सम्पादकीय

शादी की रस्मों का बनता भद्दा मजाक

Rani Sahu
5 Dec 2021 7:00 PM GMT
शादी की रस्मों का बनता भद्दा मजाक
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वर्तमान में हमारे सभी त्यौहारों, संस्कारों, रीति-रिवाजों का पूर्ण रूप से व्यवसायीकरण हो चुका है

वर्तमान में हमारे सभी त्यौहारों, संस्कारों, रीति-रिवाजों का पूर्ण रूप से व्यवसायीकरण हो चुका है। संचार माध्यमों की घुसपैठ तथा भौतिकवादी सोच हमारे सभी रीति-रिवाजों, संस्कारों तथा त्यौहारों में झलक रही है। देखा-देखी तथा साधनों के अभाव के बावजूद आम तथा गरीब व्यक्ति भी इन आयोजनों के लिए मजबूर हो चुका है। भौतिकवादी चकाचौंध तथा विचार शून्यता से संस्कृति, रीति-रिवाजों तथा संस्कारों की परिभाषाएं ही बदल गई हैं। शादी समारोहों में कई प्रकार के रस्मों-रिवाजों, धार्मिक एवं सामाजिक संस्कारों का प्रावधान है जिसमें देवताओं के आह्वान के साथ-साथ हल्दी, मेहंदी, उबटन, मामा आगमन, घोड़ी, जयमाला, सात फेरे, हवन, वेदिका पूजन, मांग भरना, आनंद-विनोद एवं छेड़छाड़ के उद्देश्य से दुल्हन की बहनों, सहेलियों द्वारा द्वार रोकना या जूते छुपा लेना, बारातियों को गालियां देना, विदाई तथा वधु प्रवेश आदि रस्मों-रिवाज़ हमारे शादी समारोह को चार चांद लगाकर चिर स्मरणीय बना देते हैं।

विवाह संस्कार किसी भी व्यक्ति के जीवन का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण समारोह होता है। यह संस्कार युवक एवं युवती को जहां एक-दूसरे के हाथों में सौंप कर भविष्य के अनंत सपनों, उमंगों तथा खुशियों से दामन को भर देता है, वहीं पर यह पारिवारिक तथा सामाजिक दायित्वों के निर्वहन के लिए भी जि़म्मेदारी का एहसास करवाता है। विवाह संस्कार में विभिन्न रस्मों-रिवाज़ों के पीछे कोई न कोई महत्त्व एवं गूढ़ रहस्य होता है जिसे शादी के योग्य सभी युवा-युवतियों को जानना एवं समझना चाहिए अन्यथा कोर्ट मैरिज तथा अन्य विकल्पों पर भी विचार किया जा सकता है। आजकल बहुत सा शिक्षित युवा वर्ग शादी की आवश्यकता को न समझते हुए लिव इन रिलेशनशिप में भी रह रहा है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में इसे सामाजिक रूप से मान्यता नहीं है। वर्तमान में शादी समारोह में लाखों रुपए की राशि खर्च कर भव्य आयोजन किए जाते हैं। एक से बढ़कर एक शादी आयोजित होती है, लेकिन कोई भी शादी समारोह इतिहास के पन्नों में भव्य आयोजन के रूप में आज तक अपना पंजीकरण नहीं करवा पाया। इसका कारण यह है कि भौतिकवाद की इस भेड़ चाल में कोई भी धनवान तथा संपन्न व्यक्ति अपने आयोजनों में किसी प्रकार की कमी नहीं रहने देना चाहता। विवाह संस्कार की महत्त्वपूर्ण एवं अर्थपूर्ण क्रियाओं का कोई महत्त्व ही नहीं रह गया है। ब्यूटी सैलून संचालकों के सस्ते से महंगे पैकेजेस हैं। बैंड-बाजे वाले तथा ढोली चाहते हैं कि बाराती शराब के नशे में धुत्त-मदमस्त होकर सारी रात नाचते रहें तथा पैसे की बरसात होती रहे।
उनकी ओर से लग्न मुहूर्त का समय निकले तो निकलता रहे। घोड़ी वाले का पैसे बनाने का अपना समय है। पंडित जी की अपनी मजबूरियां हैं। फोटोग्राफर एवं वीडियोग्राफर को अपना बिजनेस करना है। दूल्हे के दोस्तों तथा दुल्हन की सहेलियों की अपनी भूमिका है। शादी का कार्ड छापने से लेकर मिठाई, भाजी, धाम, टैंट, कैटरिंग, लाइट एंड साउंड, डीजे, डैकोरेशन, ब्यूटी सैलून, बड़े-बड़े होटलों में ठहरने के इंतजाम, महंगी से महंगी शराब, कुल मिलाकर शादी एक संस्कार समारोह न बन कर एक 'इवेंट मैनेजमेंट' बन चुका है। इवेंट मैनेजमेंट में कितने लोगों का इंतजाम, क्या-क्या रिक्वायरमेंट, ब्रेकफास्ट, लंच, कॉकटेल, डिनर का मैन्यू तथा बजट महत्त्वपूर्ण है। केवल चैक पेमेंट पर सब कुछ एकदम तैयार मिलता है। आपको सिर्फ कोट-पेंट तथा टाई लगाकर सज-धज कर आयोजन स्थल पर रोबोट की तरह हाथ जोड़ते हुए लोगों का स्वागत करना है। पड़ोसी तथा रिश्तेदार मात्र तीन घंटे के आयोजन में समारोह का आनंद लेने के बाद अक्सर आलोचनाएं करते ही पाए जाते हैं। इन भव्य शादी समारोहों में आयोजकों द्वारा सभी को दुनिया के सुखों को प्रदान करने की कोशिश की जाती है, लेकिन भौतिकवाद की चकाचौंध में विवाह-संस्कारों तथा रस्मों-रिवाजों की आत्मा ही घुटती है। सबसे बुरी हालत तो शादी संस्कारों को पूरा करवाने वाले कुल पुरोहित की होती है जिसे बंधुआ मजदूर की तरह शादी समारोह में लाकर आधे घंटे में रस्मों-रिवाज़ पूरा करने के आदेश दे दिए जाते हैं। पुरोहितों को भी व्यवस्था से समझौता करना पड़ता है। वरमाला के समय वर पक्ष की ओर से दूल्हे के दोस्तों तथा वधु पक्ष की ओर से उसके भाइयों की फौज को वरमाला डालने या न डालने पर कई बार उलझते देखा जाता है। आमोद-प्रमोद के क्षणों में विष्णु रूपी वर तथा लक्ष्मी रूपी वधु को अपने बेहद अंतरंग, अर्थपूर्ण तथा महत्त्वपूर्ण क्षणों में भी तनातनी का सामना करना पड़ता है। बुद्धिमान व्यक्तियों के अनुसार जयमाला के क्षण वर एवं वधु के लिए बहुत ही अंतरंग एवं महत्त्वपूर्ण होते हैं तथा इसमें किसी भी अनावश्यक नाटक या अन्य पात्रों की आवश्यकता नहीं होती। वरमाला बहुत ही सरल तथा सहज ढंग से ग्रहण की जानी चाहिए। इसी प्रकार लग्न, सात फेरों, हवन, वेदिका, मांग भराई आदि संस्कारों का विधि-विधान से पालन होना चाहिए।
हमारे शास्त्रों में परिवार के कुल पुरोहित को गुरु माना जाता है। उनके निर्देशानुसार विधानपूर्वक संस्कार संपन्न होना चाहिए। विवाह संस्कार में द्वार रोकना तथा जूते चुराना इत्यादि रस्में भी वर-वधु एवं उनके भाइयों-बहनों, दोस्तों, सहेलियों के बीच हंसी-खुशी, आमोद-प्रमोद का एक कारण है, लेकिन इसके नाम पर भी भारी भरकम राशि मांगने की शर्त पर अड़े रहने से भी कई बार आंखें मैली होती हुई दिखाई देती हैं। किसी भी शादी समारोह के आयोजनों में बहुत से लोगों के हित, आजीविका तथा भावनाएं जुड़ी होती हैं जिन्हें पूरा किया जाना आसान कार्य भी नहीं होता। भौतिकवाद की चकाचौंध में पूरी तरह से आनंद लें, लेकिन शादी से पूर्व कुछ बातें वर-वधु तथा उनके अभिभावक समझदारी से सुनिश्चित कर लें कि किसी भी प्रकार का अन्न-धन तथा संसाधनों का अपव्यय न हो। हिंदू संस्कृति से शादी संस्कार संपन्न करें तो रीति-रिवाजों का उपहास न उड़ने दें। वरमाला, लग्न, वेदी, हवन, सात फेरों, मांग भराई, शादी की शर्तों की गरिमा एवं गंभीरता का ध्यान रखें। शादियों में भारी-भरकम कानफाड़ू संगीत से शरीर झूम सकते हैं, लेकिन आत्मा तृप्त नहीं हो सकती। भारी आवाज़ों के कारण हमारे विचारों का आदान-प्रदान नहीं हो पाता। अपनी संस्कृति तथा रीति-रिवाजों को अधिमान दें। भोजन की बरबादी किए बिना भूखे पेट व्यक्तियों की भूख शांत हो सकती है। अपनी बुद्धि और विवेक से बहुत ही संवेदनशील निर्णय लेकर साधारण एवं विवाह समारोह का गरिमामय आयोजन करें। फिज़ूलखर्ची को रोक कर अपने आप को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करें। विवाह संस्कार किसी भी व्यक्ति के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण और चिरस्मरणीय संस्कार होता है। इसके रीति-रिवाजों, संस्कारों का भद्दा मजाक नहीं बनना चाहिए।
प्रो. सुरेश शर्मा
लेखक घुमारवीं से हैं
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