सम्पादकीय

आधार से जीवन नहीं चलता

Gulabi
29 Dec 2021 6:00 AM GMT
आधार से जीवन नहीं चलता
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सोशल मीडिया में कई बरसों से लोग मजाक में लिख रहे हैं कि
सोशल मीडिया में कई बरसों से लोग मजाक में लिख रहे हैं कि गोस्वामी तुलसीदास आधार की महिमा पहले से जानते थे तभी उन्होंने लिखा था- कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा। क्या सचमुच कलयुग में राम नाम की तरह ही आधार भी पार उतरने का एकमात्र आधार है? संवैधानिक रूप से ऐसा नहीं है, लेकिन कलियुग में संविधान का क्या काम है? सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि आधार को किसी चीज के लिए अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता है लेकिन फिर वहीं सवाल कि कलियुग में सुप्रीम कोर्ट का भी क्या काम? संविधान में नहीं है, संसद ने नहीं कहा है और सुप्रीम कोर्ट ने भी मना किया है फिर भी आधार को जीवन का आधार बनाया जा रहा है। हालांकि ऐसा नहीं है कि आधार होने से किसी को कुछ मिल जाएगा। आपके पास आधार है तो कुछ भी मिलने की गारंटी नहीं है लेकिन अगर नहीं है तो बहुत सी चीजें छीनी जा सकती हैं।
जैसे आधार नहीं होने की वजह से झारखंड में हजारों लोगों से राशन का अधिकार छीन लिया गया था और जब भूख से मौत हुई तो सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में दखल देना पड़ा था। इसी तरह आधार नहीं होने से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में लाखों लोगों के नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए और उनको वोट डालने से वंचित कर दिया गया। किसी को अभी तक पता नहीं है कि आधार असल में है क्या, लेकिन इतना सब जानते हैं कि इसके बिना काम नहीं चलेगा। पता नहीं क्यों सरकार की ओर से सीधे तौर पर यह नहीं बताया जा रहा है कि आधार क्या है। यह पहचान पत्र है, निवास का प्रमाण पत्र है या नागरिकता का प्रमाण पत्र है, यह क्या है और क्यों इसके लिए इतना दबाव बनाया जा रहा है? अब सरकार बच्चों को जन्म के साथ ही आधार नंबर देने के प्रोजेक्ट पर काम कर रही है और संसद में जोर-जबरदस्ती उसने वोटर आई कार्ड को आधार से जोड़ने का बिल पास करा लिया है।
सोचें, किसलिए? आपके पास आधार नहीं है तब भी आप अपनी पहचान साबित कर सकते हैं और निवास का प्रमाण पेश कर सकते हैं। आपके पास आधार नहीं है तब भी आप वोट डाल सकते हैं। आपके पास आधार नहीं है तब भी आपका पासपोर्ट बन सकता है। आपके पास आधार नहीं है तब भी आप राशन उठा सकते हैं और सरकारी योजनाओं का फायदा भी आपको मिल सकता है। और हां, अगर किस्मत अच्छी रही तो इसके बगैर आपके बच्चों को स्कूलों में दाखिला भी मिल सकता है और आपको नौकरी भी मिल सकती है। आपके जीवन के बुनियादी काम इसके बगैर हो रहे हैं तो क्या यह माना जाए कि इसकी जरूरत नहीं है? ऐसा नहीं है। आपको आयकर रिटर्न भरने के लिए जरूरी है कि पैन और आधार लिंक्ड हों। बैंक खाते का भी आधार से जुड़ा होना जरूरी है। वैक्सीन लगवाने के लिए भी आधार अनिवार्य है और अब वोट डालने के लिए आधार को अनिवार्य बनाने की दिशा में एक ठोस कदम बढ़ा दिया गया है।
वोटर आई कार्ड को आधार से जोड़ने का बिल संसद से पास हो गया है। सरकार कह रही है कि इसे वैकल्पिक रखा गया है और कोई चाहे तो आधार को वोटर आई कार्ड से जोड़ने से मना कर सकता है। लेकिन यह सिर्फ कहने की बात है। क्योंकि सरकार ने कानून में ऐसा प्रावधान कर दिया है कि आपको अनिवार्य रूप से वोटर आई कार्ड को आधार से जोड़ना होगा। सरकार ने इस कानून में लिखा है कि अगर कोई अपने आधार को वोटर आई कार्ड से नहीं जोड़ना चाहता है तो उसे इसका 'यथोचित कारण' बताना होगा। सोचें, 'यथोचित कारण' क्या हो सकते हैं? इसका मतलब है कि आप इस आधार पर अपने वोटर आई कार्ड को आधार से जोड़ने से मना नहीं कर सकते हैं कि आप इस सिद्धांत के विरूद्ध हैं या आपका मन नहीं है। आपको संबंधित अधिकारी को संतुष्ट करना होगा कि आपके पास 'यथोचित कारण' हैं। सो, अगर आपके पास आधार है और आप उसे वोटर आई कार्ड से नहीं जुड़वाना चाहते हैं तो आपका वोटर आई कार्ड नहीं बनेगा या आप किसी दूसरे देश के घुसपैठिए या एलियन साबित किए जाएंगे।
इस जबरदस्ती के बारे में कोई चर्चा नहीं कर रहा है। यह सब जानते हैं कि आधार बनवाना कितना आसान है। आप देश के नागरिक नहीं है लेकिन आप एक निश्चित अवधि तक देश में रहे हैं तब भी आधार बनवा सकते हैं। इलाके का विधायक, सांसद लिख कर दे दे तो आपका आधार बन सकता है। दूसरी ओर वोटर आई कार्ड बनवाने के लिए आपको अपनी पहचान और निवास दोनों का प्रमाण देना होता है और फिर भी चुनाव आयोग का कोई व्यक्ति फिजिकल वेरिफिकेशन के लिए आपके घर जाता है या बूथ लेवल अधिकारी यानी बीएलओ से आपके बारे में जानकारी हासिल करता है। फिर इंट्रोड्यूसर सिस्टम से बना आधार किसी के वोटर आई कार्ड से ज्यादा अहम कैसे हो सकता है? दूसरे, आधार कार्ड बनाने वाला यूआईडीएआई भारत सरकार का प्राधिकरण है, जबकि वोटर आई कार्ड एक संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है। चुनाव आयोग का आधार पर कोई नियंत्रण नहीं है। उसके जरिए सरकार मुफ्त बांटने की योजनाएं चलाती है। फिर भी आयोग ने ही वोटर आई कार्ड को आधार से जोड़ने का सुझाव दिया! तीसरी बात यह है कि आधार को लेकर कोई ऑडिट रिपोर्ट नहीं है, जिससे पता चले कि कितने फर्जी आधार बने हैं या फर्जी आधार बनने की कितनी संभावना है। साफ तौर पर यह कदम मतदाताओं की प्रोफाइलिंग और उन्हें प्रभावित करने के प्रयास का हिस्सा है और चुनाव आयोग इसमें शामिल है।
ध्यान रहे यह अमेरिकी नागरिकों को मिलने वाले सोशल सिक्योरिटी नंबर की तरह का कोई नंबर नहीं है, जिसके जरिए नागरिकों को सारी बुनियादी सुविधाएं मिलें। अमेरिका में किसी की नौकरी जाती है तो वह अपने सोशल सिक्योरिटी नंबर के जरिए तत्काल अपने को बेरोजगार के रूप में रजिस्टर करता है और सरकार उसको हर हफ्ते नकद पैसा देती है। आधार से ऐसा नहीं होता है। अगर आपकी नौकरी जाती है, कारोबार ठप्प होता है, आप बीमार होते हैं, आपके बच्चों का दाखिला स्कूल-कॉलेज में नहीं होता है तो आधार से आपको कोई मदद नहीं मिलेगी। अगर सरकार सचमुच आधार को नागरिकों के जीवन का आधार बनना चाहती है तो 'वन नेशन, वन आईडेंटिटी कार्ड' की घोषणा करे और आधार को सोशल सिक्योरिटी नंबर बनाए, जिसके बाद दूसरे किसी कार्ड की जरूरत न रह जाए और लोगों के जीवन की सारी बुनियादी जरूरतें इससे पूरी हों। इसके बगैर आधार को लेकर जो भी घोषणा हो रही है वह एक साजिश से ज्यादा कुछ नहीं है।
नया इण्डिया
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