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- प्रदूषण में जीवन
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| क्रेडिटबै जनसत्ता |हवा, पानी, मिट्टी, हर जगह बढ़ते प्रदूषण को लेकर समय-समय पर चिंता जताई जाती रहती है। विभिन्न शोध संस्थान इसे लेकर अनुसंधान करते और उनके आधार पर अपने नतीजे प्रकाशित करते रहते हैं। इसी कड़ी में शिकागो विश्वविद्यालय के वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक के तहत किए गए शोध में बताया गया है कि प्रदूषण के मामले में भारत पहले स्थान पर है और यहां बढ़ते वायु प्रदूषण की वजह से लोगों की जीवन प्रत्याशा लगातार कम हो रही है। इस अध्ययन में कहा गया है कि अगर वायु प्रदूषण पर काबू पा लिया जाए तो लोगों की उम्र पांच से छह साल तक बढ़ सकती है।
हर साल ऐसी चेतावनी देते कई अध्ययन प्रकाशित होते हैं, तब लगता है कि सरकारें इस दिशा में कुछ व्यावहारिक कदम उठाएंगी, मगर हकीकत यह है कि इन अध्ययनों के आंकड़े बाकी सूचनाओं की तरह महज कुछ देर के लिए हमारी जेहन में तैरते हैं और फिर तिरोहित हो जाते हैं। जब सर्दी आने को होती है और दिल्ली तथा कुछ अन्य महानगरों में कुहरे में मिल कर प्रदूषण धरती की सतह के आसपास घना हो जाता है, लोगों की सांस की तकलीफ बढ़ जाती है, तब सरकार कुछ हाथ-पांव हिलाती नजर आने लगती है।
हमारे देश में प्रदूषण की वजहें छिपी नहीं हैं, पर सच्चाई यह है कि सरकारों में उसे रोकने की इच्छाशक्ति नहीं है। महानगरों ही नहीं, अब तो छोटे कस्बों से लेकर गांवों तक में वायु प्रदूषण मानक स्तर से काफी अधिक रहने लगा है। इसका पहला बड़ा कारण वाहनों से निकलने वाला धुआं है। अनेक बार सलाह दी गई कि वाहनों की खरीद-बिक्री को नियंत्रित किया जाए। सार्वजनिक वाहनों को अधिक सुगम और व्यावहारिक बनाया जाए। मगर इस पर किसी भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया। जब वायु प्रदूषण जानलेवा साबित होने लगता है, तो दिल्ली सरकार सम-विषम योजना जरूर लागू कर देती है।
इसके अलावा वायु प्रदूषण का दूसरा बड़ा कारण कल-कारखानों, ईंट भट्ठों से निकलने वाला धुआं है। भारत अभी विकसित होती हुई अर्थव्यवस्था है, इसलिए विकास कार्यों, औद्योगिक उत्पादन पर विशेष बल रहता है। हालांकि इसमें कल-कारखानों के लिए प्रदूषण नियंत्रण संबंधी नियम-कायदे लागू हैं, पर उन पर कड़ी निगरानी न रखी जाने की वजह से वे इनके पालन से बचते रहते हैं। हालांकि अब बैट्री और नैसर्गिक गैस से चलने वाले वाहनों को बढ़ावा दिया जाता है, गाड़ियों में धुएं को पानी में बदलने वाले यंत्र लगाए जाते हैं, मगर अब ये उपाय भी कारगर साबित नहीं हो रहे।
हमारे यहां जीवन प्रत्याशा घटने के पीछे एकमात्र कारण वायु प्रदूषण नहीं है। ध्वनि प्रदूषण भी स्वास्थ्य संबंधी अनेक परेशानियां पैदा कर रहा है। मिट्टी के भीतर घुलता जहर अनाज, फल और सब्जियों के जरिए शरीर में पहुंच कर कई जानलेवा बीमारियों को जन्म दे रहा है। पानी तो अब देश में कहीं भी साफ किए बगैर पीने लायक नहीं रह गया। नदियों में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए वर्षों से महत्त्वाकांक्षी योजनाएं चल रही हैं, पर उनका कोई उल्लेखनीय असर नजर नहीं आता। इन सारे तरह के प्रदूषणों पर लगाम न लग पाने की बड़ी वजह सरकारों की उदासीनता और संबंधित महकमों का भ्रष्ट आचरण है। वायु प्रदूषण कम करने को लेकर सरकारों की सतर्कता अधिकतर पराली जलाने और वाहनों का प्रदूषण स्तर जांच कर उन पर जुर्माना लगाने तक ही नजर अती है। बड़े पैमाने पर प्रदूषण फैलाने वाले कल-कारखानों पर उनकी कृपा दृष्टि ही बनी रहती है।