सम्पादकीय

लो जी, मैं भी कुत्ते वाला हुआ

Rani Sahu
8 March 2022 7:01 PM GMT
लो जी, मैं भी कुत्ते वाला हुआ
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आजकल हमारी कालोनी में एक ओर करिश्माई ढंग से आदमियों की संख्या में निरंतर गिरावट दर्ज हो रही है

आजकल हमारी कालोनी में एक ओर करिश्माई ढंग से आदमियों की संख्या में निरंतर गिरावट दर्ज हो रही है तो दूसरी ओर फैमिली कुत्तों की संख्या में दिन दुगनी रात चौगुनी वृद्धि हो रही है। कुत्ते भी ऐसी ऐसी नस्ल के रेट के कि उनकी नस्ल, रेट का नाम सुनते ही दांतों तले कटने को उंगली खुद ब खुद सहर्ष चली जाए। उनकी नस्ल का उच्चारण करते करते जुबान फिसल कर कहीं की कहीं और चली जाए। इन चंद महीनों में ही मैंने कुत्तों की इतनी नस्लों का ज्ञान हासिल कर लिया है कि जितना पचास सालों में आदमियों की नस्लों का ज्ञान अर्जित न कर सका। इसके पीछे एक कारण यह भी हो सकता है कि मैं इतने सालों तक अपनी ही नस्ल के आदमियों के बीच रहा होऊं। अपनी नस्ल के आदमियों के सर्कल से बाहर ही निकला होऊं।

तो अब हुआ यूं कि कल तक जो हमारी बगल वाले श्रीयुत कुत्तों से अधिक कुत्तेवालों को जमकर गालियां दिया करते थे, वे भी कुत्ते को प्यारे हो गए। सुबह सुबह जो औरों की बीवियों को नापते भांपते अपनी बीवी के बदले कुत्ते के साथ घूमने आते दिखे तो मैं दंग रह गया। जब वे मेरे सामने कुत्ते को अपनी रस्सी पकड़ाए हुए हुए तो मैंने उन्हें इस उपलब्धि पर हार्दिक बधाई देते कहा, 'बंधु! मुबारक हो! आप भी कुत्ते वाले हो गए! बधाइयां! कालोनी में बस, आपका ही एक गला ऐसा बचा था जिसमें पट्टा न था। इसके साथ अब हमारी कालोनी शत प्रतिशत कुत्तामय हुई। सरकार आज तक लाख दावों के बाद भी अपना कोई शत प्रतिशत लक्ष्य पूरा कर पाई हो या न, पर हमने कर लिया।' मेरा उन्हें कुत्तेवाले होने पर बधाई देने भर की देर थी कि वे पलटवार करते यों बोले जैसे वफादार कुत्ता अपने मालिक के बारे में बुरा सुन सांकल तोड़ते एकदम विरोधी की टांग पर सवार हो जाता है, 'बंधु! कल तक मैं भी सम्मानीय कुत्तों के बार में तुम्हारी तरह की ही निकृष्ट राय रखता था। पर अब पता चला कि उफ्फ! मैं कितना गलत था! हो सके तो ये कुत्ता मेरी अक्ष्मय गलतियों को क्षमा करे। सच कहूं बंधु तो आज आदमी के लिए आदमी उतना जरूरी नहीं, जितना कुत्ता है।
कारण, संस्कारों, मूल्यों के विघटनकारी दौर में आज आदमी आदमी से उतना नहीं सीख पा रहा जितना वह कुत्ते से सीख सकता है। आज समाज में समाज को आदमी से अधिक जरूरत कुत्तों की है। आज आदमी आदमी को अपनी सोहबत में आदमी भी नहीं रहने दे रहा है जबकि कुत्ता असंस्कारी से असंस्कारी के संस्कारों का परिष्कार करने का समरथ रखता है। कुत्ता आदमी से कुछ सीखें या न, पर कुत्ते से आदमी बहुत कुछ सीख सकता है, अगर उसमें सीखने की ललक हो तो। इसलिए मैं तो कहता हूं कि जो तुम अपने भीतर कुत्तीय गुणों के बहाने मानवीय गुणों का विकास करना चाहते हो तो जितनी जल्दी हो सके किसी एक घरवाले को छोड़ उसकी जगह कुत्ता तुम भी रख लो! कहो तो इसके भाई के लिए बात चलाऊं? सस्ते में दिलवा दूंगा।' आह! बंधु कुत्ते के इतने गुणों को एक ही दिन आत्मसात् कर गए तो पता नहीं महीने भर में कहां होंगे?
अशोक गौतम
Rani Sahu

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