सम्पादकीय

गणित का जीवन और जीवन का गणित

Rani Sahu
21 Dec 2021 7:01 PM GMT
गणित का जीवन और जीवन का गणित
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प्रतिवर्ष 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है

प्रतिवर्ष 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है। महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के जन्मदिवस को इस दिवस के रूप में मनाने के पीछे उनके गणित के क्षेत्र में किए गए उत्कृष्ट कार्य हैं, जिन्होंने विश्व में भारत का नाम ऊंचा किया। हालांकि भारतवर्ष में अनेक महान विभूतियों का जन्म हुआ है, जिन्होंने विज्ञान, अध्यात्म, योग, तकनीकी आदि लगभग सभी क्षेत्रों में भारत को पूरे विश्व में अग्रणी रखा है, परंतु जब हम गणित की बात करते हैं तो यह सूची भी कम नहीं है। भारत का गणित से बहुत पुराना रिश्ता है और यह वैदिक काल के पूर्व से भी जीवंत माना गया है। जब भी गणित में पूर्ण संख्याओं की बात आती है तो हर किसी की जुबान पर आज भी एक ही नाम आता है, आर्यभट्ट का। वैदिक युग में इस विश्व विख्यात गणितज्ञ ने जहां विश्व को शून्य का ज्ञान दिया, वहीं इसकी मदद से दशमलव प्रणाली को भी विकसित किया। इसके साथ ही इस महान गणितज्ञ ने द्विघात समीकरण, त्रिकोणमिति, खगोलीय स्थिरांक, अंकगणित व बीजगणित आदि क्षेत्रों को सरल विधि द्वारा विश्व को प्रदान किया। इतना ही नहीं खगोल विज्ञान के क्षेत्र में उन्होंने इस बात की पुष्टि की थी कि पृथ्वी प्रतिदिन अपनी ही धुरी पर घूमती है, न कि सूरज। यदि हम सिंधु घाटी सभ्यता और मोहनजोदड़ो व हड़प्पा सभ्यता के खुदाई में मिले अवशेषों पर नजर डालें तो इस बात के साक्ष्य भी प्राप्त होते हैं कि उस समय भी गणित का इस्तेमाल किया जाता था। तब से लेकर आज तक गणित ने निरंतर प्रगति ही की है। आधुनिक काल के गणित पर ध्यान दें तो एस रामानुजन के अनेक योगदान दृष्टिगोचर होते हैं जिन्होंने मुश्किल समय में न केवल स्वयं गणित सीखा, बल्कि गणित के 3884 प्रमेयों का संकलन भी किया।

इन्होंने विशेष प्रकार की प्राकृतिक संख्याओं के बारे में बताया, जिन्हें दो अलग जोड़ीदार संख्याओं के घनों के द्वारा निरूपित किया जा सकता है और जिन्हें आज हम सभी रामानुजन संख्याओं के नाम से जानते हैं। उदाहरण के लिए 1729 एक रामानुजन संख्या है जिसे (1 गुणा 1 गुणा 1) प्लस (12 गुणा 12 गुणा 12) और (9 गुणा 9 गुणा 9) प्लस (10 गुणा 10 गुणा 10) दो जोडि़यों में निरूपित किया जा सकता है। इस प्रकार गणित का जीवन बहुत पुराना है और जीवन में गणित का स्थान भी बहुत पुराना है। स्कूल-कॉलेज में पढ़ाए जाने वाले विषयों में इसे सबसे अधिक रोचक विषय कहा जा सकता है। यह अलग बात है कि फिर भी इस विषय से दूर भागने वाले छात्र भी अनेक हैं। वास्तव में जब विद्यार्थी गणित को मात्र एक विषय के रूप में देखते हैं तो वे इससे डरते हैं, परंतु जब उन्हें इस बात का एहसास हो जाए कि गणित केवल विषय नहीं अपितु जीवन का एक अनिवार्य अंग है तो उनका डर समाप्त हो सकता है। यूं तो प्रत्येक विषय को रुचिकर बनाने के लिए विभिन्न सहायक सामग्रियों का उपयोग और खेल विधि का सहारा लिया जा सकता है, परंतु गणित के क्षेत्र में इसकी अपार संभावनाएं हैं। इस प्रकार गणित को रुचिकर बनाकर इसके प्रति विद्यार्थियों का भय समाप्त किया जा सकता है। क्योंकि गणित का कार्यक्षेत्र स्कूली पाठ्यक्रम से लेकर घर एवं बाजार तक सब जगह पर व्याप्त है। अतः गणित का दायरा संकुचित नहीं किया जा सकता। जब कोई व्यक्ति बाजार में किसी वस्तु की खरीददारी कर रहा होता है तो वह रुपयों का हिसाब-किताब करता है, रेलवे की समय सारिणी पर वह ट्रेन का आगमन व प्रस्थान और रेल भाड़ा चेक करता है, घर पर वह अपने मासिक खर्च का ब्यौरा रखता है। इन सब कार्यों को करते समय वह जाने-अनजाने में गणित का ही प्रयोग कर रहा होता है और ऐसे समय पर वह यह कदापि नहीं कहता कि मुझे गणित में रुचि नहीं है, इसलिए मैं यह नहीं करूंगा।
कारण स्पष्ट है कि जीवन में गणित का स्थान अतुलनीय है। गणित एक ऐसा विषय है जो व्यक्ति को व्यावहारिक बनाने में दक्ष करता है। गणित अन्य विषयों में भी आपसी तालमेल कायम करने में सहायक होता है। अन्य सभी विषयों में भी गणित की सहायता आवश्यक होती है। फिर चाहे विज्ञान में रासायनिक सूत्रों की बात हो, सामाजिक अध्ययन में वर्ष व जन्मतिथि हों, हिंदी में अंकों की बात की जाए, ड्राइंग में स्केल बनाना और शारीरिक शिक्षा में खेल मैदान की स्थिति स्पष्ट करना, यह सब भी गणित की मदद से सरल हो पाता है। कोरोना काल में व्यक्ति के शरीर का तापमान हो, रोगियों और स्वस्थ होने वाले व्यक्तियों और मृत्यु का ग्रास बनने वाले लोगों का आंकड़ा प्रदर्शित करना हो, इन सब कार्यों में गणित की ही सहायता ली जाती है। दैनिक जीवन में ऐसा कोई दिवस नहीं होगा जब गणित का जाने या अनजाने में प्रयोग न किया गया हो। समाचारपत्रों, पत्रिकाओं और समाचार चैनलों में भी इसकी सहायता ली जाती है। जिस प्रकार भोजन में नमक दिखाई न देने पर भी अहम भूमिका निभाता है, उसी प्रकार जीवन में से गणित को निकाल देने का तात्पर्य जीवन को नीरस कर देने के समान है। गणित से संबंधित पहेलियां और खेल इस विषय को और भी अधिक रोचक बनाने में मदद करते हैं। वैदिक गणित और ओरिगामी (पेपर गणित) इसकी वे शाखाएं हैं जिनमें नित नए प्रयोग इसकी शिक्षा को सरल रूप प्रदान करते हैं।
ओरिगामी में कागज को विभिन्न तरीकों से मोड़कर खेल-खेल में बीज गणित एवं गुणा-भाग से संबंधित प्रश्नों को सरलता से सिखाया जाता है। यदि प्रारंभिक गणित की बात की जाए तो इसकी नींव जमा, घटाव, गुणा, भाग में समाई है और इसमें भी जमा सबसे मुख्य माना जाता है। प्रारंभ में वे विद्यार्थी जो इन बुनियादी नियमों में दक्ष हो जाते हैं, वे सरलता से अपने भय पर विजय प्राप्त कर लेते हैं और आगे चलकर गणित में विशेष रुचि लेने लगते हैं। वास्तव में गणित को समझकर किया जा सकता है, रटकर नहीं, क्योंकि यह एक वैज्ञानिक विषय है। वे विद्यार्थी जो इसे समझ कर इसके प्रश्नों को हल करते हैं, वे आगे बढ़ते जाते हैं। इतना अवश्य है कि छोटी कक्षाओं में स्थानीय भाषा को माध्यम के रूप में चुनने वाले विद्यार्थियों को बड़ी कक्षाओं में थोड़ी समस्या अवश्य आती है क्योंकि तब माध्यम केवल अंग्रेजी होता है। परंतु इसे समझ के द्वारा करने वाले जल्दी ही समस्या से निजात पा लेते हैं। 19वीं सदी में 3-आर को शिक्षा के मूल सिद्धांत के रूप में अपनाया गया था, जिसमें पढ़ना (रीडिंग), लिखना (राइटिंग) के साथ गणित (अर्थमैटिक) को आधार माना गया था जिससे हमें गणित के महत्त्व का ज्ञान होता है। शिक्षाविद भी इसे शिक्षा का आधार मानते हैं। गणित का प्रयोग अनेक या यूं कहें सब व्यवसायों की सफलता के लिए भी जिम्मेदार है।
यश गोरा
लेखक कांगड़ा से हैं
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