सम्पादकीय

न्यायिक व्याख्या पर नजर

Triveni
3 Jun 2021 4:43 AM GMT
न्यायिक व्याख्या पर नजर
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न्यायपालिका को लोकतंत्र और संविधान का प्रहरी समझा जाता है।

न्यायपालिका को लोकतंत्र और संविधान का प्रहरी समझा जाता है। इस कसौटी पर भारतीय न्यायपालिका का इतिहास मिला-जुला रहा है। लेकिन एक दौर ऐसा जरूर है जब न्यायपालिका ने अपनी ये भूमिका चमकदार ढंग से निभाई, बल्कि उसने अपनी व्याख्या से नागरिकों के अधिकारों का विस्तार भी किया। मगर हाल के वर्षों में अक्सर उसकी वो भूमिका देखने के लिए आंखें तरसती रहती हैं। इसीलिए इस बीच जब कभी कोई साहसी फैसला आता है, तो उस पर न सिर्फ ध्यान जाता है, बल्कि उससे न्यायपालिका का वो स्मरणीय दौर भी याद हो आता है। ऐसा ही इस हफ्ते हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया के अधिकारों के संदर्भ में राजद्रोह कानून की समीक्षा करेगा। अब यहां ये सवाल कई लोगों के मन में जरूर उठेगा कि ये समीक्षा सिर्फ मीडिया के संदर्भ में क्यों होनी चाहिए। आखिर उन नागरिकों का क्या दोष है, जो वर्तमान सरकार या सत्ताधारी जमात से असहमति के कारण ऐसे मुकदमे झेल रहे हैं। मीडिया तो फिर भी काफी ताकतवर है। उसके पीछे पूंजी की शक्ति है।

बहरहाल, न्यायालय ने कथित राजद्रोह को लेकर दो तेलुगू समाचार चैनलों- टीवी-5 और एबीएन आंध्रज्योति के खिलाफ किसी भी तरह की दंडात्मक कार्रवाई पर फिलहाल रोक लगा दी है। राजद्रोह के मामले में गिरफ़्तार आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस के असंतुष्ट सांसद के. रघु राम कृष्ण राजू के बयान को प्रसारित करने के संबंध में राज्य के टीवी-5 और एबीएन आंध्राज्योति समाचार चैनलों पर मामला दर्ज किया गया है। बीते अप्रैल में राजू ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई अदालत द्वारा पार्टी प्रमुख और मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी को दी गई जमानत खारिज करने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के संदर्भ में एक बात बरबस ध्यान में आ जाती है कि मामले एक गैर-भाजपा दल की राज्य सरकार से संबंधित है। फिर इस मामले में जो भी व्याख्या होगी, वह सब पर लागू होगा, इसलिए इस मामले में कोर्ट के रुख का सबको इंतजार रहेगा। मीडिया संस्थानों ने राजद्रोह के मामले में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की गुजारिश की है। एक मीडिया हाउस ने दावा किया है कि यह राज्य में समाचार चैनलों को डराने का एक प्रयास है, ताकि वे सरकार की आलोचना वाली सामग्री को दिखाने से बचें। गौरतलब है कि ऐसे प्रयासों की आज कोई कमी नहीं है।


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