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एलजेपी में किसके इशारे पर हुई टूट
पंकज कुमार। एलजेपी (LJP) के दिवंगत नेता और आइकन रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) की मौत के बाद ही पासवान परिवार में जंग छिड़ चुका था. एलजेपी को अपनी जागीर समझने वाले चिराग (Chirag Paswan) समझ भी नहीं पाए कि जेडीयू (JDU) से उनकी अदावत उनके लिए कितनी भारी पड़ने वाली है. जेडीयू को 35 सीटों का नुकसान कराने वाले चिराग को जेडीयू ने ऐसा झटका दिया कि एनडीए (NDA) तो दूर वो विरासत में मिली पार्टी से भी निकाल फेंके गए.
रामविलास पासवान के देहांत के बाद चिराग पार्टी पर पूरी तरह पकड़ मजबूत बना चुके थे. चिराग के चाचा पशुपतिनाथ पारस (Pashupati Nath Paras) और चचेरे भाई प्रिंसराज (Prince Raj) को पार्टी में हाशिए पर धकेलने की कहानी शुरू हो चुकी थी. चिराग और पशुपतिनाथ पारस के बीच चल रहा विवाद रामविलास पासवान के बेहद करीबी और पूर्व एलजेपी सांसद सूरजभान सिंह (Surajbhan Singh ) सुलझाने का प्रयास कर रहे थे.
चिराग और पशुपतिनाथ पारस के बीच जंग कब और कैसे शुरू हुई?
चिराग पार्टी में मनमानी करना चाह रहे थे, वहीं एलजेपी सांसद पशुपतिनाथ पारस चिराग के व्यवहार से दुखी होकर जेडीयू से संपर्क बनाना शुरू कर चुके थे. पूर्व सांसद और बाहुबली सूरजभान सिंह एलजेपी के दिवंगत नेता रामविलास पासवान के करीबी होने की वजह से एलजेपी को एकजुट रखना चाहते थे, इसलिए चिराग और उनके चाचा पशुपतिनाथ पारस के बीच चल रहे विवाद को सुलझाने का जिम्मा उन्होंने अपने सिर ले रखा था. चिराग बिहार विधानसभा चुनाव के बाद बिहार एलजेपी के अध्यक्ष प्रिंसराज जो कि उनके चचेरे भाई हैं उन्हें अध्यक्ष पद से हटाना चाहते थे. लेकिन सीनियर नेताओं की रोका टोकी के बाद चिराग ने प्रिंसराज को बिहार एलजेपी के अध्यक्ष पद से नहीं हटाया, लेकिन राजू तिवारी को कार्यकारी अध्यक्ष चुन लिया.
परिवार में बगावत की चिंगारी और भड़क गई और इसी बीच चिराग पासवान को बेलगाम देख एलजेपी के सांसद और नेता चिराग से खफा होने लगे. इसी बीच सूरजभान सिंह के भाई चंदन सिंह जो कि नवादा से एलजेपी के सांसद हैं फरवरी महीने में बिहार के सीएम और जेडीयू नेता नीतीश कुमार से निजी मुलाकात करने चले गए. ज़ाहिर है इस प्रकरण के बाद राजनीतिक फिजा में ये चर्चा तेज होने लगी कि चिराग के साथ पार्टी के वफादार नेता और पूर्व सांसद सूरजभान सिंह भी नहीं हैं. इसीलिए उनके भाई और वर्तमान नवादा सांसद चंदन सिंह बिहार के सीएम नीतीश कुमार से मिलने चले गए.
जेडीयू के किस नेता ने चिराग से राजनीतिक बदला लेने के लिए मोर्चा संभाल रखा था
सीएम के बेहद करीबी समझे जाने वाले नेता और मुंगेर सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने चिराग को राजनीतिक झटका देने का कमान अपने हाथों में ले रखा था. ललन सिंह बेहतरीन राजनीतिक सूझबूझ की वजह से नीतीश कुमार के शुरूआती दिनों से करीबी रहे हैं. वर्तमान राजनीतिक माहौल में उनके इलाके के एक दबंग विधायक अनंत सिंह जेडीयू छोड़ आरजेडी में शामिल हो चुके हैं. इसलिए उसी इलाके के दूसरे बाहुबली और पूर्व सांसद सूरजभान सिंह का ललन सिंह के करीब आना व्यवहारिक राजनीति का हिस्सा ही माना जाएगा.
ज़ाहिर है ललन सिंह ने पहले एलजेपी के इकलौते विधायक राजकुमार सिंह को तोड़ अपनी पार्टी में शामिल कराया. ये एलजेपी के लिए बिहार विधानसभा में करारा झटका था, लेकिन चिराग इस झटके का दूरगामी परिणाम भांप नहीं पाए.
दरअसल विधानसभा चुनाव में एलजेपी का टिकट राजकुमार सिंह को दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले सूरजभान सिंह ही थे. तत्कालीन एलजेपी विधायक राजकुमार सिंह ने उपाध्यक्ष पद के लिए विधानसभा में हो रहे चुनाव के लिए समर्थन जेडीयू उम्मीदवार महेश्वर हजारी को दे दिया था.
एलजेपी छोड़ जेडीयू में आए विधायक राजकुमार सिंह कहते हैं कि अध्यक्ष पद के लिए समर्थन एनडीए को दिया गया था, इसलिए पार्टी के निर्देश के अभाव में मैने उपाध्यक्ष के लिए भी एनडीए को ही वोट किया जो कि कहीं से गलत नहीं था.
लेकिन एलजेपी ने राजकुमार सिंह को कारण बताओ नोटिस थमा दिया था, जिससे राजकुमार सिंह ही नहीं बल्कि चिराग के पिता के बेहद करीबी और पूर्व सांसद सूरजभान सिंह भी नाराज हुए थे. इसलिए एलजेपी के एकमात्र विधायक राजकुमार सिंह जब एलजेपी छोड़ रहे थे तब उन्हें रोकने का प्रयास सूरजभान सिंह की तरफ से भी नहीं किया गया.
ललन सिंह, महेश्वर हजारी और अशोक चौधरी की तिकड़ी ने चिराग को दिया झटका
महेश्वर हजारी जेडीयू से ताल्लुक रखते हैं और बिहार विधानसभा में उपाध्यक्ष हैं. महेश्वर हजारी रामविलास पासवान और उनके भाई पशुपतिनाथ पारस के करीबी रिश्तेदार भी हैं. पशुपतिनाथ पारस और उनके भतीजे और चिराग के चचेरे भाई प्रिंस राज चिराग से पहले से ही दुखी थे. ये दोनों नेता महेश्वर हजारी के जरिए जेडीयू नेता अशोक चौधरी और सांसद ललन सिंह के संपर्क में थे. एलजेपी के दूसरे सांसद वीणा सिंह, चंदन सिंह, अबू कैसर भी जेडीयू नेता ललन सिंह के साथ बातचीत का क्रम जारी रखे हुए थे.
LJP नेताओं के उलट फैसले ले रहे थे चिराग
एलजेपी सांसद पशुपतिनाथ पारस ने कहा कि उनकी पार्टी विधानसभा चुनाव में एनडीए का हिस्सा बनकर लड़ना चाहती थी, लेकिन चिराग पासवान पार्टी के ज्यादातर कार्यकर्ताओं और नेताओं की मर्जी के उलट चुनाव लड़ने एनडीए के खिलाफ उतरे थे. बिहार राजनीति की परख रखने वाले राजनीतिक विशेषज्ञ संजय कुमार कहते हैं कि चिराग की ये हालत नकारात्मक राजनीति का परिणाम है जो उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव के दरमियान प्रदर्शित किया था.
संजय कुमार आगे कहते हैं कि चिराग बिहार विधानसभा चुनाव जीतने नहीं बल्कि नीतीश कुमार को हराने के लिए लड़े थे. इसलिए नीतीश कुमार की पार्टी उन्हें राजनीति का वो सबक दे चुकी है जिसे चिराग को राजनीति में कदम रखते ही अपने स्वर्गीय पिता से सीख लेना चाहिए था.
JDU ने सिखाया सबक
दरअसल विरासत में मिली राजनीतिक कुर्सी की असली अहमियत राजनीति में लंबे संघर्ष के बाद ही समझ आती है ये चिराग पासवान अब भली भांती समझ गए होंगे. राजनीति की लड़ाई राजनीतिक ही रहे तो बेहतर है, लेकिन वो पर्सनल होने लगे तो राजनीतिज्ञ की सूझबूझ पर सवाल उठना लाजिमी है.
जेडीयू ने आखिरकार बिहार विधानसभा चुनाव की हार का बदला चिराग को उनकी पार्टी एलजेपी से अलग थलग करके ले ही लिया है. एलजेपी के संसदीय दल के नेता पशुपतिनाथ पारस चुन लिए गए हैं, एलजेपी संसदीय दल के नवनिर्वाचित नेता चुने जाने के बाद पशुपतिनाथ पारस ने कहा कि एलजेपी अपना अस्तित्व खोती जा रही थी इसलिए हमने एलजेपी को तोड़ा नहीं बल्कि बचाया है.
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