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- शादी की रस्मों का बनता...
वर्तमान में हमारे सभी त्यौहारों, संस्कारों, रीति-रिवाजों का पूर्ण रूप से व्यवसायीकरण हो चुका है। संचार माध्यमों की घुसपैठ तथा भौतिकवादी सोच हमारे सभी रीति-रिवाजों, संस्कारों तथा त्यौहारों में झलक रही है। देखा-देखी तथा साधनों के अभाव के बावजूद आम तथा गरीब व्यक्ति भी इन आयोजनों के लिए मजबूर हो चुका है। भौतिकवादी चकाचौंध तथा विचार शून्यता से संस्कृति, रीति-रिवाजों तथा संस्कारों की परिभाषाएं ही बदल गई हैं। शादी समारोहों में कई प्रकार के रस्मों-रिवाजों, धार्मिक एवं सामाजिक संस्कारों का प्रावधान है जिसमें देवताओं के आह्वान के साथ-साथ हल्दी, मेहंदी, उबटन, मामा आगमन, घोड़ी, जयमाला, सात फेरे, हवन, वेदिका पूजन, मांग भरना, आनंद-विनोद एवं छेड़छाड़ के उद्देश्य से दुल्हन की बहनों, सहेलियों द्वारा द्वार रोकना या जूते छुपा लेना, बारातियों को गालियां देना, विदाई तथा वधु प्रवेश आदि रस्मों-रिवाज़ हमारे शादी समारोह को चार चांद लगाकर चिर स्मरणीय बना देते हैं।