सम्पादकीय

अरावली का जीवन

Subhi
9 Jun 2021 2:48 AM GMT
अरावली का जीवन
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सुरक्षित पर्यावरण से जीवन के सहज तरीके से चलने को लेकर फिक्र जताने में शायद ही कभी कमी की जाती हो,

सुरक्षित पर्यावरण से जीवन के सहज तरीके से चलने को लेकर फिक्र जताने में शायद ही कभी कमी की जाती हो, लेकिन जब प्रकृति के उपादानों के संरक्षण का सवाल आता है तब आमतौर पर लोग अपनी सुविधा को प्राथमिकता देने लगते हैं। मसलन, अरावली की पहाड़ियों की अहमियत को समझने वाले इसे लेकर लंबे समय से फिक्र जताते रहे हैं, लेकिन इसके समांतर बहुत सारे लोगों ने अरावली की समूची पट्टी में अतिक्रमण करके अपने घर बना लिए। ऐसे लोगों की संख्या धीरे-धीरे इतनी ज्यादा बढ़ती गई कि आम जनजीवन को प्रकृति के नुकसानदेह उथल-पुथल से सुरक्षा देने वाली अरावली की पहाड़ियों के जीवन पर खुद ही संकट बढ़ता गया।

आज हालत यह है कि अरावली के एक बड़े क्षेत्र में रिहाइशी इमारतों की शृंखला खड़ी हो चुकी है और इससे पहाड़ियों के अस्तित्व तक पर खतरा मंडराने लगा है। सवाल है कि जिन लोगों ने नियम-कायदों को ताक पर रख कर इस क्षेत्र में अपने घर बना कर स्वच्छ पर्यावरण की गोद में रहने का इंतजाम किया, क्या उन्होंने यह सोचने की जरूरत नहीं समझी कि उनकी इन गतिविधियों से अरावली के जीवन सहित समूची पारिस्थितिकी पर इसका क्या असर पड़ेगा?
यह छिपा नहीं है कि जंगल और पहाड़ के वैसे तमाम इलाके आज रिहाइशी बस्तियों के विस्तार की वजह से गंभीर पर्यावरणीय संकट से घिर गए हैं। अगर इस पर तत्काल रोक नहीं लगी तो आने वाले वक्त में पर्यावरणीय दृष्टि से स्वच्छ इलाके मिलने दुर्लभ हो जाएंगे। शायद इसी फिक्र के मद्देनजर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने अरावली क्षेत्र में हुए अतिक्रमण के मसले पर सुनवाई करते हुए सख्त रवैया अख्तियार किया और अगले छह महीने के भीतर अरावली वन से सभी अतिक्रमण को हटाने के निर्देश दिए हैं। इनमें दस हजार रिहाइशी निर्माण भी शामिल हैं।
जाहिर है, इतनी बड़ी तादाद में लोगों ने अरावली के वन क्षेत्र में अतिक्रमण करके घर बनाए थे। लेकिन अब उनके सामने एक बड़ी मुश्किल पेश आएगी। उनकी ओर से अदालत से कहा गया कि इस इलाके में रह रहे लोगों के पास कोई और जगह नहीं है और राज्य को उन्हें हटाए जाने से पहले बसाने के निर्देश दिए जाएं। सवाल है कि सब कुछ जानते-समझते हुए भी लोगों ने अतिक्रमण करके अपने लिए रिहाइश का निर्माण कराना जरूरी क्यों समझा! यही वजह है कि अदालत ने इस मसले पर कोई राहत नहीं दी और साफ कहा कि जमीन हथियाने वाले लोग अदालत में आते हैं तो ईमानदर बन जाते हैं, लेकिन बाहर कोई काम कानून के हिसाब से नहीं करते।
गौरतलब है कि गुजरात से शुरू होकर राजस्थान में मुख्य रूप से आच्छादित अरावली की पहाड़ियों का एक बड़ा हिस्सा हरियाणा और दिल्ली तक फैला हुआ है। प्राकृति संसाधनों और खनिज से भरपूर यह पर्वत शृंखला पश्चिमी मरुस्थल के विस्तार को रोकती है। साथ ही यह घने जंगलों का आवरण बन कर वाहनों और औद्योगिक प्रदूषण के उच्च स्तर वाले क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से हवा को शुद्ध करने में मदद करती है।
दिल्ली सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए अरावली इस रूप में बेहद अहम है कि यह राजस्थान की ओर से झुलसाने वाली और गर्म हवा को सीधे आने से रोकती है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि अरावली की पर्वत शृंखला किस तरह बहुत बड़े इलाके के लिए एक तरह से जीवन-रेखा की तरह काम करती है। विडंबना यह है कि इसके पर्यावरणीय फायदों से सभी वाकिफ हैं, लेकिन उसे बनाए रखने के बजाय कब्जा जमा कर नुकसान पहुंचाने की कोशिश भी करते हैं। लगातार अतिक्रमण और मनमाने निर्माण की वजह से अरावली कितने दिनों तक लोगों के लिए जीवनी-शक्ति का काम करती रह सकेगी!

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