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By NI Editorial
अब जबकि कुछ ऐसे हलकों से- जिन्हें किसी राजनीतिक मकसद से प्रेरित नहीं माना जा सकता- सवाल उठाए गए हैं, तो उन प्रश्नों के जवाब दिए जाने चाहिए। मकसद भरोसे का माहौल बनाना होना चाहिए।
यह नहीं कहा जा सकता कि आत्म-निर्भरता की भारत सरकार की नीति गलत दिशा में है। इसके तहत मेक-इन-इंडिया को बढ़ावा देने और सरकारी विभागों की खरीद में पारदर्शिता लाने की उसकी पहल इस नीति का ही हिस्सा हैं। पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (जीईएम) पोर्टल की शुरुआत की है। बहरहाल, इन उपायों को लेकर हाल में खास कर देश की रक्षा तैयारियों से जुड़े लोगों और वैज्ञानिक समुदाय के एक हिस्से की तरफ से असंतोष जताया गया है। रक्षा विशेषज्ञों ने तो यहां तक चेतावनी दी है कि पूरी तरह से देसी उपकरण खरीद की अपनाई गई नीति से सरहद पर देश की मुस्तैदी कमजोर हो सकती है। उधर वैज्ञानिकों के एक हिस्से की शिकायत है कि अनुसंधान के लिए भारत में बने उत्पाद उच्च गुणवत्ता वाले नहीं है और भारतीय कंपनियों की आफटर सेल सर्विस भी खराब है। इसलिए इस नीति से रिसर्च एंड डेलपमेंट पर खराब असर पड़ सकता है। एक शिकायत यह भी आई है कि कई भारतीय कंपनियां चीन में बने पुर्जों को मंगवा कर उसे असेंबल करती हैं और उसे स्वदेशी उत्पादन की शर्तों पर खरा बता कर बेच देती हैँ। सरकार को इन तमाम शिकायतों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए। आखिर अच्छी से अच्छी नीयत भी व्यावहारिक कारणों से खराब नतीजे की वजह बन सकती है।
सरकार पर यह आरोप पहले से रहा है कि आत्म-निर्भरता और मेक-इन-इंडिया के नाम पर असल में वह कुछ गिने-चुने औद्योगिक घरानों का हित साध रही है। सरकार अगर संबंधित पक्षों के साथ खुले संवाद की प्रक्रिया कायम रखती, तो ऐसे आरोपों या शिकायतों की गुंजाइश नहीं बन पाती। बहरहाल, अब जबकि कुछ ऐसे हलकों से- जिन्हें किसी राजनीतिक मकसद से प्रेरित नहीं माना जा सकता- सवाल उठाए गए हैं, तो उन प्रश्नों के जवाब दिए जाने चाहिए। मकसद भरोसे का माहौल बनाना होना चाहिए। इसके लिए अगर सरकार की नीति में कुछ फेरबदल करना पड़ा और इस पर अमल की गति धीमी करनी पड़े, तो सरकार को ऐसा करना चाहिए। ऐसे मामलों को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाना कभी देश हित में नहीं होता।
Gulabi Jagat
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