सम्पादकीय

नन्हा बचपन, ज्यादा बोझ

Gulabi
26 Feb 2022 7:00 AM GMT
नन्हा बचपन, ज्यादा बोझ
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नन्हा सा वजूद ढेर सारी जिम्मेदारी, बात-बात पर टोका-टाकी
नन्हा सा वजूद ढेर सारी जिम्मेदारी, बात-बात पर टोका-टाकी, हर क्षण प्रश्नों के उत्तर की चाह करना, छोटी सी जान से ज्यादा की अपेक्षा करना, हर घर की कहानी हो गई है. प्रायः घर में शिशु के जन्म के बाद खुशियों की वजह से बहुत लाड़ प्यार से बच्चों को पाला जाता है, फिर थोड़ा बड़े होने पर एकदम ही उन्हें बेहतर बनाने की लालसा प्रबल हो जाती है. उस अबोध से उन्हीं के उज्जवल भविष्य की असंख्‍य उम्मीदें कर ली जाती हैं, जो तनाव का कारण हो जाती हैं. ये तनाव बड़ों की ही नहीं, बच्चों की जिंदगी का भी हिस्सा बन जाता है, जो उचित नहीं है.
पढ़ाई के प्रति सकारात्मक सोच हो, किंतु ये बच्‍चों के लिए बोझ बन जाए, बच्चे पढ़ाई से कतराने लगें, रुचि ना लें, ये किसी के भी हित में नहीं है, ना माता-पिता के, ना बच्चों के और ना समाज के. बच्चों का मन वैसे भी पढ़ाई में कम लगता है, उस पर आरंभ से ही उन पर अच्छे नंबरों का दवाब बना दिया जाए तो अविकसित मन-मस्तिष्क पढ़ाई से दूरी बना लेता है. बच्चों और अपनी जिम्मेदारियों को सरलता की परिभाषा शुरू से ही समझाते चलें, जैसे-जैसे बच्चा वृद्धि को प्राप्त हो रहा हो, उससे वही मिठास भरा सहज, स्‍वभाविक, सरल, सामान्य व्यवहार करें.
पढ़ाई के लिए एकदम से ही कठिन निर्णय ना लिया जाए. पढ़ाई के लिए उसके पीछे ही ना पड़े. घर को उसकी पाठशाला ना बनाएं. बच्चे की उम्र को समझकर उसके अस्तित्व को जानकर खेल-खेल में पढ़ाई को रुचिकर बनाकर बच्चों को सिखाया जाए. उस पर ज्यादा बोझ ना डाला जाए. मासूम बचपन को विचारों की, पुस्तकों की, प्रश्नों की जंजीरों में ना बांधा जाए, ज्यादा अपेक्षाएं ना की जाएं, उनका बचपन उनसे ना छीने. छोटी उम्र में एडमिशन होमवर्क, पढ़ाई का तनाव उनकी मासूमियत ना छीन ले, इस हेतु बच्चों के सर्वांगीण विकास पर घ्यान दें.
उन्हें घर-आंगन के खेल दें, मिट्टी के खिलौने दें, अपनों का सहयोग दें, जीवन शैली का सरलीकरण दें, पढ़ाई की मनोरंजकता प्रदान करें, सख्ती से प्रतियागिताओं को पूर्ण कराना, बच्चों के मन में पढ़ाई के प्रति भय उत्पन्न कर देता है. कई बार बच्चे की खुशी को जाने बिना जबरदस्ती ही उन पर पढ़ाई करने का जोर दिया जाता है, एक-एक अंक के लिए उन्‍हें रटाया जाता है. सुहास जो सहपाठी है कहीं उसके नंबर ज्यादा ना आ जाएं, वो ज्यादा नंबर ले आया तो कहीं मेरा बेटा पिछड़ ना जाए, पढ़ाई के लिए ऐसा भाव बच्चे के व्यक्तित्व के विकास को रोक देता है.
कई बार मां बच्चे के लिए पढ़ाई का ज्यादा ही दवाब बना देती है. बच्चा आनाकानी करने लगता है, बच्चे के समुचित विकास के लिए उसे खुला आसमान दें. उसकी आयु का ध्यान रखते हुए उसके मनोभावों को समझें. प्रश्नो की बौछारों से उसके कोमल मस्तिष्क को उलझाना नहीं चाहिए, हर क्षण पढ़ाई का ही पिंजरा उसके लिए ना बनाएं, बच्चे अपने को आजाद पंछी सा महसूस करे, इस प्रकार का वातावरण उनके लिए तैयार करें. कई घरों में कम नंबर आने पर माता-पिता बहुत तनाव में आ जातें हैं और बच्चे को भी दर्द दे देते हैं.
माता-पिता की सख्ती से बच्चा उनसे बहुत सी बातें छिपाने लगता है, वे कभी अपनी किताबें ही छुपा देते हैं, कभी बहाने ढूंढने लगते हैं. एक बार एक किस्सा संज्ञान में है. घर की सख्ती और डर से एक बच्चे ने घर ही छोड़ दिया, बच्चा गाड़ी में बैठकर कहीं चला गया, घर पर इंतजार ही होता रहा, नहीं लौटा कहीं छुपकर बैठ गया. एक परिचित की दृष्टि उस पर पड़ी तो वह उसे लेकर घर आए. कई घंटे की दूरियों ने अहसास कराया कि जिस बच्चे के लिए सख्ती करते रहे, जब वो ही नहीं रहेगा तो क्या करेंगे. आरंभ से ही बच्चों के प्रति कोमल रहें पढाई मनोरंजक रुप में प्रस्तुत करें.
वाणी ने अपने बच्चे को जिस तरह का वातावरण दिया, उससे उसके आस-पास वाले भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके. छोटे से बच्चे को जब सुलाती तो लोरियों में ही कविताएं, वर्णमाला के शब्द, गिनती शामिल कर लेती. थोड़ा बड़े होने पर इन्हें ही नियम से बच्चे को रोज सुनाती. लोरी के द्वारा ही वह सब सिखा दिया जो आगे चलकर पढ़ाई बनती, उसे तो बच्चे ने खेल-खेल में ही सीख लिया. उसकी जिंदगी की आदत ही बन गई, वाणी जो भी पढ़ाती हंसकर. जब बेटे का मन होता, तब पढ़ाती, जब पढ़ने लायक हुआ उसे असहज ही नहीं लगा, सब कुछ रुचिकर लगा.
वैसे भी, वाणी ने कभी बच्चे पर जबरदस्ती नहीं की, उसके मन को ही प्रमुखता दी, आज बच्चे उच्च शिक्षा पाकर भी विनम्र हैं. बहुत से घरों में अपनी इच्छाएं बच्चों पर लादी जाती हैं, जिस विषय में बच्चे की ज्यादा रुचि नहीं है, उसको भी रटाया जाता है. रुचि को प्रमुखता दें, जिस विषय को बच्चा उत्साह से पढ़ता हो, उस पर ज्यादा ध्यान दें. अपने फैसले लेकर बच्चों के जीवन को अपने अनुरुप ना ढालें.
कुहू की मम्मी कुहू के लिए बड़ी परेशान रहती थी, हर वक्त कला ही बनाती रहती है, और विषय तो पढ़ना ही नहीं चाहती. पढ़ती भी है तो काम पूरा करते ही कला बनाने में लग जाती है. एक-एक आकृति इतनी सुंदर बनाती है कि मन प्रसन्न हो जाता, पर कला से क्या और विषयों में भी तो पारंगत होनी चाहिए. एक दिन मम्मी की सहेली ने कहा इसकी कला तो देख कितनी गजब की है. कुहू छोटे-छोटे प्रोग्राम में भाग लेकर जीतने लगी. कुहू की मां को भान हुआ कि भविष्य सिर्फ रटने में ही नहीं है.
बच्चे की योग्यता उसे उसकी पसन्द के क्षेत्र में भी अग्रणी बना सकती है. उन्‍होंने निश्चय कर लिया कि वे कुहू को सब विषय पढ़ाएंगी, पर विशेष ध्यान कला पर ही देंगीं. उनकी परेशानी दूर हो गई, कुहू भी मन लगाकर पढ़ने लगी. बच्चे फुलवारी का वो नाजुक पौधा हैं, जिन्हें बहुत कोमल खाद की जरुरत होती है. उनकी प्रकृति खिलने की होती है, मुरझाने की नहीं. उन्हें आबाद रखने के लिए संतुलन की आवश्यकता है और ये संतुलन हमें बच्चे की रुचि के अनुकूल ढलने में ही मिलेगा.


(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
रेखा गर्ग लेखक
समसामयिक विषयों पर लेखन. शिक्षा, साहित्य और सामाजिक मामलों में खास दिलचस्पी. कविता-कहानियां भी लिखती हैं.
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