सम्पादकीय

जानलेवा रिहाइश

Subhi
15 March 2022 4:27 AM GMT
जानलेवा रिहाइश
x
दिल्ली के गोकुलपुरी इलाके में एक झुग्गी बस्ती में आग लगने और उसमें सात लोगों की मौत ने एक बार फिर यह साबित किया है कि सरकार और संबंधित महकमे इस तरह के हादसों की आशंका के बने रहने के बावजूद किस कदर सोए रहते हैं।

Written by जनसत्ता: दिल्ली के गोकुलपुरी इलाके में एक झुग्गी बस्ती में आग लगने और उसमें सात लोगों की मौत ने एक बार फिर यह साबित किया है कि सरकार और संबंधित महकमे इस तरह के हादसों की आशंका के बने रहने के बावजूद किस कदर सोए रहते हैं। दूसरी ओर, इसका खमियाजा इस रूप में सामने आता है कि वक्त रहते सावधानी बरतने से जहां लोगों की जान बचाई जा सकती थी, वहां नाहक ही कई लोग मारे जाते हैं।

गोकुलपुरी का यह हादसा झुग्गी बस्ती में रहने वाले लोगों की किसी साधारण चूक या लापरवाही का नतीजा हो सकता है, मगर इससे यह भी जाहिर होता है कि घटना के बाद जो सरकारी महकमे बिजली के गलत कनेक्शन, शार्ट सर्किट के कारण आग लगने और बचाव के उपाय कमजोर होने की जांच करेंगे या फिर इन्हें जिम्मेदार बताएंगे, उन्हें कभी भी इस बात की जरूरत महसूस नहीं होती है कि वे अपने कार्यक्षेत्र में आने वाले रिहाइशी इलाकों में जरूरी नियमों को लेकर समय-समय पर नियमित पड़ताल करते रहें।

दिल्ली में झुग्गी बस्तियों में अक्सर आग लगने और उसमें भारी जानमाल के नुकसान की खबरें आती रहती हैं। घटना हो जाने के बाद अग्नि शमन सहित संबंधित दूसरे महकमों की नींद खुलती है, वे कुछ दिनों के लिए सक्रिय होते हैं। बचाव और राहत से लेकर जांच की बात की जाती है। मगर थोड़े दिनों बाद फिर से कहीं ऐसी ही घटना सामने आ जाती है। सच यह है कि शहरों-महानगरों में खाली जगहों पर जब झुग्गी बस्तियां बस रही होती हैं, उस समय नियम-कायदों को पूरा करने को लेकर उतनी सक्रियता नहीं दिखाई जाती है। उसके बाद उन बस्तियों में बुनियादी सुविधाएं या बिजली-पानी की सुविधाएं कैसे विकसित हुर्इं, उनसे संबंधित नियमों का कितना पालन किया गया है, इस पर ध्यान देने की जरूरत नहीं महसूस की जाती है।

गोकुलपुरी की जिस झुग्गी बस्ती में आग लगी, उसमें कुछ लोगों ने वहां झुग्गियां बसाई थीं और अब वे वहां रहने वालों से किराया वसूल रहे थे। यह कैसे चल रहा था? यों किसी बस्ती में आग लगने की घटनाओं को लेकर कई बार आपराधिक साजिश की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन कई बार अवैध लेन-देन के चलते भी कुछ बातों की अनदेखी की जाती है।

नतीजतन, ऐसी बस्तियों में किसी तरह अपना जीवन काटते लोग अक्सर अपनी सुरक्षा को लेकर जरूरी सजगता नहीं बरत पाते और अक्सर बड़े हादसों का शिकार हो जाते हैं। करीब डेढ़ महीने पहले ही दिल्ली के गाजीपुर इलाके में सौ झुग्गियां जल कर खाक हो गर्इं थीं। विडंबना यह है कि बार-बार होने वाले ऐसे हादसों के बावजूद इनसे बचाव के उपाय सुनिश्चित करने और गड़बड़ियों की जांच कर उन पर काबू पाने या उन्हें दूर करने के लिए समय पर कदम नहीं उठाए जाते।

यह बेवजह नहीं है कि कुछ समय के अंतराल पर झुग्गी बस्तियों में आग लगने और उसमें लोगों के जान गंवाने की घटनाएं होती रहती हैं। क्या यह स्थिति इसलिए नजरअंदाज करने लायक समझी जाती है कि इन बस्तियों में रहने वाले लोग आमतौर पर आर्थिक रूप से कमजोर तबके के होते हैं? पुलिस या प्रशासन की ओर से अपने अधीन कार्यक्षेत्र में अगर इस तरह के हादसों की आशंका के हालात को लेकर उदासीनता बरती जाती है, तो इसके लिए किसकी जिम्मेदारी बनती है? इस सबके बीच जानलेवा हादसों में जानमाल के व्यापक नुकसान को कम किया जा सकता है, अगर संबंधित महकमे अपनी ड्यूटी और जिम्मेदारी का ईमानदारी से निर्वहन करें।


Next Story