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सुधीश पचौरी: अपने रिपोर्टर करें तो क्या? हर मीडिया घराने का एक चैनल बांग्ला में, दूसरा हिंदी में और तीसरा अंग्रेजी में! एक में वह लाइन जो कोलकाता को खुश करे, दूसरे में वह लाइन जो दिल्ली को खुश करे और तीसरी वह लाइन जो आधा-आधा करे! एक महीने से अपना हर चैनल युद्ध विशेषज्ञ है। शुरू में जो पुतिन चैनलों का नायक था, अब 'खलनायक' है, 'दानव' है, जनसंहारक है, हिटलर है, लोगों के खून का प्यासा है, बात-बात पर परमाणु युद्ध की धमकी देने वाला है, विक्षिप्त है, पागल है, वहशी है, जार की तरह रहता है, दुनिया का सबसे अमीर नेता है, किसी की नहीं सुनता, रूस की जनता प्रतिबंधों से परेशान और पुतिन से बेहद नाराज है।…
जितने रिपोर्टर हैं सब जेलेंस्की के लेंस से रिपोर्ट करते हैं। यूक्रेन लड़ाकों को 'रोमांटिसाइज' करते हैं, रूस की सेना को पका-थका बताते हैं, जिसके पास न कपड़े हैं। न खाना है। न हथियार हैं! रूस जमीन पर 'तीसमार खां' दिखा, 'सूचना युद्ध' में हारता दिखता है! अपने चैनल पश्चिमी चैनलों के 'टकसाली चित्रों' से भरे रहते हैं, फिर भी कहते रहते हैं कि असली जमीनी रिपोर्ट वही दे रहे हैं! वे 'साइरन' बजा-बजा कर युद्धक वातावरण बनाते हैं! बर्बादी के दृश्य भी 'प्रदत्त टकसाली चित्र' लगते हैं। कौन टैंक किसका और किसने ध्वस्त किया है? किसके कितने मरे, सब विवादित दिखते हैं। अधिकांश रिपोर्टें 'बनी बनाई' होती हैं। जमीन पर रूस मारते खां है, लेकिन मीडिया में यूक्रेन-अमेरिका मारते खां हैं!
हिंदी तो हिंदी, अंग्रेजी के चैनल भी इन दिनों 'परमाणु युद्ध का डर' बेचते हैं : अगर रूस न रुका तो परमाणु युद्ध कभी भी हो सकता है, ऐसा कहते वे भूल जाते हैं कि अगर ऐसा हुआ तो बचेगा कौन? इस युद्ध की खबरें अब ऊबाऊ लगने लगी हंै। वही खबरें, वही बहसें, वही विशेषज्ञ और सब परमाणु आशंकाओं को रोज बेचते हुए, ताकि पुतिन को हिटलर से बदतर करार दिया जा सके!
रूस के पक्ष में बोलता है तो सिर्फ चीन! भारत तटस्थ तटस्थ खेल रहा है और बाइडेन किसी किशोर की तरह उसकी 'हिली हुई पोजीशन' पर मुंह बिराते हैं! बाकी सर्वत्र 'राग चुनावी' है! पंजाब में 'आप' के 'मान' सबसे 'फास्ट' दिखते हैं, आते ही नियुक्तियों के लिए कह दिया है। जै जै! बाकी तीन राज्यों में भाजपा वाले सीएम चुनने से लेकर शपथ लेने तक को 'बड़े से बड़ा शो' बनाने पर तुले हैं! सबसे बड़ा लखनऊ का शो है, जहां योगी के सीएम की शपथ लेने के अवसर पर दर्जनों सीएमों को होना है। पीएम को होना है, बाकी 'एमों' को होना है!
इस बीच यूपी के बुलडोजर बाबा की जगह एमपी के सीएम 'बुलडोजर मामा' ले लेते हैं और बुलडोेजर देख बच्चों की तरह खुश दिखते हैं, मानो बुलडोजर न हो, खिलौना हो! क्या बुलडोजर ही अब कानून है? आज आप चला रहे हैं, कल को किसी और ने चलाया तो क्या करेंगे! विजय के बाद वाली कथित 'विनम्रता' कहां गई भाई जी?
इसी बीच बंगाल के बीरभूम के रामपुरहाट में आठ लोगों को जिंदा जला दिए जाने की बड़ी खबर : पहली बार कांग्रेस सीपीएम और भाजपा का 'एक पेज पर'! और एक बार फिर 'अनंतिम' बार कहा गया कि जलाए नहीं गए, जल गए! टीवी का तार जला और जल गए! जलाए नहीं जल गए! बाकी 'षड्यंत्र'!
इसी तरह की बातें 'कश्मीर फाइल्स' की बहसों में आती रहीं कि पंडित भगाए नहीं गए, स्वेच्छा से भागे! मारे नहीं गए, मर गए! बहुत से मुसलमान भी मरे! एक बड़े कहिन कि जांच कर लो! तब हम नहीं, वो वो वो थे! उन्हीं ने मारे होंगे, भगाए होंगे!
जिन पर शक है, वे कहते हैं 'जांच कराओ'। जो शक करते हैं वे कहते हैं कि 'जांच कराओ'! कई एंकर रोज चीखते हैं कि जांच कराओ! प्रवक्ता कहते हैं कि जांच जरूरी, जांच जरूरी! पंडित और हमदर्द चिल्लाते रहते हैं : जनसंहार जनसंहार! लाखों को मार कर, डरा कर भगाया गया, लेकिन 'कश्मीर फाइल्स' के दस दिन बाद भी नहीं बैठती कोई जांच! नहीं बिठाता कोई जांच!
प्रवक्ता कहते कि तीन सौ सत्तर हटा है, अब होगी जांच! लोग पूछते हैं, कब होगी जांच? इस तरह हो रही है जांच! फिर मांग होगी कि इस जांच की भी हो जांच, होती रहेगी हर जांच की फिर से जांच कि उसकी भी फिर से जांच! इसी तरह होती रहेगी जांच! उठती-बैठती रहेगी जांच! चलती रहेगी जांच!
हिजाब पर आया कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला, लेकिन फिर भी जमा है विवाद कि फिर जा रहे हैं 'हिजाबवादी' सुप्रीम कोर्ट, कि हमें जरूरी है हमारा 'हिजाब'! इन दिनों स्त्रीत्ववादियों को भी सबसे प्यारा लगता है 'हिजाब'!