सम्पादकीय

जियो टेंशन-फ्री!

Rani Sahu
17 Nov 2021 6:59 PM GMT
जियो टेंशन-फ्री!
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सवेरे की सैर करते हुए लंबे समय बाद मैं अपने एक पुराने मित्र से मिला

सवेरे की सैर करते हुए लंबे समय बाद मैं अपने एक पुराने मित्र से मिला। उन्होंने मुझे देखा, राम-राम हुई और फिर हम दोनों इकट्ठे सैर करते हुए गपशप करने लगे। थोड़ी ही देर की बातचीत से स्पष्ट हो गया कि वे कुछ परेशान थे। वे अमीर आदमी हैं, गाड़ी है, कोठी है, नौकर-चाकर हैं, अच्छा व्यवसाय है। वे कुछ बताना चाह रहे थे, पर खुल नहीं रहे थे और मैंने कुरेद कर कुछ पूछना उचित नहीं समझा। मुझे यही ठीक लगा कि वे तब कुछ बताएं जब वे उसके लिए मानसिक रूप से तैयार हों। कुछ देर बाद वे चले गए। मैं अभी और सैर कर ही रहा था कि मेरे एक अन्य मित्र सैर करने आ गए। कोविड के कारण उनका व्यवसाय बिल्कुल बंद है, कमाई बंद है, घर के सारे खर्चे जारी हैं। मेरे इन मित्र का छोटा-सा घर है, कार के नाम पर उनके पास मारुति आल्टो है। पर वे जब मुझसे मिले, वे चहचहा रहे थे, खुश थे। अब वे मेरे साथ सैर करते हुए गपशप करने लगे। बातचीत में उन्होंने बताया कि कोविड के कारण पिछला व्यवसाय तो अभी खुलने की उम्मीद न के बराबर है, इसलिए उन्होंने नए तरह का व्यवसाय करने का मन बनाया, उसके लिए उन्हें कुछ तकनीकी ज्ञान की जरूरत थी, सो उन्होंने ट्रेनिंग ली, अपना स्किल-सेट बढ़ाया और अब वे जल्दी ही नया व्यवसाय शुरू करने वाले हैं। सैर करते हुए मेरी भेंट इन दो सज्जनों से हुई

जो सज्जन पहले मिले, वो अमीर हैं, लेकिन परेशान हैं, दूसरे सज्जन जो बाद में मिले वो ज्यादा अमीर नहीं हैं, पिछला बिजनेस भी बंद है, नया बिजनेस अभी शुरू होना है, फिर भी वो चहक रहे थे, खुशमिजाजी से बात कर रहे थे। एक आदमी अमीर और साधन संपन्न होने के बावजूद खुश नहीं है, दूसरे आदमी के पास फिलहाल कमाई का कोई साधन नहीं है, व्यवसाय बंद है, नया अभी शुरू होना है, वह ज्यादा अमीर भी नहीं है, तो भी एकदम खुश है, प्रसन्न है। सवाल है कि खुश कैसे रहें, जीवन की समस्याओं से कैसे निपटें और समस्याओं के बावजूद खुश रहना कैसे सीखें। विज्ञान का मानना है कि आप कोई काम कर रहे हों, काम कठिन हो या नापसंद हो, उसके बावजूद आपने अगर पूरा कर लिया तो खुशी होती है। आप अपनी देखभाल करें या मनपसंद भोजन करें तो भी खुशी मिलती है और अपनी छोटी-छोटी सफलताओं से भी आपको खुशी मिलती है।
क्यों होता है ऐसा? विज्ञान का मानना है कि ऐसी हर स्थिति में हमारा दिमाग डोपामाइन नाम का एक कैमिकल रिलीज़ करता है जिसे विज्ञान 'रिवार्ड कैमिकल' कहता है। यानी आपने कोई कठिन काम सफलतापूर्वक पूरा कर लिया, किसी क्लायंट से आपको आर्डर मिल गया, कोई डील फाइनल हो गई, तो आपका दिमाग आपको पुरस्कार देता है, और वो पुरस्कार है खुशी। इसी तरह जब आप अपनी देखभाल करते हैं, मनपसंद खाना खाते हैं या आपको कोई मनचाही सफलता मिलती है तो भी हमारा दिमाग डोपामाइन नाम का कैमिकल रिलीज करता है और हम खुश हो जाते हैं। अगर आप ध्यान करें, हल्की दौड़ लगाएं, तैराकी करें या साइकिल चलाएं, हल्की धूप में बैठें, प्रकृति के सानिध्य में जाएं, पेड़-पौधों, फूलों के बीच जाएं तो आपका दिमाग सीरोटोनिन नाम का कैमिकल रिलीज करता है जो आपका मूड सैट कर देता है। अगर आप अपने घरेलू पालतू पशु के साथ खेलें, छोटे बच्चे के साथ खेलें, किसी प्रिय व्यक्ति का हाथ पकड़ें, किसी को गले लगाएं और किसी की सच्ची प्रशंसा करें या शाबाशी दें तो भी आप खुश हो जाते हैं क्योंकि तब हमारा दिमाग औक्सीटोसिन नाम का कैमिकल रिलीज करता है, जिसे वैज्ञानिक लोग 'लव कैमिकल' मानते हैं। अगर आप कोई व्यायाम करें या हंसें, कोई कामेडी देखें या गहरे रंग की चाकलेट खाएं तो हमारा दिमाग एंडॉरफिन नाम का कैमिकल रिलीज करता है। वैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि यह एक 'पेन किलर' का काम करता है जिससे हमें खुशी मिलती है। ये चार कैमिकल खुशी देने वाले कैमिकल हैं।
अकेलापन महसूस होने की स्थिति में या उदासी की हालत में इनमें से कुछ भी करें, यानी सैर करें, व्यायाम करें, तैराकी करें, प्रकृति का आनंद लें, बच्चों के साथ खेलें, किसी से गले मिलें तो आपका मूड बदल जाएगा और आपको खुशी मिलेगी। जीवन है तो समस्याएं भी होंगी ही, चुनौतियां भी होंगी, कठिनाइयां भी होंगी, अड़चनें भी होंगी। यह समझना आवश्यक है कि कोई समस्या आए तो हमें क्या करना चाहिए। समस्याएं सुलझाने का चरणबद्ध जो वैज्ञानिक तरीका मनोवैज्ञानिकों ने सुझाया है, अब मैं उसकी चर्चा करूंगा। पहला चरण है यह स्वीकार करना कि समस्या हमारी है और इसे सुलझाने की जिम्मेदारी भी हमारी ही है। यह पहला कदम है, इसे स्वीकार किए बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते। यह मानना जरूरी है कि समस्या हमारी है और इसे सुलझाना भी हमको ही है। दूसरा चरण है कि हम समस्या को समस्या के रूप में देखना बंद करें और इसे एक चुनौती मानें। दृष्टिकोण के इस परिवर्तन से ही मानो जादू हो जाता है। जब हम किसी अड़चन को समस्या मान लेते हैं तो हम घबरा जाते हैं। घबरा जाने का नुकसान यह होता है कि हमारी सोचने-समझने और सही निर्णय लेने की शक्ति कमजोर हो जाती है। इसलिए अड़चनों को समस्या मानने के बजाय अगर हम चुनौती मान लें तो हमारा दिमाग खुल जाता है और हम अड़चन दूर करने के तरीकों के बारे में सोचने लगते हैं।
हम कई तरीकों से कोशिश करने लगते हैं, खोज करने लगते हैं। यह समझना लाभदायक है कि कोई बड़ी समस्या अक्सर कई समस्याओं का जोड़ होती है, उसके कई चरण होते हैं। तीसरा महत्त्वपूर्ण कदम यह है कि हम समस्या को छोटे-छोटे हिस्सों में बांट लें और फिर उसके एक-एक हिस्से का समाधान करते चलें। समस्याएं हल करने का चौथा चरण यह है कि हम उस चुनौती को दूर करना अपना लक्ष्य बना लें। यह वह स्थिति है जहां हम मनोविज्ञान का सहारा लेते हैं। इस चरण में हम यह कल्पना करते हैं कि हमने इस अड़चन को दूर कर लिया, इस समस्या से पार पा लिया, हम जीत गए और अगले यानी, पांचवें स्टैप में हम उस लाभ की कल्पना करते हैं, कि काम में सफलता मिल जाने के बाद हमें क्या-क्या फायदे होंगे, क्या आराम मिलेगा, क्या सुख मिलेगा। जब हम कल्पना में अपनी जीत देखते हैं और उस जीत से होने वाले फायदे देखते हैं तो हमारा निश्चय पक्का हो जाता है, हम अड़चनों से लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं और यह कल्पना हमारी सफलता की सीढ़ी बन जाती है। मनोविज्ञान की भूमिका यहीं तक है, इसके बाद फिर एक्शन शुरू हो जाती है। अगर हम संयम से, धैर्यपूर्वक काम शुरू कर दें तो अड़चनों से पार पाना आसान हो जाता है और जीवन खुशहाल हो जाता है। जीवन में खुश होने और सुखी रहने का यह गुरुमंत्र हम याद रखेंगे तो सफलता के शिखर छू लेंगे। यही कीजिए।
पी. के. खुराना
राजनीतिक रणनीतिकार
ईमेलः [email protected]


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