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प्रदूषण से निपटने
दिल्ली और उसके आसपास के शहरों में प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर तीखी टिप्पणियां कीं। इस बार उसने नौकरशाही को निशाने पर लेते हुए कहा कि वह निष्क्रिय है। उसका यह कहना सही है, लेकिन उसके इस आकलन से सहमत नहीं हुआ जा सकता कि दिल्ली में पांच और सात सितारा सुविधाएं ले रहे लोग प्रदूषण के लिए किसानों को दोष देते हैं। एक तो प्रदूषण अमीर-गरीब, सभी को प्रभावित करता है और दूसरे, इस सच से मुंह मोड़ने का कोई मतलब नहीं कि पंजाब और हरियाणा के खेतों में जलने वाली पराली का धुआं दिल्ली-एनसीआर के वायुमंडल को जहरीला बनाने का काम करता है। नि:संदेह इसमें सड़कों एवं निर्माण स्थलों से उड़ने वाली धूल, वाहनों के उत्सर्जन और कारखानों के धुएं का भी योगदान होता है, लेकिन यदि किसानों को पराली जलाने से रोकने के कोई कदम नहीं उठाए जाएंगे तो समस्या और अधिक गंभीर रूप ही लेगी।
सुप्रीम कोर्ट को इसका आभास हो तो बेहतर कि उसकी ओर से लाकडाउन लगाने, वर्क फ्राम होम लागू करने के जो उपाय सुझाए गए, उनसे भी बात बनने वाली नहीं। ये फौरी और सीमित असर वाले उपाय हैं। आज जरूरत इसकी है कि प्रदूषण से निपटने के लिए दीर्घकालिक उपाय अपनाए जाएं। केवल अक्टूबर-नवंबर में, जब प्रदूषण गंभीर रूप धारण कर लेता है, तब उसे कम करने के उपायों पर जोर देने से कुछ हासिल नहीं होने वाला। मुश्किल यह है कि सरकारें और उनकी नौकरशाही तभी चेतती है जब प्रदूषण रूपी समस्या सिर पर आकर खड़ी हो जाती है।
उचित यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट दिल्ली-एनसीआर संग शेष उत्तर भारत को प्रदूषण से बचाने के लिए वैसे ही उपायों पर ध्यान दे, जैसे उसने एक समय सीएनजी वाहनों को चलाने और उद्योगों को दिल्ली से बाहर ले जाने के रूप में किए थे। उसे सरकारों और उनकी निष्क्रिय नौकरशाही को इसके लिए बाध्य करना होगा कि वे केवल अक्टूबर-नवंबर में ही नहीं, बल्कि वर्ष भर प्रदूषण की रोकथाम के लिए सजग रहें।
इस सतत सजगता के तहत धूल की समस्या से निजात पाने के साथ ऐसी व्यवस्था भी करनी होगी, जिससे वाहन रेंगते हुए चलने के लिए बाध्य न हों। इसके अलावा कूड़े को जलने से रोकना होगा और कोयले के इस्तेमाल को भी नियंत्रित करना होगा। इसके साथ ही पराली को भी जलने से रोकना होगा, क्योंकि एक खास अवधि में प्रदूषण में उसके धुएं का योगदान 40 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। यदि इन सभी उपायों पर अमल नहीं किया जाता तो फिर जब तक बारिश नहीं हो जाती, तब तक कोई कुछ भी कर ले, प्रदूषण से राहत नहीं मिलने वाली।
दैनिक जागरण
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