- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- कांवड़ यात्रा नहीं...

भारत में शासन व्यवस्था पर कर्मकांडी धार्मिक रीतियों का कभी भी प्रादुर्भाव नहीं रहा है। पूरी भारतीय संस्कृति प्रागैतिहासिक काल से लेकर पुख्ता ऐतिहासिक काल के शिलालेखों तक इस बात की गवाह है कि हर काल में शासन व्यवस्था केवल मानवीय सिद्धान्तों को सर्वोपरि मान कर चलती रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि कर्मकांडी रीतियां समयानुसार बदलती रहती हैं। इनका गहरा सम्बन्ध भारत की भौगोलिक व क्षेत्रीय विविधता से भी रहा है। इसके साथ ही यह भी विचारणीय है कि राजनीति और धर्म का समन्वय भारत में इस तरह रहा है कि हर काल व दौर में सत्ता केवल सर्वजन हिताय के सिद्धान्त से इस प्रकार अभिप्रेरित रही कि मानवता इसकी केन्द्रीय शक्ति बनी रहे। आधुनिक भारत का पूरा संविधान इसी मानवता के सिद्धान्त के चारों तरफ घूमता है और एेलान करता है कि राष्ट्र का निर्माण और गठन इसमें रहने वाले लोगों से ही बनता है अतः उन्हें अाधिकाधिक सशक्त, सबल, स्वस्थ व शिक्षित बनाना प्रत्येक सरकार का पहला दायित्व होता है। इसी में जीवन जीने का अधिकार आता है जिसमें प्रत्येक नागरिक के जीवन की रक्षा करना सत्ता का दायित्व बनता है।
