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- ब्रिटेन की कमान लिज...
आदित्य नारायण चोपड़ा: लिज ट्रस ब्रिटेन की तीसरी महिला प्रधानमंत्री होंगी और वह कंजरवेटिव पार्टी की नेता भी बनेंगी। यह परिणाम मतदान पूर्व सर्वेक्षणों के मुताबिक ही आया जिनमें कहा गया था कि लिज ट्रस भारतीय मूल के ऋषि सुनक पर भारी हैं और उनका चुना जाना तय है। लिज ट्रस भी ऋषि सुनक की तरह परम्परावादी टोरी हैं। कालेज के दिनों में उन्होंने लिवाल डेमोक्रेटिक मैंबर के रूप में 1994 में पार्टी के सम्मेलन को संबोधित किया था। इसमें उन्होंने राजशाही को खत्म करने का आह्वान किया था। लिज ट्रस इस बात पर भरोसा नहीं करती कि लोगों का जन्म शासन करने के लिए होता है। वह दुनिया को परमाणु हथियारों से मुक्त करने के अभियान में हिस्सा लेती रही हैं और इस अभियान से जुड़े लोग माग्रेट थैचर के लंदन में अमेरिकी परमाणु हथियारों की तैनाती की अनुमति देने के फैसले के खिलाफ रहे। लिवरल डेमोक्रेट होने के दौरान ट्रस ने गांजे को वैध बताने और शाही परिवार के उन्मूलन का समर्थन किया जबकि यह सब कंजरवेटिव पार्टी की प्रमुख विचारधारा के एकदम विपरीत है। ट्रस 1996 में कंजरवेटिव पार्टी की सदस्य बनी। उसके बाद से ही वह सफलता की सीढि़यां चढ़ती गईं।वह एक ऐसे परिवार में जन्मी थी जिसकी विचारधारा वापमंथी लेबर पार्टी की थी। वह ब्रिटेन के ऐसे इलाके में बड़ी हुई जहां कंजरवेटिव पार्टी को परम्परागत तौर पर वोट नहीं मिलते। ट्रस लीड्स के सरकारी स्कूल में पढ़ी और बाद में आक्सफोर्ड तक पहुची। कंजरवेटिव पार्टी का सदस्य बनने के साथ ही ट्रस ने लोगों का ध्यान आकर्षित करने में कामयाबी हासिल की। उन्होंने पुरानी बातों को भुलाकर पार्टी की हर विचारधारा का समर्थन किया। वह तीन अलग-अलग प्रधानमंत्रियों की कैबिनेट में रहीं और बोरिस जानसन सरकार में विदेश मंत्री हैं।ब्रिटेन के चुनावों में भारत की दिलचस्पी का एक बड़ा कारण ऋषि सुनक है जो न केवल भारतीय मूल के हैं बल्कि भारत के दामाद हैं। उनकी पत्नी भारतीय आईटी उद्योगपति नारायणमूर्ति की बेटी हैं। आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे भारत के लिए यह किसी उपलब्धि से कम नहीं है कि 200 वर्ष तक भारत पर राज करने वाले ब्रिटेन में प्रधानमंत्री की कुर्सी के दावेदारों में एक चेहरा भारतीय मूल का भी है। राजनीति में दाखिल होने से पहले उन्होंने इन्वेस्टमेंट बैंक गोल्डमेन सैम्स में काम किया और विदेश फर्म को भी स्थापित किया। जुलाई 2019 में जानसन ने सुनक को वित्त मंत्रालय सौंपा था। इससे पहले वह जनवरी 2018 से जुलाई 2019 तक आगण समुदाय और स्थानीय सरकार में संसदीय अवर सचिव थे। ऋषि सुनक को ब्रिटिश खजाने की सेहत सुधारने के लिहाज से एक बेहतर डाक्टर माना जाता है। ब्रिटेन के अमीर सांसदों में शुमार ऋषि सुनक कम उम्र होेने के कारण लम्बी संभावना वाले नेता माने जाते रहे। अब सवाल यह है कि ऋषि सुनक लिज ट्रस से पिछड़ क्यों गए। यद्यपि ऋषि की एशियाई पहचान उनके लिए काफी मायने रखती रही। एशियाई मूल के लोग भी उन्हें प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते थे। अपनी पत्नी के टैक्स मामलों में विवाद और लॉकडाउन नियमों के उल्लंघन के लिए जुर्माना लगने से उनकी प्रतिष्ठा को आघात पहुचा। कंजरवेटिव पार्टी के लगभग एक लाख 60 हजार सदस्यों का वोट अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए ट्रस और सुनक कई बार आमने-सामने हुए। दोनों ने ही ऊर्जा संकट को प्राथमिकता देने की बात कही। सुनक ने महंगाई पर अंकुश लगाने की बात कही तो ट्रस ने सत्ता मि लने पर टैक्स कम करने का वादा किया। लेकिन सुनक पार्टी सदस्यों का मत पाने में विफल रहे। दरअसल पार्टी में सुनक को बोरिस जानसन का तख्तापलट करने वाला माना गया। बोरिस के पद से हटने के बाद कुछ घंटों में ही सुनक ने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी ठोक दी थी। रेडी फॉर ऋषि नाम के उनके शुरूआती अभियान ने कमाल कर दिया। लेकिन उनके पक्ष के लोग ही खिसकने लगे। कई सांसदों ने पाला बदल लिया। हालांकि ब्रिटेन विविधता का स्वागत करने वाला देश है लेकिन कंजरवेटिव पार्टी के सदस्यों का झुकाव ब्रिटिश मूल की लिज के प्रति बढ़ता गया।संपादकीय :कांग्रेस को विपक्ष बनना होगाशहर-शहर हैवानशेख हसीना का स्वागतबेटियों पर बढ़ते अत्याचार...इसका हलविकास रथ पर सवार भारतरूबी खान के 'गणपति बप्पा'लिज ट्रस की चुनौतियां भी कम नहीं हैं। ब्रिटेन में आम चुनावों में दो साल का वक्त बचा है। ऐसे में विवादों के बवंडर के साथ हुए इस मध्यावधि बदलाव के बाद कुर्सी संभालने वाले नए नेता के सामने अपनी नई टीम बनाना भी चुनौती होगी। साथ ही 9 फीसद से अधिक चल रही महंगाई के बीच अर्थव्यवस्था को संभालना भी चुनौती होगा। साथ ही सर्दियों की शुरूआत से पहले अक्टूबर में गैस के दाम तय करना पहली मुश्किल होगी। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पूरे यूरोप में गैस के दामों में खास बढ़ौतरी हुई है। ऐसे में गैस की सर्वाधित खपत वाली सर्दियों में कीमतों को कम रखना नए ब्रिटिश पीएम की परीक्षा होगी। ऐसे में ब्रिटेन में समय से पहले आम चुनावों की घोषणा हो जाए तो बड़ा आश्चर्य नहीं होगा। लिज ट्रस के सत्ता में आने के बाद भी भारत को अहमियत मिलती रहेगी। ब्रिटेन में प्रवासी भारतीयों की संख्या करीब 35 लाख है जो आबादी का 5 फीसदी है। प्रवासी भारतीय ब्रिटेन की अर्थ व्यवस्था में 6 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी दे रहे हैं। ब्रिटेन के हेल्थ सिस्टम में सबसे ज्यादा संख्या भारतीयों की है। यही कारण है कि अपने चुनाव में चार माह पहले लिज भारत यात्रा पर आई थी। इतना ही नहीं भारत ने ब्रिटेन को पछाड़ दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थ व्यवस्था बनने का गौरव हासिल किया है। भारत के साथ आर्थिक तालमेल और साझेदारी ब्रिटेन के लिए फायदेमंद रहेगी।