सम्पादकीय

फिर लौटेंगी टिड्डियां : भारत-पाकिस्तान की सीमा पर रेतीले बवंडर और अंधड़ के साथ आ रहा बड़ा संकट

Neha Dani
18 May 2022 2:42 AM GMT
फिर लौटेंगी टिड्डियां : भारत-पाकिस्तान की सीमा पर रेतीले बवंडर और अंधड़ के साथ आ रहा बड़ा संकट
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तो टिड्डियों को रोका जा सकता है। साफ है कि इनसे निपटने के लिए भारत और पाकिस्तान को मिल-जुलकर ईमानदारी से काम करना होगा।

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के ताजा बुलेटिन में बताया गया है कि फरवरी-मार्च में पाकिस्तान के बलूचिस्तान इलाके के ग्वादर जिले में टिड्डियों ने जो अंडे दिए थे, वे अब वयस्क बन गए हैं। इसी तरह मार्च में ही ईरान में भी टिड्डी दल ने बच्चे दिए हैं। हालांकि अभी ये लाखों टिड्डी-दल एकल अर्थात सॉलिटरी अवस्था में हैं, लेकिन प्रबल आशंका है कि जैसे ही भारत में मानूसन सक्रिय होगा और रेगिस्तान में रेत के धारों में तरावट आएगी, हमारी हरियाली को अफ्रीकी टिड्डों का ग्रहण लग सकता है।

इन दिनों भारत-पाकिस्तान की सीमा पर हजारों किलोमीटर में फैले रेगिस्तान में अंधड़ चलने लगे हैं और इस रेतीले बवंडर के साथ आ रहे टिड्डियों के दल भारत के लिए बड़ा संकट खड़ा कर रहे हैं। उधर सूडान में इन टिड्डी दलों ने नुकसान करना शुरू कर दिया है। पाकिस्तान सरकार जान-बूझकर टिड्डियों के बारे में माकूल जानकारी भारत को देती नहीं है। राजस्थान सरकार के दस्तावेज बताते हैं कि मई, 2019 से फरवरी, 2020 तक पाकिस्तान से आए टिड्डी दलों ने सात जिलों में भारी नुकसान किया था।
उस दौरान बाड़मेर में 22 हजार हेक्टेयर, जैसलमेर में 75 हजार, जोधपुर में 4,500 हेक्टेयर खेतों सहित कुल 2.25 लाख हेक्टेयर की खड़ी फसल टिड्डी दल ने नष्ट कर दिया था। वर्ष 2021 में भी जब टिड्डी दलों ने भारत पर हमला बोला, तो गुजरात और राजस्थान में 1.7 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खड़ी तिलहन, जीरे और गेहूं की फसलों को नुकसान पहुंचा था। सोमालिया जैसे उत्तर-पूर्वी अफ्रीकी देशों से ये टिड्डे यमन, सऊदी अरब और पाकिस्तान होते हुए भारत पहुंचते रहे हैं।
हमारी फसल और जंगलों के दुश्मन टिड्डे, वास्तव में मध्यम या बड़े आकार के वे साधारण टिड्डे (ग्रास होपर) हैं, जो हमें यदा-कदा दिखलाई देते हैं। रेगिस्तानी टिड्डे इनकी सबसे खतरनाक प्रजाति हैं। इनकी पहचान पीले रंग और विशाल झुंड के कारण होती है। हर दो-तीन हफ्ते में टिड्डी दल हजारों गुना की गति से बढ़ते जाते हैं। टिड्डी दल दिन में तेज धूप के कारण बहुधा आकाश में उड़ते रहते हैं और शाम ढलते ही पेड़-पौधों पर बैठकर उन्हें चट कर जाते हैं। अगली सुबह सूर्योदय से पहले ही ये आगे उड़ जाते हैं।
जब आकाश में बादल हों तो ये कम उड़ते हैं, पर यह उनके प्रजनन का माकूल मौसम होता है। ताजा शोध से पता चला है कि जब अकेली टिड्डी एक विशेष अवस्था में पहुंच जाती है, तो उससे एक गंधयुक्त रसायन निकलता है। इसी रासायनिक संदेश से टिड्डियां एकत्र होने लगती हैं और उनका घना झुंड बन जाता हैं। इस विशेष रसायन को नष्ट करने या उसके प्रभाव को रोकने की कोई युक्ति अभी तक नहीं खोजी जा सकी है। वैसे तो भारत-पाकिस्तान के बीच टिड्डियों को रोकने के लिए समझौते हुए हैं और इसकी बैठकें भी होती हैं, लेकिन इस बार लगता है कि पाकिस्तान ने भारत में टिड्डी हमले को साजिशन अंजाम दिया है।
हालांकि एफएओ ने पहले ही चेता दिया था कि इस बार टिड्डियों का हमला हो सकता है। समझौते के मुताबिक, पाकिस्तान को उसी समय रासायनिक छिड़काव कर उन्हें मार डालना चाहिए था, लेकिन वह नियमित बैठकों में झूठे वादे करता रहा। पाकिस्तान के पास चीन निर्मित 10 एअर ब्लास्ट स्प्रेयर हैं, जिन्हें ट्रक पर फिट करके तेज गति से कीटनाशकों का छिड़काव किया जा सकता है। यदि पाकिस्तान ने इन मशीनों का इस्तेमाल अंधड़ के समय भारत की तरफ किया, तो टिड्डे कम मरेंगे और वे तेजी से भारत में प्रवेश करेंगे।
वैसे टिड्डों के व्यवहार से लगता है कि उनका प्रकोप जुलाई-अगस्त तक चरम पर होगा। एफएओ चेता चुका है कि मानसून के साथ इस दल का हमला गुजरात में भुज के आसपास होगा। यदि राजस्थान और उससे सटे पाकिस्तानी सीमा पर टिड्डी दलों के भीतर घुसते ही सघन हवाई छिड़काव किया जाए, साथ ही जनता के सहयोग से रेत के धौरों में अंडफली नष्ट करने का काम शुरू किया जाए, तो टिड्डियों को रोका जा सकता है। साफ है कि इनसे निपटने के लिए भारत और पाकिस्तान को मिल-जुलकर ईमानदारी से काम करना होगा।

सोर्स: अमर उजाला


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