सम्पादकीय

मध्यम वर्ग को धैर्य से सुनें

Rani Sahu
24 May 2023 5:44 PM GMT
मध्यम वर्ग को धैर्य से सुनें
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By: divyahimachal
राजनीतिक नुमाइश में हिमाचल के मध्यमवर्गीय समाज का मूल्यांकन अगर पार्टियां कर लें, तो सत्ता की रुह और विपक्ष के तेवर आत्मनिरीक्षण कर पाएंगे, वरना घात-प्रतिघात में प्रदेश के जनादेश का मूल्यांकन कभी नहीं होगा। हिमाचल भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी के सुर स्वाभाविक तौर पर कांग्रेस सरकार के विरोधी ही होने थे, लेकिन अपनी हार या उनकी जीत में मंथन के चिराग अगर दस गारंटियों को गिनते रहेंगे, तो यह मध्यम वर्गीय हिमाचली का एक तरह से अपमान ही है। हम पहले भी कह चुके हैं कि सत्ता और विपक्ष को अपनी हार-जीत के पीछे इस वर्ग की अहमियत का संज्ञान लेना चाहिए। कम से कम अब एक ऐसा हिमाचल सामने आ चुका है, जो राष्ट्रीय राजनीति से अलग प्रादेशिक सूझबूझ से चुनावों के नतीजों को मोड़ता है। यह कहना व समझना आसान हो सकता है कि कांग्रेस की दस गारंटियों से ही सत्ता परिवर्तन हो गया या यह इतना बड़ा नहीं, छोटा सा बदलाव है, कह कर भाजपा दिल को तसल्ली दे सकती है, लेकिन जरा जिगर पर हाथ रखकर पूछें कि आखिर प्रदेश की जनता क्यों कांग्रेस के मोहल्ले में चली गई। दूसरी ओर यही भ्रम कांग्रेस को भी अगर है कि जीत का सारा कर्मकांड ओपीएस समेत तमाम गारंटियों ने ही किया है, तो यह गलत अवधारणा है। सरकारी कर्मचारियों की संख्या से तीन गुना से भी अधिक पढ़े-लिखे बेरोजगारों को ओपीएस जैसे मुद्दों से क्या लेना।
कोई बेरोजगार युवती महीने के पंद्रह सौ लेने की चाह में यह भूल जाएगी कि वह स्कूल-कालेज व अन्य प्रोफेशनल कोर्स करके, ऐसे किसी चुग्गे के आगे हारने को तैयार है। कांग्रेस की कई गारंटियां अप्रत्याशित, अव्यावहारिक और असंगत मानी जा सकती हैं और जिनके प्रति समाज मरा नहीं जा रहा था, फिर भी मध्यम वर्गीय मूल्य, सरोकार, महत्त्वाकांक्षा और जीवन के प्रति अच्छे भविष्य की चिंता लाजिमी तौर पर भिन्न है। वह हर सरकार को अपने करीब देखना चाहती है, लेकिन कई बार या हर बार मुख्यमंत्रियों तक को एक ही क्षेत्र विशेष के प्रति फर्ज निभाते हुए देखकर खुद को ठगा हुआ महसूस करती है। सरकारों में निरंतरता का अभाव जब जनता को भी विपक्षी ठहरा देता है, तो इस रंज की मुलाकात अगले चुनाव में होती है। अक्सर विपक्षी विधायक के विधानसभा क्षेत्र को ही नहीं, बल्कि अब तो सत्ता पक्ष में भी जुंडलियों की कुंडलियां देखी जाती हैं। एक ही सरकार के प्रदर्शन पर अगर पूरा मंडी जिला रिवाज बदल देता है, तो दूसरी ओर कांगड़ा इतना ही विरोध क्यों अपना लेता है, इसका विश्लेषण भाजपा को करना होगा। पिछली सत्ता और मौजूदा सरकार के बीच 0.9 प्रतिशत मतों का अंतर अगर महीन होता तो सीटों की संख्या भी यही कहती, लेकिन अधिकांश मंत्रियों का हारना कई अनसुलझे प्रश्न उठाता है। क्या ये मंत्री शक्तिविहीन थे या इनके पल्ले वित्तीय संसाधनों की कमजोरी रही। यह केवल भाजपा सरकार की ही शिनाख्त नहीं, अमूमन हिमाचल की कमोबेश सभी सरकारों के आचरण में यही कमजोरी पल्लवित हो रही है।
इसी कारण मंत्रियों की प्रासंगिकता व प्रभाव न तो अपने जिला में और न ही प्रदेश में विभागीय दायित्व के जरिए दिखाई देता है। सरकारों के आदर्श में भाजपा यह विश्लेषण जरूर करे कि डबल इंजन सरकार के तौर पर ऊना-हमीरपुर रेल टै्रक, गगल एयरपोर्ट विस्तार, शिमला-धर्मशाला स्मार्ट सिटी परियोजनाएं, केंद्रीय विश्वविद्यालय, बागबानी के महत्त्वाकांक्षी प्रोजेक्ट तथा अनेक केंद्रीय परियोजनाएं सिरे क्यों नहीं चढ़ीं। क्यों सरकार में रहते हुए चार उपचुनाव हार गए या इन्वेस्टर मीट करवाकर तथा केंद्र सरकार का प्रश्रय पाकर भी प्रदेश का कर्जा शर्मनाक स्थिति तक पहुंच गया। इन सब प्रश्नों के उत्तर तब भी जनता के पास थे और अब भी, जबकि सुक्खू सरकार आ गई है, मध्यम वर्गीय समाज सब जानता है कि हो क्या रहा है। विडंबना यह जरूर है कि हिमाचल का पढ़ा-लिखा समाज न तो अपने लायक स्थानीय निकायों के और न ही विधानसभा व लोकसभा के लिए उपयुक्त चेहरे चुन पाता है। बार-बार राजनीति की गंदी थाली में अच्छा खाना परोस कर भी उसे वही जूठन चाटनी पड़ती है, जो संवेदनशील मध्यम वर्ग की सेहत के लिए हर बार अपच पैदा करती है। ऐसे में अब वक्त आ गया है कि सत्ता और विपक्ष एक-दूसरे पर भारी पडऩे के लिए या खुद को खरा साबित करने के लिए जनता की सोच, निर्णय व विवेक क्षमता को चौराहे पर नहीं छोड़ सकते। इसी जनता का केवल गारंटियों के लिए भाजपा से मोहभंग नहीं हुआ और आइंदा केवल गारंटियों के भरोसे कांग्रेस भी सत्ता स्थायित्व प्राप्त नहीं कर सकती। जनता बहुत कुछ कहने में सक्षम है, उसे धैर्य से सुनें।
Rani Sahu

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