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- LGBTIQA: इंसानी गरिमा...
मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को LGBTIQA+ समुदायों के अधिकारों का सम्मान सुनिश्चित करने के पक्ष में बड़ा महत्वपूर्ण फैसला दिया। अदालत के सामने मामला एक लेस्बियन कपल की इस शिकायत के रूप में आया था कि परिवार वालों द्वारा लापता बताए जाने के बाद उसे पुलिस प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है। कोर्ट ने उस कपल को तो राहत दी ही, इस अवसर का इस्तेमाल करते हुए ऐसे तमाम मौकों को रेखांकित करने की कोशिश की, जहां LGBTIQA+ (यानी लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर, इंटरसेक्स, ए-सेक्शुअल प्लस) समुदायों के सदस्यों को लांछन, उपेक्षा और भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। यौन स्वायत्तता को निजता के अधिकार का अहम हिस्सा बताते हुए कोर्ट ने ऐसे सभी जरूरी इंतजाम करने को कहा, जिससे इन समुदायों के लोगों के साथ होने वाला गैरकानूनी भेदभाव खत्म हो। फैसले का वह हिस्सा खास तौर पर ध्यान देने लायक है, जिसमें जस्टिस आनंद वेंकटेश कहते हैं कि मुझे यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं कि मैं भी उन सामान्य लोगों के बहुमत का हिस्सा हूं, जो होमोसेक्शुअलिटी को अभी पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अज्ञानता भेदभाव के किसी रूप को औचित्य प्रदान करने का आधार नहीं हो सकती।