सम्पादकीय

अपनी अखंड परंपरा से हम अलग न हों

Rani Sahu
22 April 2022 7:06 PM GMT
अपनी अखंड परंपरा से हम अलग न हों
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हिन्दुस्थान के किसी क्षेत्र में निवास करने वाले अथवा बाहर के किसी अन्य अहिंदू लोगों का वर्चस्व न रहते हुए जहां हम लोगों का स्वत्व अर्थात हिंदुत्व का प्रभाव स्थापित किया जा सकेगा

विनायक दामोदर सावरकर,

हिन्दुस्थान के किसी क्षेत्र में निवास करने वाले अथवा बाहर के किसी अन्य अहिंदू लोगों का वर्चस्व न रहते हुए जहां हम लोगों का स्वत्व अर्थात हिंदुत्व का प्रभाव स्थापित किया जा सकेगा, वहीं यह हिंदुओं का एकमात्र स्वराज्य होगा। हिन्दुस्थान में जन्म लेने के कारण कुछ अंग्रेज हिंदी (हिन्दुस्तानी) हैं, परंतु क्या इन एंग्लो-इंडियन के वर्चस्व को हिंदुओं का स्वराज्य कहना संभव है? औरंगजेब तथा टीपू जन्मजात हिन्दुस्थानी ही थे; इसके अतिरिक्त वे धर्मांतरित हिंदू माताओं के ही पुत्र थे, परंतु क्या इसी कारण औरंगजेब अथवा टीपू का राज्य हिंदुओं का स्वराज्य बन गया? कदापि नहीं। ...अत: शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह, राणा प्रताप तथा पेशवा आदि को युद्ध करते हुए यथार्थ रीति से हिंदुओं का स्वराज्य प्रस्थापित करना पड़ा।
अत: वर्तमान अवस्था में 'हिंदी राष्ट्रीय राज्य' का विचार किया जाए, तो उसका अर्थ केवल यही होगा कि हिन्दुस्थान में निवास करने वाले मुसलमान अल्पसंख्यकों को समान नागरिक अधिकार प्राप्त होंगे तथा संख्या के अनुसार नागरिक जीवन में अधिकार प्राप्त होंगे। किसी भी अहिंदू अल्पसंख्यक के न्यायपूर्ण अधिकारों पर बहुसंख्यक हिंदू अतिक्रमण नहीं करेंगे, परंतु लोकसत्ता तथा न्याय के अनुसार, बहुसंख्य होने के नाते अधिकारों का प्रयोग करने हेतु प्राप्त सत्ता का त्याग हिंदू नहीं करेंगे।
मुसलमानों का अल्पसंख्यक होना किसी प्रकार से हिंदुओं पर किया गया उपकार नहीं माना जा सकता। अत: राजनीतिक, नागरिक अधिकारों का उचित हिस्सा लेते हुए उन्हें संतुष्ट होना चाहिए। बहुसंख्यकों के न्यायपूर्ण अधिकार और सत्ता न मानने का अधिकार अल्पसंख्यकों को देकर इस घटना को स्वराज्य कहना सर्वथा गलत है।
अपने देश में अपना स्वयं का स्वामित्व स्थापित करने की एकमात्र बात हम हिंदू चाहते हैं। हम लोगों के देश का हिन्दुस्थान नाम ही सदैव चलना चाहिए। ...आर्यावर्त, भारतभूमि आदि नाम ही सुसंस्कृत लोगों में प्रिय होगा। हम लोगों की मातृभूमि को हिन्दुस्थान नाम से ही संबोधित किया जाना चाहिए, ऐसा आग्रहपूर्वक करने में अपने अहिंदू देश-बांधवों पर अतिक्रमण करना अथवा उनकी मानहानि करना हम लोगों का उद्देश्य नहीं है। पारसी तथा क्रिश्चियन देशबंधु आज भी सांस्कृतिक दृष्टि से हम लोगों से इतने समान हैं, इतने स्वदेशभक्त हैं तथा एंग्लो इंडियन इतने समझदार हैं कि वे हिंदुओं की न्यायपूर्ण भूमिका से सहमत होना अस्वीकार नहीं करेंगे।
हम लोगों के मुसलमान देश-बांधवों को राष्ट्रीय तथा प्रादेशिक दृष्टि से अपना निर्देश करते समय हिन्दुस्थानी मुसलमान कहलाने में संतुष्टि का अनुभव करना चाहिए। ऐसा करते समय उनके धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्वतंत्र अस्तित्व को जरा भी बाधा नहीं पहुंचती है। मुसलमान इस देश को हिन्दुस्थान ही कहते आए हैं। परंतु इन बातों को अस्वीकार करते हुए कुछ दुराग्रही मुसलमान इस देश के नाम को स्वीकार नहीं करते; परंतु इस बात के कारण अपना विवेक त्यागकर हम लोगों को आत्म-प्रत्ययहीन बनने की आवश्यकता नहीं है। (तब भारत विभाजन नहीं हुआ था।) हिन्दुस्थान नाम हम लोगों की मातृभूमि के लिए रूढ़ हो चुका है। मातृभूमि के इस नाम से ऋग्वेद कालीन सिंधु से हम लोगों की पीढ़ी के हिंदू शब्द तक जो अखंड परंपरा व्यक्त होती है, उसे भंग करने या उससे विरत होने के लिए हिंदुओं को तत्पर नहीं होना चाहिए।
जर्मनों का देश जिस प्रकार जर्मनी, अंग्रेजों का इंग्लैंड, तुर्कों का तुर्कस्थान तथा अफगानों का अफगानिस्तान, उसी प्रकार हिंदुओं का देश होने के कारण हिन्दुस्थान, इस नाम से ही हम लोगों को अपना स्थान विश्व के नक्शे में स्थायी रूप से अंकित करना चाहिए।


Rani Sahu

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