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- न्यायिक व्याख्या पर...
न्यायपालिका को लोकतंत्र और संविधान का प्रहरी समझा जाता है। इस कसौटी पर भारतीय न्यायपालिका का इतिहास मिला-जुला रहा है। लेकिन एक दौर ऐसा जरूर है जब न्यायपालिका ने अपनी ये भूमिका चमकदार ढंग से निभाई, बल्कि उसने अपनी व्याख्या से नागरिकों के अधिकारों का विस्तार भी किया। मगर हाल के वर्षों में अक्सर उसकी वो भूमिका देखने के लिए आंखें तरसती रहती हैं। इसीलिए इस बीच जब कभी कोई साहसी फैसला आता है, तो उस पर न सिर्फ ध्यान जाता है, बल्कि उससे न्यायपालिका का वो स्मरणीय दौर भी याद हो आता है। ऐसा ही इस हफ्ते हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया के अधिकारों के संदर्भ में राजद्रोह कानून की समीक्षा करेगा। अब यहां ये सवाल कई लोगों के मन में जरूर उठेगा कि ये समीक्षा सिर्फ मीडिया के संदर्भ में क्यों होनी चाहिए। आखिर उन नागरिकों का क्या दोष है, जो वर्तमान सरकार या सत्ताधारी जमात से असहमति के कारण ऐसे मुकदमे झेल रहे हैं। मीडिया तो फिर भी काफी ताकतवर है। उसके पीछे पूंजी की शक्ति है।