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एक साथ आना चाहिए, जहां सभी नागरिक और समुदाय भाग लेते हैं।'
कन्नड़ साहित्य जगत में देवानूर महादेव ने पहले लघुकथाओं और उपन्यासिका कुसुमबले के माध्यम से अपनी पहचान बनाई, जिसमें मौलिकता और शक्ति थी। उसके बाद से उन्होंने अपनी राजनीतिक अखंडता और नैतिक साहस का प्रदर्शन कर, सरकारी प्रलोभन के आगे झुकने से इनकार कर, और वंचितों तथा शोषितों से अपनी पहचान जोड़कर सम्मान अर्जित किया है। वह अंतर-धार्मिक सद्भाव के भावुक समर्थक हैं, बहुलतावाद के प्रति उनकी प्रतिबद्धता हाल ही में हलाल मटन खरीदने के लिए मैसूर के एक बाजार में जाने के दौरान देखी गई, जब हिंदुत्व के उग्र समर्थक इस पर प्रतिबंध की मांग कर रहे थे।
इसी जुलाई में महादेव ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर अपने दृष्टिकोण पर केंद्रित एक पुस्तिका प्रकाशित करवाई। इसके प्रकाशित होने के एक हफ्ते बाद द न्यूज मिनट वेबसाइट ने लिखा : आरएसएस की आलोचनात्मक पड़ताल करने वाली इस पुस्तिका के जारी होने के बाद से इसकी भारी बिक्री हो रही है, जिसके चलते राज्य का दक्षिणपंथी पारिस्थितिकी तंत्र पुस्तिका और उसके लेखक, दोनों को बदनाम करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। सत्ताधारी भाजपा के सांसदों के साथ-साथ जो लोग राजनीतिक इंद्रधनुष के दूसरी तरफ 'बुद्धिजीवियों' के रूप में जाने जाते हैं, उन्होंने लेखक को निशाने पर लिया है।
इसके बावजूद इस पुस्तिका की दसियों हजार प्रतियां बिक चुकी हैं, जिन पर राज्य के कोने-कोने में चर्चा और बहस हो रही है। कन्नड़ न जानने वाले हम जैसे लोगों के लिए प्रसन्नता की बात यह है कि महादेव का यह पर्चा अब तमिल, तेलुगू और मलयालम सहित अन्य भाषाओं में उपलब्ध है। हाल ही में मैंने इसका एसआर रामकृष्ण द्वारा किया गया अंग्रेजी अनुवाद पढ़ा, जो कि जल्द ही पुस्तिका के रूप में प्रकाशित होगा।
इसका मुख्य पाठ दो विचारकों महादेव सदाशिवराव गोलवलकर और विनायक दामोदर सावरकर के उद्धरणों से शुरू होता है, जिन्होंने हिंदुत्व को उस तरह गढ़ा, जैसा आज वह दिखता है। हम यहां गोलवलकर को जाति व्यवस्था और उसके अंतर्निहित पदानुक्रम को इस आधार पर सही ठहराते हुए पाते हैं कि इन्हें शास्त्रों की स्वीकृति प्राप्त है, और सावरकर मनुस्मृति की पूजा करने का आग्रह करते हैं, बावजूद इस तथ्य के कि जाति और लैंगिक असमानता का समर्थन भारतीय संविधान में अनैतिक है।
महादेव ने सावरकर का जो उद्धरण चुना है, वही बहुत कुछ कहता है : 'मनुस्मृति वह शास्त्र है, जो हमारे हिंदू राष्ट्र के लिए वेदों के बाद सबसे अधिक पूजनीय है और जो प्राचीन काल से ही हमारी संस्कृति-रीति-रिवाज, विचार और व्यवहार का आधार बना हुआ है। सदियों से इस पुस्तक ने हमारे राष्ट्र के आध्यात्मिक और दैवीय पथ को संहिताबद्ध किया है। आज भी करोड़ों हिंदू अपने जीवन और व्यवहार में जिन नियमों का पालन करते हैं, वे मनुस्मृति पर आधारित हैं। आज मनुस्मृति हिंदू कानून है। वह मूलभूत है।' आरएसएस के विचारक गोलवलकर एक अन्य उद्धरण में राज्यों के संघ की संघीय प्रणाली को 'जहरीला' कहते हैं, और इसके बजाय 'एक देश, एक राज्य, एक विधानमंडल, एक कार्यपालिका के समरूप सिद्धांत पर आधारित एकात्मक राजनीतिक प्रणाली का आग्रह करते हैं।'
देवानूर महादेव आरएसएस के अपरिष्कृत विमर्श की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं। गोलवलकर की किताब बंच ऑफ थॉट्स को संघ की बाइबिल कहा जाता है, लेकिन जैसा कि महादेव लिखते हैं, 'यदि आप इस किताब में यह तलाशने की कोशिश करें कि जिसे "विचार" या "चिंतन" कहा जा सकता है, तो आपको बहुत निराशा होगी। यह केवल आकस्मिक, खतरनाक मत प्रस्तुत करती है, वह भी बीते हुए समय के।' (उस किताब को कई बार पढ़ने के बाद मैं उनके इस निष्कर्ष से सहमत हूं) महादेव आरएसएस के बारे में कहते हैं कि 'उसकी विचारधारा इतनी संकीर्ण है कि किसी और की तो बात छोड़ें, कोई भी समझदार ब्राह्मण अतीत के ऐसे खतरनाक दृष्टिकोण को स्वीकार नहीं कर सकता, जो वह प्रस्तुत करता है।' महादेव ने भारतीय संविधान के एक रक्षक के नजरिये से लिखा है कि यह दस्तावेज वास्तविकता में बहुलतावाद, जाति तथा लैंगिक समानता, अभिव्यक्ति की आजादी, और संघवाद के मूल सिद्धांत के घोर विरोधी हैं।
महादेव तो यह भी कहते हैं, 'वे भारतीय संविधान को जितना अधिक नुकसान पहुंचाते हैं, वे उतना ही अधिक विजेता महसूस करते हैं।' महादेव लिखते हैं, 'संविधान को कमजोर करने के लिए आरएसएस और उसके संबद्ध अकथनीय कार्य कर रहे हैं। वे ऐसा खेल खेल रहे हैं, जैसा उन्हें नहीं करना चाहिए। वे उस संघवाद को उलटने की कोशिश कर रहे हैं, जो राज्यों और केंद्र सरकार को बांधता है और जो संविधान का आधार है।' महादेव टिप्पणी करते हैं कि '2014 में सत्ता में आने के बाद से भाजपा संघवाद को ध्वस्त कर, और संविधान के महत्वपूर्ण हिस्से का निर्माण करने वाली संघीय प्रणाली को कमजोर कर गोलवलकर को गुरु दक्षिणा दे रही है।'
महादेव सत्य के प्रति कम सम्मान, ऐतिहासिक रिकॉर्ड से छेड़छाड़ और फेक न्यूज के मुद्दे को रेखांकित करते हैं, हिंदू दक्षिणपंथी जिसके लिए जाने जाते हैं और अब जिसे व्हाट्सएप और फेसबुक के जरिये फैलाया जाता है। वह आरएसएस द्वारा नियंत्रित भाजपा सरकारों द्वारा जारी पाठ्यपुस्तकों में प्रचारित कई झूठों की जांच करते हैं, जो हमारे बच्चों के मन में उन भारतीयों के प्रति घृणा का जहर घोलने की कोशिश करते हैं, जो हिंदू नहीं हैं।
महादेव को इस बात का भी श्रेय जाता है कि उन्होंने स्वीकार किया है कि आरएसएस और भाजपा के अलावा अन्य राजनीतिक ताकतों ने लोकतांत्रिक पतन में योगदान दिया है। जैसा कि उन्होंने लिखा: 'जब आप भारत के राजनीतिक दलों को देखते हैं, तो आप ये पहलू देखते हैं: 1. एकल-व्यक्ति के नेतृत्व वाली पार्टी, 2. परिवार-नियंत्रित पार्टी, 3. एक संविधान-विरोधी संगठन के नेतृत्व वाली पार्टी। ये तीनों लोकतंत्र के लिए हानिकारक हैं।'
हालांकि, यह भाजपा ही है, जो केंद्र और कई बड़े राज्यों में भी सत्ता में है। संघ परिवार की आज जो प्रमुख स्थिति है, उसे देखते हुए महादेव के लिए यह अनिवार्य था कि वह आरएसएस की घातक सामाजिक विचारधारा और भाजपा के माध्यम से इसकी खतरनाक राजनीतिक अभिव्यक्ति पर ध्यान केंद्रित करें। महादेव आजीवन आरएसएस प्रचारक नरेंद्र मोदी द्वारा सत्ता में आने पर किए गए वादों की भी बात करते हैं, जैसे कि काले धन की वापसी, कृषि आय को दोगुना करना, लाखों नौकरियों का सृजन।
ये वादे पूरी तरह से अधूरे रह गए हैं। इसके बजाय, आर्थिक गैरबराबरी और धन की असमानताएं खतरनाक रूप से बढ़ी हैं। मोदी के प्रधानमंत्रित्व काल के प्रमुख लाभार्थी गौतम अदाणी और मुकेश अंबानी (दोनों संयोगवश प्रधानमंत्री के गृह राज्य, गुजरात से) जैसे लोग रहे हैं। हालांकि यह आरएसएस और भाजपा की आर्थिक आलोचना के बजाय वैचारिक आलोचना है, जो कि केंद्र में है। यह आरएसएस के समग्र और समरूप आवेगों का एक शानदार विश्लेषण है।
हाल ही में आरएसएस सरसंघचालक के निमंत्रण से प्रेरित होकर, नई दिल्ली में संभ्रांत मुस्लिम पुरुषों का एक समूह यह सोचकर चला आया कि संघ परिवर्तन के लिए उत्तरदायी है। उन्हें देवानूर महादेव का पर्चा पढ़ना चाहिए। हर भारतीय को भी, चाहे वह मुस्लिम हो, हिंदू हो या कोई भी। दशकों के अध्ययन और अनुभव से मिली सीख से परिपूर्ण है महादेव की पुस्तिका। उन्होंने सबसे प्रभावशाली हिंदुत्व विचारकों के ग्रंथों को ध्यान से पढ़ा है; और उन्होंने व्यक्तिगत रूप से कर्नाटक में संघ परिवार के संचालन को देखा है।
महादेव जानते हैं कि यदि कर्नाटक में संघ सफल होता है, तो राज्य की बहुलतावादी और मानवतावादी परंपराओं, इसकी समृद्ध साहित्यिक और बौद्धिक संस्कृति का अंत होगा। उनकी इस टिप्पणी पर गौर किया जा सकता है : 'कम से कम अब, भविष्योन्मुखी समूहों, संगठनों और दलों को छोटी धाराओं से ऊपर उठना चाहिए और उन्हें सामूहिक रूप से एक नदी के रूप में बहना चाहिए।
इसके लिए उन्हें खुद के शुद्ध और दूसरों से श्रेष्ठ होने के अस्वास्थ्यकर रवैये को त्यागना होगा। उन्हें अपने नेतृत्व के झगड़ों को खत्म करना होगा। उन्हें संघवाद और भारतीय संविधान और विविधता को बचाने के लिए एक व्यापक गठबंधन में शामिल होना चाहिए, जो कि भारत की प्राणवायु है। सहिष्णु, प्रेमपूर्ण और ऊंच-नीच के भेदभाव से मुक्त संस्कृति बनाने के लिए उन्हें एक सहभागी लोकतंत्र बनाने के लिए एक साथ आना चाहिए, जहां सभी नागरिक और समुदाय भाग लेते हैं।'
सोर्स: अमर उजाला
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