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एक सीमा के बाद चाहत को अचाह में जरूर बदला जाए
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
एक सीमा के बाद चाहत को अचाह में जरूर बदला जाए। हम मनुष्य हैं तो हमारे जीने के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं- व्यापार, नौकरी और पारिवारिक जीवन। इन सबमें चाहत काम करती है। व्यापार में उतार-चढ़ाव का महत्व है, नौकरी में उठा-पटक कभी खत्म नहीं होगी, परिवार में खींचतान चलती रहती है। तो इन तीनों से गुजरते हुए चौथा जीवन जरूर जी लीजिए जो है निजी जीवन, जहां परमात्मा के दर्शन की संभावना है। परमात्मा मतलब शांति, आंतरिक प्रसन्नता। किसी के भी भीतर परमात्मा ऐसे ही प्रकट नहीं हो जाता।
उसके लिए एक क्रम अपनाना पड़ता है। सबसे पहले स्वभाव में धैर्य उतारें। धैर्य धीरे-धीरे अपनेपन में बदलेगा। उसके बाद भक्ति आएगी, अगला चरण होगा परमात्मा। व्यापारिक जीवन का उतार-चढ़ाव समुद्र की तरह है, नौकरी की उठा-पटक नदी जैसी और परिवार की खींचतान झील की तरह है, लेकिन निजी जीवन झरने जैसा होता है। इसमें यदि भक्ति उतर आए तो फिर झरने-सा आनंद अपने भीतर से आने लगेगा और आप दुनिया के सारे काम करते हुए भी शांत रहेंगे।
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