सम्पादकीय

जैसे डॉक्टरों में सबसे अलग हैं डॉ. गोस्वामी, वैसे ही नेताओं में सबसे अलग हैं मोदी

Rani Sahu
21 Dec 2021 12:54 PM GMT
जैसे डॉक्टरों में सबसे अलग हैं डॉ. गोस्वामी, वैसे ही नेताओं में सबसे अलग हैं मोदी
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हम रोजाना नेताओं, वकीलों, आईएएस, आईपीएस अधिकारियों, कॉरपोरेट्स और उनके भ्रष्टाचार के बारे में बात करते हैं

प्रबीर के बसु हम रोजाना नेताओं, वकीलों, आईएएस, आईपीएस अधिकारियों, कॉरपोरेट्स और उनके भ्रष्टाचार के बारे में बात करते हैं. आइए, आज हम उन डॉक्टरों से रू-ब-रू होते हैं, जिनका पेशा सबसे नेक बताया जाता है. मैं उन तमाम डॉक्टरों में से महज सात डॉक्टरों के बारे में बता रहा हूं, जिनके साथ मेरा व्यक्तिगत अनुभव रहा या जिनके बारे में मैं जानता हूं.

केस स्टडी-1:
मेरा एक दोस्त मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद बिहार के सबसे बड़े औद्योगिक घराने में रेजिडेंट डॉक्टर बन गया. एक दिन मैनेजमेंट की लापरवाही से कुछ मजदूरों की मौत हो गई. मेरे दोस्त को मौत का कारण साबित करना था. कंपनी को भारी मुआवजे और खराब पीआर से बचाने के लिए उसे मजदूरों की मौत का कारण कुछ और बताने के लिए कहा गया. उसे डर था कि अगर उसने ऐसा नहीं किया तो उस पर हमला हो सकता है. किसी तरह वह पटना भाग गया. उसके बाद आने वाले डॉक्टर और सरकारी डॉक्टरों ने मिलकर वो काम कर दिया.
केस स्टडी-2:
यह भी पटना का ही मामला है. मेरा बेटा काफी बीमार था. मैंने अपने ड्राइवर को दवाइयां लाने के लिए भेजा, क्योंकि मैं अपने बेटे के पास रुकना चाहता था. वह उस दुकान पर दवा लेने गया, जिसकी सिफारिश खुद डॉक्टर ने की थी. जब वह दवाएं लेकर लौटा तो मैंने देखा कि कैश मेमो और दवा के बैच नंबर अलग-अलग थे. मुझे शक हुआ. मैंने ध्यान से देखा तो सभी दवाओं की एक्सपायरी डेट निकल चुकी थी. मैं इस मामले में कार्रवाई करना चाहता था. साफ था कि डॉक्टर को केमिस्ट से कमीशन मिल रहा था. हालांकि, डॉक्टर ने इसे अनजाने में हुई गलती बताया और मेडिकल शॉप ओनर को बख्शने की गुहार लगाई. मेरी पत्नी ने मुझ पर दबाव बनाया कि इस मामले में उलझकर मैं ज्यादा दुश्मन न बनाऊं.
केस स्टडी-3:
एक नामचीन सरकारी अस्पताल के डॉक्टर ने मेरी जांच कर बायोप्सी कराने की सलाह दी. उन्हें आशंका थी कि मुझे प्रोस्टेट कैंसर हो सकता है. एक खास टेस्ट सेंटर का नाम भी सुझाया. मुझे शक हुआ कि कुछ तो गड़बड़ है. मैं बिना टेस्ट कराए लौट आया (वैसे भी वो टेस्ट बेहद दर्दनाक होता है). इसके बाद मैंने एक यूरोलॉजिस्ट से सलाह ली. उन्होंने जांच कर बताया कि मुझे कोई दिक्कत नहीं है. यह 10 साल पहले की बात है.
केस स्टडी-4:
रिटायरमेंट के बाद मैं अपनी पत्नी के साथ यूरोप की यात्रा पर गया था. एयरपोर्ट पर मेरी मुलाकात एक डॉक्टर और उनकी पत्नी से हुई, जो एक दवा कंपनी द्वारा स्पॉन्सर्ड कॉन्फ्रेंस में शामिल होने जा रहे थे.
केस स्टडी-5:
मेरी नौकरानी के घर पैदा हुए नवजात की मृत्यु हो गई, क्योंकि डॉक्टर बच्चे की डिलीवरी कराने के काबिल नहीं था. उसने बच्चे को जबरदस्ती बाहर निकालने के लिए नर्स को मां के पेट पर बैठा दिया. मैं इस मामले को आला अधिकारियों के सामने उठाना चाहता था. लेकिन नौकरानी इसके लिए तैयार नहीं हुई. वह अस्पताल से मिलने वाली धमकियों से डर गई थी.
केस स्टडी-6:
मैंने गया जिले में एक पीएचसी का औचक निरीक्षण किया. मैंने देखा कि पीएचसी के लिए तीन डॉक्टर नियुक्त किए गए हैं, लेकिन वे लापता थे. स्थानीय मरीजों ने बताया कि कंपाउंडर अच्छा व्यक्ति है. वह ही मरीजों को अटेंड करता है. तीनों डॉक्टर कभी-कभी आते हैं, क्योंकि वे अपने-अपने गृहनगर में निजी प्रैक्टिस करते हैं.
ये सिर्फ उदाहरण हैं. आप रोजाना ही ऐसे तमाम मामलों के बारे में सुनते हैं.
लेकिन इन तमाम डॉक्टरों में से एक हैं मुंगेर जिला अस्पताल के सीएमओ डॉ. गोस्वामी. वह ईमानदारी, काबिलियत और संवेदना की मिसाल हैं. उन्हें सुश्रुत परंपरा का प्रतीक कहा जा सकता है. वह बिना कोई ब्रेक लिए पूरे दिन काम करते थे. वह मेडिकल कॉलेज के सबसे अच्छे छात्र थे. जब उनके बैचमेच पटना में लाखों रुपये कमा रहे थे, तब उन्होंने अपनी शपथ का पालन किया और मानवता की सेवा को चुना.
अब कल्पना कीजिए कि यही डॉ. गोस्वामी बिहार के स्वास्थ्य मंत्री बन जाएं और हेल्थ प्रोफेशन से जुड़े अपने विचारों को लागू करते हुए सुधारों की शुरुआत कर दें तो क्या होगा? हेल्थ सेक्टर में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मौजूद हर शख्स अपने स्तर पर उनकी छवि खराब करने की हरसंभव कोशिश करेगा. उनके बारे में झूठी बातें फैलाएगा. दावा किया जाएगा कि हेल्थ सेक्टर को बर्बाद करना उनका हिडेन एजेंडा है. उनके बेईमान होने समेत तमाम तरह के दावे किए जाएंगे. और अगर ये प्रयास असफल हो गए और जनता ने इन लोगों के झूठ पर भरोसा नहीं किया, तो शायद वो उन्हें अपने रास्ते से हटाने का फैसला ले लेंगे.
राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी के साथ भी बिल्कुल यही हो रहा है. वो देश में सुधार लाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन पक्षपाती मीडिया, भ्रष्ट राजनेता, बेशर्म नौकरशाह और बेईमान कारोबारी झुंड बनाकर उन पर निशाना साध रहे हैं.
सावधान रहिए दोस्तों. यह देश में बड़े बदलाव का दुर्लभ अवसर है. इसे व्यर्थ मत जाने दीजिए. अपना हित साधने वालों को सफल मत होने दीजिए. कहते हैं न कि लोकतंत्र की कीमत चुकाने के लिए निरंतर सतर्क रहना बेहद जरूरी है.
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