सम्पादकीय

लंबा न खिंचे युद्ध

Subhi
21 Jun 2022 3:50 AM GMT
लंबा न खिंचे युद्ध
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नाटो सेक्रेटरी जेनरल जेंस स्टोल्टेनबर्ग का यह आकलन बेहद गंभीर है कि यूक्रेन और रूस के बीच चल रहा युद्ध जल्द खत्म होने के आसार नहीं हैं। यह भी संभव है कि युद्ध वर्षों चलता रहे।

नवभारत टाइम्स: नाटो सेक्रेटरी जेनरल जेंस स्टोल्टेनबर्ग का यह आकलन बेहद गंभीर है कि यूक्रेन और रूस के बीच चल रहा युद्ध जल्द खत्म होने के आसार नहीं हैं। यह भी संभव है कि युद्ध वर्षों चलता रहे। इसी साल 24 फरवरी को जब रूस ने यूक्रेन में अपनी सेना भेजी, तब आम धारणा यह थी कि कुछ ही दिनों में रूस अपना यह अभियान सफलतापूर्वक पूरा कर लेगा। मगर इन चार महीनों में तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद न तो रूस निर्णायक जीत के आसपास पहुंचा नजर आ रहा है और न यूक्रेन की हिम्मत पस्त पड़ती दिख रही है। यही नहीं, यूक्रेन की मदद कर रहे अमेरिका और यूरोपीय देश भी तमाम कठिनाइयों के बावजूद पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। नाटो चीफ के ही शब्दों में कहा जाए तो इन देशों को लगता है कि युद्ध उनके लिए चाहे जितना भी महंगा साबित हो रहा हो, लेकिन अगर इसमें रूसी राष्ट्रपति पुतिन की जीत हो गई तो आगे चलकर उन्हें इसकी कहीं ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी। इसलिए अमेरिका सहित पश्चिमी देश यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई सहित अन्य मदद जारी रखे हुए हैं। लेकिन सही मायनों में देखा जाए तो युद्ध का एक-एक दिन सभी पक्षों के लिए जबर्दस्त नुकसान का कारण बन रहा है। यूक्रेन में शहर के शहर तबाह हो गए हैं। जन-धन की अपार क्षति हुई है। रूसी सैनिकों को भी कम नुकसान नहीं हुआ है।

पश्चिमी मीडिया का दावा है कि जितने रूसी सैनिक अफगानिस्तान में मुजाहिदीनों के हाथों मारे गए थे, उससे अधिक यूक्रेन के साथ युद्ध में मर चुके हैं। इतना ही नहीं, यह भी कहा जा रहा है कि रूसी सेना की पूरी की पूरी यूनिट के आदेश मानने से इनकार करने, सैनिकों और अधिकारियों के बीच टकराव की नौबत आने जैसी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। यानी रूसी सेना के लिए यह अभियान अपेक्षा से कहीं ज्यादा कठिन साबित हो रहा है। सबसे बड़ी बात यह कि इस युद्ध की कीमत सिर्फ इन दोनों देशों को नहीं बल्कि बाकी पूरी दुनिया को भी चुकानी पड़ रही है। ईंधन और खाद्यान्न की कमी वैश्विक संकट का रूप लेती जा रही है। अगर यह युद्ध सचमुच लंबा चल गया तो न केवल यूरोप को यूक्रेन की अनाज सप्लाई पर निर्भर रहे देशों से आप्रवासी संकट का नया दौर झेलना पड़ सकता है बल्कि दुनिया के विभिन्न देशों में आर्थिक और अन्य कई मोर्चों पर जैसे-तैसे संभले हुए हालात बेकाबू हो सकते हैं। इस युद्ध से पर्यावरण रक्षा के अभियान पर भी असर पड़ेगा। रूस से गैस की पर्याप्त सप्लाई ना मिलने से खासतौर पर यूरोपीय देश कोयले का इस्तेमाल बढ़ा सकते हैं। इस बीच, दुनिया के कई देशों में आर्थिक मंदी का भी डर पैदा हो गया है। ऐसे में बेहतर तो यही होगा कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध थम जाए, ताकि दुनिया राहत की सांस ले सके।


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