सम्पादकीय

सिंह की दहाड़ !

Rani Sahu
16 July 2022 1:57 PM GMT
सिंह की दहाड़ !
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अभी दो दिन पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्माणाधीन संसद भवन के ऊपर निर्मित भारत के प्रतीक चिन्ह अशोक स्तम्भ का अनावरण किया

अभी दो दिन पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्माणाधीन संसद भवन के ऊपर निर्मित भारत के प्रतीक चिन्ह अशोक स्तम्भ का अनावरण किया। 6.9 मीटर ऊंचे प्रतीक चिह्न में 9500 किलोग्राम तांबा लगा है। प्रधानमंत्री मजदूरों के बीच पहुंचे और संसद भवन निर्माण में उनके योगदान की प्रशंसा की। इस अवसर पर एक मजदूर ने मोदी से कहा- आज हम यहाँ हमारी कुटिया पर आपके पधारने पर ऐसे प्रसन्न हैं जैसे राम के आने से शबरी प्रसन्न हुई थी। मोदी ने कहा- आप धन्य हैं कि लोकतंत्र के इस मन्दिर को अपनी कुटिया मानते हैं। यदि हर नागरिक का यही विचार हो तो कितना अच्छा हो।

सूर्य की तपती कड़ी धूप में पसीना बहाने वाला एक सामान्य नागरिक तो संसद को अपनी कुटिया मानता है किन्तु जिन्हें जनता लोकतंत्र के मन्दिर में भेजती है वे कैसे हंगामा,
गुल-गपाड़ा मचा कर, मेजों पर चढ़कर किस तरह कूद फांदकर वहां भिंडी बाजार का दृश्य उपस्थित करते हैं यह संसद के दूरदर्शन से देशवासी मन-मसोस कर देखने को बाध्य होते हैं।
नई संसद और नये राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न को लेकर ये भाषण वीर कैसे चुप रहते? कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी, जय राम रमेश, टी.एम.सी. के जवाहर सिरकार व महुआ मोइत्रा, ओवैसी ने कहा है जो काम लोकसभा अध्यक्ष को करना था वो मोदी ने क्यों किया? दूसरे, अशोक स्तम्भ के शेर तो बड़े दयालु, उदार और शान्त-सौम्य प्रकृति के थे। मोदी के शेर तो खूंखार और आदमखोर दिखाई पड़ते हैं।
मोदी विरोधी जरगे को छोड़ कर हर शख्स शेर की प्रकृति से वाक़िफ़ है। शेरों के बारे में कई कहावतें प्रचलित हैं, जैसे- शेर का मुंह किसने धोया, शेर भूखा मर जायेगा लेकिन घास नहीं खायेगा, एक जंगल में एक ही शेर राज करता है, वगेरह। कुछ फ़र्जी नेताओं के लिये भी एक कहावत है- कागज़ी शेर !
सिंह यानि शेर के विषय में सहस्रों वर्ष पुरानी एक कहावत है:
नाभिषेको न संस्कार: सिंहस्य क्रियते मृगैः
विक्रमार्जित-सत्व्स्य स्वयमेव मृगेंद्रता।
अर्थात् शेर को जंगल का राजा बनने के लिये राज्याभिषेक समारोह की आवश्यकता नहीं। वह अपने कार्यों तथा साहस से स्वयं राजा बनता है।
नये राष्ट्र प्रतीक का सन्देश स्पष्ट है। कुछ
लोग समझ कर भी न समझने का ढोंग कर रहे हैं।

गोविंद वर्मा
संपादक 'देहात'


Rani Sahu

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