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औषधीय पौधों की पहचान और उनके गुणधर्म जानने की कोशिश होती है।
इस साल की एक सर्द दोपहरी में ढोल-मांदल बज रहे थे, युवतियां रंग-बिरंगी पोशाकों में नाच रही थीं। यह कोई पर्व-त्योहार या शादी-विवाह का कार्यक्रम नहीं था। यह झारखंड के दूर-दराज के गांव में एक पुस्तकालय का उद्घाटन था। यह झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले के खुंटपानी प्रखंड का ऊपरलोटा गांव था। यह इलाका मुख्यतः आदिवासी बहुल है। संयोग से मैं फरवरी में इस लाइब्रेरी के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल था। किताबों का ऐसा स्वागत मैंने पहली बार देखा था।
दो महीने बाद मैं फिर यह लाइब्रेरी देखने गया। इसे एकजुट संस्था ने शुरू किया है, जिसका मुख्यालय चक्रधरपुर में है। इस लाइब्रेरी का उद्देश्य है कि गांव के बच्चों में पढ़ने-लिखने की रुचि निरंतर बनी रहे, जिन बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया है, वे फिर से पढ़ाई, स्कूल और किताबों से जुड़ सकें। जो निर्धन बच्चे किताबें नहीं खरीद सकते, वे यहां आकर किताबें पढ़ सकें और घर भी ले जा सकें और ज्ञान की बड़ी दुनिया से जुड़ सकें।
लाइब्रेरी की योजना को साकार करने के लिए एकजुट के कार्यकर्ताओं ने गांवों का चयन किया, लोगों से बातचीत की और उनसे लाइब्रेरी के लिए जगह देने का आग्रह किया। ग्रामीणों ने इस रचनात्मक काम के लिए उदारतापूर्वक निःशुल्क जगह उपलब्ध कराई। इस तरह क्षेत्र में पांच स्थानों पर पुस्तकालय शुरू हो गए। अमराई गांव में पहले से एक लाइब्रेरी थी, अन्य चार स्थानों पर हाल ही में लाइब्रेरी खोली गई है। खुंटपानी प्रखंड में ऊपरलोटा, पंडावीर, बींज और पोरलोंग गांव में पुस्तकालय संचालित किए जा रहे हैं।
पुस्तकालय के संचालन का जिम्मा बारी-बारी से संस्था के कार्यकर्ताओं व ग्रामीण युवाओं ने लिया है। ये पुस्तकालय दूर-दराज के ऐसे गांवों में हैं, जहां स्कूली किताबों के अलावा पढ़ने के लिए दूसरी किताबों की किल्लत थी। लेकिन यहां रंग-बिरंगे चित्रों वाली बेहतरीन किताबें उपलब्ध हैं। बच्चे खुद शेल्फ से उनकी मनपसंद किताबें चुनते हैं। संचालक उन्हें कहानी पढ़कर सुनाते है। लाइब्रेरी का उद्देश्य किताबों का संग्रह भर नहीं है, बच्चे कुछ सीख सकें, उनमें पढ़ने-लिखने की आदत बने, किताबों की संस्कृति विकसित हो, यह सोच है।
यहां रोज दरी पर नीचे बैठकर बच्चे किताबें पढ़ते हैं। यहां बड़ों का साहित्य भी है। युवा एवं बुजुर्ग पाठकों के लिए भारतीय भाषाओं के साहित्य, विज्ञान, पर्यावरण, इतिहास, कला, संदर्भ ग्रंथ, शब्दकोश व जीवनियां उपलब्ध हैं। कहानी, कविता, नाटक, लोककथाएं और पंचतंत्र जैसी लोकप्रिय कहानियां और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए किताबें भी हैं। यह पुस्तक प्रेमियों के मिलने व बातचीत करने का अड्डा भी है।
यहां कहानी और कविता पढ़कर सुनाना और आंखों देखी घटनाओं का विवरण लिखना भी शामिल है। अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से कई तरह की गतिविधियां संचालित होती रहती हैं। जैसे, बच्चों के लिए बालसभा, नाटक, चित्रकला और नुक्कड़ नाटक का आयोजन। यहां बच्चों के लेखन कौशल के विकास के लिए दीवार लेखन भी किया गया है, जिसमें दीवार पर नारे, चित्र बनाना, कविता व कहानी का विवरण लिखा गया है। खेल को बढ़ावा देने के लिए खेल सामग्री भी रखी गई है। बच्चों को खेल गीत के माध्यम से पढ़ना-लिखना सिखाया जाता है।
एकजुट के कार्यकर्ता विनीत मोहांतो बताते हैं कि झारखंड में अनेक खेल प्रतिभाएं हैं, पर उन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीं मिलता। एकजुट संस्था ने ऐसी कई खेल प्रतियोगिताएं आयोजित की हैं, जिसमें से कई नए खिलाड़ी सामने आए हैं, और उन्होंने जिले से लेकर राज्य स्तरीय खेल प्रतियोगिताओं में इनाम भी जीते हैं। 'अपना जंगल पहचानो' यात्राओं के माध्यम से पेड़-पौधों की पहचान, औषधीय पौधों की पहचान और उनके गुणधर्म जानने की कोशिश होती है।
इसका उद्देश्य जंगल की विरासत से नई पीढ़ी का परिचय कराना और सहेजना है। 'कबाड़ से जुगाड़' जैसे विज्ञान प्रयोगों को भी प्रोत्साहित किया जाता है। ऊपरलोटा लाइब्रेरी की संचालक माधुरी पुरती बतलाती हैं कि लाइब्रेरी में आने वाले बच्चे शुरुआत में सारी किताबें देखना चाहते थे। लेकिन अब जब उन्हें समझ में आ गया है कि किताबें उनके लिए हैं, और वे जब उनकी मनचाही पसंद की किताब पढ़ सकते हैं, तो अब वे ढूंढ- ढूंढकर किताबें निकालते हैं।
इस पहल से बच्चों में जिम्मेदारी की भावना आ रही है, इसका पता मुझे तब चला, जब पिछले दिनों मैं पंडावीर गांव की लाइब्रेरी देखने गया। उस दिन तेज आंधी के साथ अचानक बारिश आ गई। किताब पढ़ते बच्चों ने तत्काल किताबें समेटीं, उन्हें बारिश की पहुंच से दूर रैक पर रख दीं और खिड़की बंद कर दी। यह सब लाइब्रेरी की संचालक के हस्तक्षेप के बिना ही हुआ। इस पूरी पहल से बच्चे एक-दूसरे से सीख रहे हैं, उनमें पढ़ने की रुचि बन रही है और पढ़ने की क्षमता का विस्तार भी हो रहा है।
नए-नए बच्चे पाठक के रूप में जुड़ भी रहे हैं। उनमें अपनी बात कहने की झिझक भी दूर हो रही है और वे निर्भीक होकर अलग अलग मंचों पर अपनी अभिव्यक्ति कर रहे हैं। उनमें नेतृत्व भावना और कल्पना शक्ति का विकास हो रहा है। किताबें घर ले जाने से भाई-बहनों व अभिभावकों में भी पढ़ने-लिखने की रुचि बढ़ रही है। कुल मिलाकर, यह पहल बहुत ही उपयोगी, सराहनीय व अनुकरणीय है, जिसके आशाजनक परिणाम आएंगे।
सोर्स: अमर उजाला
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