- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- म्यूजियम में प्रभु
x
मौजूदा दौर में कनफ्यूज होना दरअसल हमारी संगति और असंगति का असर नहीं है, बल्कि इसके फायदे देखकर हम अक्सर ऐसी स्थिति खुद ही ग्रहण कर लेते हैं। हम कनफ्यूजड रह कर भी कई बार बड़े काम कर लेते हैं। मसलन हम जिस पड़ोसी पर भरोसा करते हैं, उसको लेकर भी कनफ्यूजड रहते हैं और जिसे रिश्तों में अपना मान चुके होते हैं, वहां भी कनफ्यूजड होते हैं। हम खाएं या न खाएं, कितना खाएं या कहां न खाएं, इसे लेकर भी कनफ्यूजड हैं, इसलिए अधिकतर लोग ऐसी उलझन में ईमानदार घोषित होने लगे हैं। वैसे भी ईमानदारी और नैतिकता के चक्कर में कनफ्यूजड होना लाजिमी है, इसलिए जो अपनी ही उलझनों के शिकार हैं, वे थक-हार कर इस देश के सामने ईमानदार बने ही रह जाते हैं। हम करें भी तो क्या करें। चारों तरफ देश की तरक्की कई बार कनफ्यूज कर देती है, तो कई बार अदालती फैसलों के सही होने पर उलझन बढ़ जाती है। कमोबेश हर आदमी उलझनों से बचने के लिए भगवान की शरण तलाश रहा है, लेकिन ईश्वर पाने को लेकर सबसे ज्यादा कनफ्यूजड ऐसे लोग हैं जिन्हें तरक्की के लिए न पूजा और न ही परिश्रम चाहिए। उनके लिए भगवान तो वे खुद ही हैं, क्योंकि जो वे कमा रहे हैं, इसके लिए भगवान तो कतई जिम्मेदार नहीं हो सकता।
ऐसे लोग या जो लोग अपनी सफलता का ताज खुद पहनना जान गए, वे दरअसल नंबर वन हैं। उलझन से मुक्त होने के लिए नंबर वन होना जरूरी हो जाता है। हर नंबर वन के पीछे सफलता का राज यही है कि वे कनफ्यूज नहीं हुए। इसलिए शराब भी अब बिकती है नंबर वन बनकर। राजनीतिक रैलियां नंबर बन बनकर जो दिखा रही हैं, वहां मतदाता चिंतन इसलिए नहीं करता कि कहीं कनफ्यूजन न हो जाए। जिस तरह देश में धार्मिक ज्ञान बढ़ा है या ऐसे विषयों में वांछित फिल्में आ रही हैं, देवता कनफ्यूजड हैं। अचानक पूजा रूम में आराध्य प्रभु कनफ्यूजड दिखे। मैंने सोचा मेरी भक्ति से प्रभु कहीं उलझन में न पड़ गए हों, क्योंकि मैं किसलिए आराधना कर रहा हूं, इसी उलझन में रहा हूं। जैसे समाज, देश और जेब चल रही है, हर वक्त भक्ति की शक्ति में सुबह से शाम प्रभु पर ही तो सारा दारोमदार है। बेटा नंबर वन नौकरी, तो बेटी नंबर वन पति मांग रही है। नंबर वन की रेस में लगभग टूट चुकी पत्नी को अब भी उम्मीद है कि उसकी ही पूजा नंबर वन है, इसलिए प्रभु के नाम पर घंटी बजा रही है।
प्रभु यह सोच कर विचलित हैं कि वह नंबर वन आशीर्वाद हमें दे देंगे, तो फिर जहां भव्य मंदिर बन रहे हैं, वहां के लिए क्या बचा पाएंगे। उधर प्रभु को हालिया सालों में एक नई कैटेगिरी को नंबर वन आशीर्वाद देने का दबाव बढ़ता जा रहा है। भगवान भी अपनी नंबर वन की ब्रांडिंग से प्रसन्न हैं और चाहते हैं कि ऐसी फिल्में अगर बनें तो उन्हें नंबर वन की सफलता भी दिलाएं, लेकिन फिल्म वाले जिस तीव्रता से इनकी संख्या बढ़ा रहे हैं या धन कमाने के फार्मूले लगा रहे हैं, उससे भगवान कनफ्यूजड हंै। एक फिल्म को अपने नाम की सफलता देते हैं, तो दूसरी तैयार हो जाती है। भगवान इस उलझन में भी हैं कि उनसे ज्यादा फिल्म निर्माता अपना अपना अवतार बदल रहे हैं, तो उन्हें भी आखिर कितनी बार भेष बदलना पड़ेगा। प्रभु तब से गुस्से में हैं जबसे उन्होंने देखा है कि वाहनों के पीछे उनकी तस्वीर कितने आक्रोश में है। मैंने कहा, ‘प्रभु आप हमारी तरह रहें, गुस्से में न आएं। जनता नहीं चाहती कि आप नंबर वन की रेस में हमें छोडक़र नंबर वन मतदाता, पार्टी या सरकार के पास चले जाएं।’ प्रभु दुखी हुए कि क्यों कोई उन्हें बजरंग बलि पुकार कर, तो कोई आदि पुरुष दिखा कर घसीट रहा है। मैंने कहा, ‘भगवन! हम आम नागरिकों को घिसटने की आदत है और आपके नाम पर हम यह करते रहे हैं और आगे भी कर सकते हैं।’ इस पर कनफ्यूजड प्रभु को अब यह समझ नहीं आ रहा था कि वह आइंदा किस मंदिर या किस फिल्म में रहें। अंतत: उन्होंने मेरे कान में कहा, ‘डर यह है कि नंबर वन लोग कहीं सुरक्षा की दृष्टि से मुझे किसी म्यूजियम में न छोड़ आएं। कल मेरे नाम पर म्यूजियम बन गए तो मेरे भक्त कहां जाएंगे।’
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
Rani Sahu
Next Story