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सम्पादकीय
LJP Split: चाचा के हाथों चित चिराग पासवान, काश अपने पिता से राजनीतिक दावपेच भी सीखे होते
Tara Tandi
15 Jun 2021 7:23 AM GMT
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क्रिकेट को अनिश्चितताओं का खेल माना जाता है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| क्रिकेट को अनिश्चितताओं का खेल माना जाता है, कहते हैं कि क्रिकेट के मैच में कभी भी पासा पलट सकता है. क्रिकेट और राजनीति का रिश्ता बड़ा पुराना है. ढेर सारे नेता भारतीय क्रिकेट बोर्ड के या उसकी राज्य इकाइयों के पदाधिकरी रह चुके हैं. इस सूची में शरद पवार, एन.के.पी. साल्वे, माधवराव सिंधिया, रणबीर सिंह महेंद्रा, नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, अरुण जेटली, अनुराग ठाकुर, राजीव शुक्ला, ज्योतिरादित्य सिंधिया, लालू प्रसाद यादव जैसे ढेरों नेताओं का नाम शामिल है. पर किसे पता था कि एक दिन राजनीति भी अनिश्चितताओं का खेल बन जाएगा. पिछले दो दिनों में लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) में जो भी हुआ उससे तो यही लगता है कि राजनीति में भी कभी भी पासा पलट सकता है.
एलजेपी के संस्थापक रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) भले ही कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के गाँधी परिवार के घोर विरोधी रहे हों, लेकिन परिवारवाद को बढ़ावा देने में वह भी किसी से पीछे नहीं रहे. छोटे भाइयों रामचन्द्र पासवान (Ram Chandra Paswan ) और पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) को भी राजनीति में आगे बढ़ाया. रामचन्द्र पासवान चार बार सांसद चुने गए और पशुपति पारस तीन बार बिहार में मंत्री बने. जब पुत्र चिराग पासवान (Chirag Paswan) का फ़िल्मी करियर फ्लॉप हो गया तो उसे भी राजनीति में ले आये और चिराग सांसद बन गए. जब रामचन्द्र पासवान की मृत्यु हो गयी तो उनकी जगह उनके पुत्र प्रिंस राज को सांसद बना दिया.
चिराग में राजनीतिक दाव-पेंच की कमी
पासवान ने अपने जीवन काल में नाम, धन, शोहरत सब कुछ कमाया. चिराग को अपना उत्तराधिकारी भी अपने जीते जी नियुक्त कर गए. पर पासवान से एक ही चूक हो गयी, चिराग को राजनीतिक दाव-पेंच पूरी तरह से सिखाने के पहले ही उनका निधन हो गया. चिराग को अपना उत्तराधिकारी तो बना दिया लेकिन पासवान भूल गए कि वसीयत सिर्फ धन की होती है, पद की नहीं. पिछले आठ महीनों में जिस तरह चिराग पासवान का पतन हुआ है वह किसी शोध का विषय हो सकता है कि राजनीति में क्या नहीं करना चाहिए.
चिराग ने पिछले साल हुए बिहार विधानसभा चुनाव में अति-उत्साह और अति-महत्वकांक्षा में एनडीए से अलग हो कर चुनाव लड़ने की ठानी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चुनाव के बाद जेल भेजने की धमकी दे डाली. एलजेपी तो एक ही सीट पर सिमट गई और नीतीश कुमार को चिराग ने अपना दुश्मन बना लिया. बिहार चुनाव के बाद वह पिता की मृत्यु से रिक्त राज्य सभा सीट से अपनी मां रीना पासवान को चुनाव लड़ाना चाहते थे, पर नीतीश कुमार के जेडीयू ने उनके इरादों को नाकाम कर दिया और सीट बीजेपी के खाते में चली गयी.
चाचा ने किया चारो खाने चित
और अब जेडीयू ने ऐसा खेल खेला कि चिराग की पार्टी और परिवार के लोग अलग थलग पड़ गए हैं, यहां तक कि अब उनका राजनीतिक अस्तित्व ही खतरे में आ गया है. लेकिन जेडीयू ने पासवान परिवार में फुट डालने का काम पर्दे के पीछे से किया और चिराग के चाचा पशुपति पारस ने उनके पैर के नीचे से कालीन ऐसे खींची की वह चारो खाने चित हो गए.
चूंकि कागजों में एलजेपी अभी भी एनडीए का हिस्सा है, ख़बरों के बीच कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करने वाले हैं जिसमें एनडीए के घटक दलों को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा, चिराग की उम्मीद जग गयी थी कि पिता की जगह एलजेपी से उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया जाएगा. एलजेपी का प्रतिनिधित्व मोदी मंत्रिमंडल में होगा तो ज़रूर, पर वह चिराग पासवान नहीं होंगे – शायद पशुपति पारस अब केंद्रीय मंत्री बनेंगे.
क्या चिराग के हाथों से फिसल जाएगी एलजेपी
जब बिहार में चिराग ने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोला था तो लोगों का मानना था कि उनके सिर पर बीजेपी का हाथ है. कहा गया कि बीजेपी चाहती थी कि नीतीश कुमार का दबदबा बिहार की राजनीति में कम हो. और हुआ भी ऐसा ही. जेडीयू आरजेडी और बीजेपी के बाद तीसरी बड़ी पार्टी ही बन पायी. नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री तो बने पर यह उनके लिए बीजेपी का तोहफा था. जाहिर सी बात है कि जेडीयू चिराग पासवान से बदला लेना चाहती थी और ले भी ली. एलजेपी के छः में से पांच सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष को सूचित किया कि उन्होंने चिराग पासवान की जगह पशुपति पारस को अपना नया नेता चुना है और इसे लोकसभा सचिवालय ने बिना समय गंवाए मंज़ूर भी कर लिया.
उम्मीद की जा रही है जल्द ही एलजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई जायेगी जिसमें चिराग की जगह चिराग के चाचा पशुपति पारस को एलजेपी का अध्यक्ष चुन लिया जाएगा. बीजेपी की भी एक मजबूरी थी कि अब वह चाह कर भी चिराग का साथ नहीं दे सकती थी. बीजेपी चाहती है कि 2024 के आम चुनाव के मद्देनजर मोदी मंत्रिमंडल में एनडीए के अन्य दलों को भी स्थान दिया जाए. पिछले डेढ़ सालों में शिवसेना और अकाली दल के मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया और अब ये दोनों दल एनडीए का हिस्सा नहीं हैं.
बिहार में बीजेपी नीतीश के खिलाफ नहीं जा सकती
एलजेपी बीजेपी और जेडीयू के बाद एनडीए में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है. लिहाजा मंत्रिमंडल में उसकी भागीदारी बनती है, पर नीतीश कुमार नहीं चाहते थे कि मंत्री पद चिराग पासवान को मिले. बीजेपी नीतीश कुमार को नाराज़ भी नहीं करना चाहती है, खास कर जिस तरह जेल से बेल पर बाहर आकर आरजेडी संस्थापक लालू प्रसाद यादव नीतीश कुमार पर डोरे डालने की कोशिश करने लगे थे ताकि बिहर में जेडीयू-आरजेडी की सरकार बन जाए.
राजनीति में रिश्तों की कोई जगह नहीं होती
बीजेपी जो चाहती थी वही हो रहा है, बिहार में नीतीश लालू से दूर ही रहेंगे और केन्द्रीय मंत्रिमंडल में एलजेपी की भागीदारी होगी. नीतीश कुमार को भी जो वह चाहते थे मिल गया. पशुपति पारस रातों रात बड़े नेता बन गए और बेचारे चिराग की हालत यह है कि कोशिश करने के बाद भी वह कल अपने चाचा तक से नहीं मिल पाए यह जानने के लिए की आखिर चाचा उन्हें किस किये की सजा दे रहे हैं?
चिराग भूल गए थे कि राजनीति में पद रिश्तों से ज्यादा मायने रखता है. हां, दूसरी पार्टियों के लिए भी यह एक सबक हो सकता है कि नेता बनने के लिए योग्यता की भी ज़रुरत होती है, सिर्फ किसी मां-बाप का कोई पुत्र है यह शायद आने वाले दिनों में पर्याप्त नहीं माना जाए. चिराग पासवान का हश्र देख कर अगर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की चिंता बढ़ गयी हो तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिये.
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Tara Tandi
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