सम्पादकीय

लॉक़डाउन एक दुःस्वप्न था, अब एक दिन का जनता कर्फ्यू भी नहीं चाहिए

Gulabi
2 April 2021 8:48 AM GMT
लॉक़डाउन एक दुःस्वप्न था, अब एक दिन का जनता कर्फ्यू भी नहीं चाहिए
x
देश में लगातार बढ़ते कोरोना के मामले और कई राज्यों में लगने वाले लॉकडाउन की आशंकाएं,

देश में लगातार बढ़ते कोरोना के मामले और कई राज्यों में लगने वाले लॉकडाउन की आशंकाएं, रैलियों पर रोक, नाइट कर्फ्यू, स्कूल बंद करने के आदेश, कई देशों से आ रही लॉकडाउन और फ्लाइट बंद होने की खबरें सुनकर ऐसा लग रहा है जैसे किसी देखी हुई मूवी को रिवाइंड कर दिया गया हो. पिछले साल यही समय था जब लॉकडाउन, सैनेटाइजर, मास्क जैसे शब्दों से पहला साबका हुआ था. उस दौर को याद करते हुए सिहर जाता है मन. कोरोना वायरस ने कितने मित्रों और परिचितों को हमसे सदा के लिए जुदा कर दिया. सोचकर दिल बैठ जाता है, पर शायद उससे ज्यादा खामोशी तब ओढ़ लेती है जब सैलरी की कटौती, ले ऑफ का डर, इकॉनमी के फिर से बैठ जाने खतरा दिखने लगता है.


लॉकडाउन की बात आते ही याद आता है प्रवासियों का सड़क पर छोटे-छोटे बच्चों के साथ सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने का मंजर जिसे देखकर कठोर से कठोर लोगों का दिल रोया होगा. फिर उठता है कि क्या लॉकडाउन का वो फैसला गलत था? गलत था तो फिर अब क्या सही हो गया वो फैसला ? क्यों राज्य सरकारें एक बार फिर से लॉकडाउन करने की बात दोहरा रही हैं? क्यों फ्रांस और जर्मनी ने एक बार फिर से अपने यहां लॉकडाउन कर दिया है? क्यों अभी भी कई देशों में लॉकडाउन को पूरा अनलॉक नहीं किया जा सका? क्या लॉकडाउन के अलावा कोई ठोस विकल्प नहीं है कोरोना के विस्तार को रोकने का? अब तो तमाम वैक्सीन भी आ गई हैं फिर क्यों घबरा रही हैं सरकारें ? शायद देश के हर आम आदमी के मन में इस तरह की बातें उमड़-घुमड़ रही हैं पर उनका सही जवाब लोगों को नहीं मिल रहा है.

68 दिनों के लॉकडाउन में खूब हुई राजनीति
पिछले साल देश में 68 दिनों के लॉकडाउन का लगाने का जो उद्देश्य था वो अब पूरा हो चुका है . दरअसल उस समय भारत ही नहीं पूरी दुनिया इस बात को समझ रही थी कि सख्त लॉकडाउन ही एक मात्र उपाय है. शायद अब भी बहुत से देशों को यही लगता है कि लॉकडाउन से ही तात्कालिक रूप से कोरोना वायरस से मुकाबला किया जा सकता है. यही कारण है कि फ्रांस और जर्मनी ने अपने यहां सख्त लॉकडाउन की घोषणा कर दी है. भारत में भी महाराष्ट्र सरकार और केरल सरकार ने लॉकडाउन करने का मन बनाया है. हालांकि विरोध के चलते दोनों जगहों पर अभी लॉकडाउन नहीं किया जा सका है , पर सरकारों को यही लगता है कि लॉकडाउन ही एक अचूक उपाय है.

पिछले साल लॉकडाउन को लेकर बहुत राजनीति हुई. पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस और दूसरे विपक्ष शासित राज्यों में से किसी ने भी अपने राज्य में लॉकडाउन का विरोध नहीं किया. फिलहाल आक्रमणकारी के आक्रमण का समय तय नहीं होता. और हार या जीत के बाद तर्क नहीं किया जाता बस मूल्यांकन किया जाता है. मूल्यांकन के लेवल पर पिछले साल लिया गया लॉकडाउन कोरोना वायरस से लड़ने की तैयारी करने और लोगों को जागरूक करने के अपने उद्देश्य में सफल साबित हुआ. पर अमेरिका और ब्रिटेन ने दूसरी कहानी लिखी.

इन देशों में लाशें गिरती रहीं पर सख्त लॉकडाउन कभी नहीं लगा. इनके बारे में यही कहा जा सकता है कि महान देश किसी भी आक्रमण का मुकाबले इसी तरह करते हैं. पर ब्रिटेन और अमेरिका एक संपन्न और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं वाले देश हैं उनका मुकाबला या उनकी नकल भारत या दुनिया का कोई अन्य देश न कर सकता है न करना चाहिए.

यूपी-बिहार के मुकाबले महाराष्ट्र-केरल में क्यों स्थित खराब
एक बात लोगों के मन में बार-बार उठती है कि देश में यूपी-बिहार-बंगाल जैसे राज्यों में जहां स्वास्थ्य सेवाओं का बहुत बुरा हाल है वहां कोरोना का विस्तार और मौतों का आंकड़ा बहुत कम है. जबकि महाराष्ट्र-केरल-पंजाब जैसे राज्यों जहां पर स्वास्थ्य सेवाएं ही नहीं लोगों का जीवन स्तर भी अन्य राज्यों के मुकाबले अच्छा है वहां कोरोना का कहर ज्यादा है. कुछ ऐसी ही प्रवृत्ति दुनिया के नक्शे पर भी है. यूएस और यूरोप के देशों में जहां स्वास्थ्य सेवाएं दुनिया में सबस बेहतरीन हैं वहां पर कोरोना का ताप कुछ ज्यादा ही झेलना पड़ा है. पाकिस्तान-बांग्लादेश और अफ्रीका के देश जहां स्वास्थ्य सेवाएं न के बराबर हैं वहां की हालत अपेक्षाकृत क्यों अच्छी रही है?

कोरोना के बारे में ऐसी अबूझ बातों का सही उत्तर नहीं मिलने के चलते देश की जनता का कोरोना से खौफ कम होता जा रहा है.
दिल्ली -मुंबई के बाहर निकलते ही आपको न सैनेटाइजर मिलेगा और न ही मास्क. बाजारों-रैलियों-जन्म और मृत्यु भोज हो या शादी-विवाह के मौके लोग भूल जाते हैं कि कोरोना के खौफ का पालन करना भी है. हालांकि ठीक यही टेंडेंसी विदेशों में भी है वहां से भी ऐसी फोटोज देखने को मिल जाती हैं जिसमें बीच के किनारे उमड़ी लोग की भीड़, रैलियों में भीड़ की भारी संख्या यही दिखाती है कि कोरोना का खतरा किसी को नहीं है.

एक दिन का भी लॉकडाउन ठीक नहीं
कोरोना के एक्सपर्ट तो बताते ही हैं आप खुद समझ सकते हैं सीधी सी बात है. अगर संडे का एक दिन के लॉकडाउन की घोषणा कोई भी राज्य सरकार करती है तो एक दिन कोई भी घर से नहीं निकलेगा. परिणाम यह होगा कि सोमवार को दुगुना लोग मार्केट में निकलेंगे तो भीड़ भी बढ़ेगी. सोशल डिस्टेंसिंग वैसे भी लोग नहीं मानते जब भीड़ डबल होगी तो उन्हें रोकना भी मुश्किल हो जाता है. इसी तरह 2 दिन का लॉकडाउन और भी नुकसानदायक साबित हो सकता है.

2nd वेव का खतरा
देश में कोरोना ने फिर से रफ्तार पकड़ ली है, हजारों की तादाद में हर रोज कोरोनावायरस के मामले सामने आ रहे हैं. 31 तारीख को रिकॉर्ड तोड़ 72 हजार केस सामने आए हैं जो दूसरे लहर में अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है. जबकि इस घातक वायरस ने 24 घंटे में 459 लोगों को मौत के घाट उतार दिया. वहीं 30 मार्च की बात करें तो देश में 56,211 मामले दर्ज हुए थे और 271 लोगों की मौत हुई थी. हालांकि दूसरे वेव का खतरा केवल भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के कई बड़े देशों में देखने को मिल रहा है.

भारत के लिए चिंता की बात इसलिए है क्योंकि यहां कोरोना के आंकड़े तब तेजी से बढ़ रहे हैं जब यहां तेजी से वैक्सीनेशन का कार्यक्रम चल रहा है. 30 मार्च तक देशभर में 6,11,13,354 लोगों को कोरोना वायरस का टीका दिया चुका है. भारत सरकार देश में दूसरे लहर को लेकर गंभीर है और हर रोज़ लोगों से अपील कर रही है कि वह कोरोना नियमों का पालन करें और मास्क हमेशा लगाएं रहें, क्योंकि जब तक वैक्सीनेशन पूरी तरह नहीं हो जाता तब तक कोरोना से बचने का केवल एक ही रास्ता है कि सावधानी बरती जाए और कोरोना नियमों का सख्ती से पालन किया जाए.


Next Story