलावा, टीम इंडिया के विकेटकीपर के. भरत एक अंतराल से खेल रहे हैं। वह लगातार रन बनाने में अक्षम और नाकाम रहे हैं। क्या इतने बड़े देश में एक प्रशिक्षित विकेटकीपर का भी संकट है? बहरहाल इसी साल के अंत में एकदिनी क्रिकेट का विश्व कप भारत में ही होना है। उसमें भारत किस तरह का चैम्पियन रहेगा, यह देश जरूर देखेगा।
Rani Sahu
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