सम्पादकीय

नए साल में ऊंचे लक्ष्य तय कर उन्हें हासिल करने का संकल्प लें भारतीय

Gulabi
30 Dec 2021 3:58 PM GMT
नए साल में ऊंचे लक्ष्य तय कर उन्हें हासिल करने का संकल्प लें भारतीय
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मानवीय इतिहास में बीते दो वर्ष बहुत दुर्लभ किस्म के रहे हैं
राजेंद्र प्रताप गुप्ता। मानवीय इतिहास में बीते दो वर्ष बहुत दुर्लभ किस्म के रहे हैं। हमने नया साल यानी 2021 बड़ी सकारात्मक सोच के साथ आरंभ किया था, लेकिन कोरोना ने उस पर चोट कर दी। 2022 भी हमें ओमिक्रोन को लेकर चेतावनी दे रहा है। ये गंभीर, किंतु क्षणिक चुनौतियां हैं और कुछ कदम उठाकर हम इस खतरे को मात देकर न केवल नए साल में सकारात्मकता के साथ प्रवेश करेंगे, बल्कि एक बेहतर भविष्य की आस भी लगा सकते हैं। अगला साल प्रत्येक भारतीय के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि इसके साथ ही भारतीय स्वतंत्रता की शताब्दी पूरे होने में एक चौथाई समय शेष रह जाएगा, जो 2047 में पूरा होगा। इसके लिए आवश्यक होगा कि हरेक भारतवासी गहरी समझ, आत्मविश्लेषण और कर्मठता का मंत्र अपनाए।
वर्तमान में भारत की औसत आयु लगभग 29 वर्ष है। यानी हम दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक हैं, लेकिन जब 2047 में भारत स्वतंत्रता के 100वें पड़ाव पर पहुंचेगा, तब ऐसी स्थिति नहीं रह जाएगी। हमारी अनुमानित आबादी 169 करोड़ होगी और प्रत्येक पांचवां भारतीय वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में होगा, जिनकी संख्या करीब 34 करोड़ होगी, जबकि स्वतंत्रता के समय भारत की आबादी ही 34 करोड़ थी। यह परिदृश्य हमारे समक्ष कई चुनौतियां उत्पन्न करता है। पहली, सेवानिवृत्त लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति। दूसरी, एक बड़ी तादाद में रोजगारों पर आटोमेशन से संकट खड़ा हो जाएगा। तीसरी, हम जो बुनियादी ढांचा खड़ा कर रहे हैं, उसके लिए हमारे पास भुगतान की क्षमता नहीं होगी।
बढ़ती जनसंख्या, रोजगार एवं आमदनी में गिरावट और बढ़ती पूंजीगत आवश्यकताओं के साथ ये सभी चुनौतियां हमें जटिल स्थिति में फंसा देंगी। अभी भारत 1927 डालर प्रति व्यक्ति जीडीपी के हिसाब से निम्न मध्यम आय वर्ग वाले देशों के मध्य में है। यदि हमें 2047 तक विकसित देशों की पांत में शामिल होना है तो अधिक प्रति व्यक्ति जीडीपी की दरकार होगी। अन्यथा हम हमेशा के लिए विकासशील देश ही बने रहेंगे। इसके अलावा यदि हमारी वित्तीय स्थिति बिगड़ती है तो ऐसा हो भी सकता है कि महाशक्तियां और विस्तारवादी मंशा वाले देश हमें व्यावसायिक रूप से दास बना लें।
सरकार मार्च 2022 तक 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराने जा रही है। इस हिसाब से देश में करीब 80 करोड़ लोग गरीब हैं। अभी हमारी जनसंख्या करीब 139 करोड़ है तो उस दृष्टि से 57.55 प्रतिशत आबादी गरीब है। ऐसे में हमें सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से ऊंची छलांग लगानी होगी। यह अत्यंत कठिन कार्य है। हमारा मौजूदा आर्थिक माडल अधिक से अधिक अरबपति और करोड़पति बनाएगा। आंकड़े दर्शाते हैं कि विगत सात वर्षो के दौरान 8.5 लाख से अधिक भारतीयों ने नागरिकता छोड़ दी।
ब्रिटिश राज के दौरान हमारी संपदा छीनकर विदेश ले जाई गई और अब धनाढ्य भारतीय ही भारत से बाहर जा रहे हैं। इस तरह संपदा का पलायन हो रहा है। दूसरी ओर भारतीय कंपनियों का बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अधिग्रहण किया जा रहा है या फिर विदेशी फंड उनमें निवेश कर रहे हैं, जो भविष्य में उनका नियंत्रण भी हासिल कर लेंगे। यह एक गंभीर चुनौती है, जिसका तत्काल प्रभाव से हल तलाशने की आवश्यकता है। यदि अमीर पलायन करते रहेंगे और गरीबों की तादाद लगातार बढ़ती रही और देश की संपदा कुछ हाथों में सिमटती गई या विदेश जाती रही तो 2047 में भारत विकसित बनने के बजाय फिर दासता की राह पर बढ़ेगा। आखिर इसका समाधान क्या है?
नई विश्व व्यवस्था में आगे बढ़ने के लिए कोविड ने हमें अपनी प्राथमिकताएं और प्रणालियों को नए सिरे से तय करने की गुंजाइश प्रदान की है। सबसे पहले इस नए वर्ष में संकल्प लें कि 2047 तक भारत को विकसित देश बनाना है। हमारे पास शानदार प्रतिभाएं हैं। उनकी संभावनाएं भुनाने के लिए हमें एक तंत्र बनाना होगा। ऐसा तंत्र जो उन्हें भी आकर्षित करे, जो भारत वापस लौटकर अगले 25 वर्षो के दौरान देश को विकसित बनाने के सपने को साकार करने में मददगार बनें। पिछले दो दशकों के दौरान सकल राष्ट्रीय आय की वृद्धि के रुझान को देखें तो 2047 तक उच्च आय सीमा 19,582 डालर होगी। यदि भारत को उस मुकाम तक पहुंचना है तो 2047 तक 31.52 टिलियन (लाख करोड़) डालर की अर्थव्यवस्था बनना होगा। यदि वैश्विक वृद्धि का रुझान बढ़ा तो यह लक्ष्य भी उसी अनुपात में बढ़ सकता है। अभी भारत की जीडीपी 2.7 टिलियन डालर है। भविष्य की वृद्धि काफी कुछ इस पर निर्भर करेगी कि हम उसके लिए क्या तौर-तरीके अपनाएंगे।
छोटे लक्ष्य भारतीयों को न तो कभी उत्साहित करते हैं और न ही एकजुट। हमने हमेशा ऊंचे लक्ष्य तय कर उन्हें हासिल किया है। फिर चाहे क्रूर साम्राज्यवादी शासन से स्वतंत्रता हो या फिर स्वदेशी तकनीक से रिकार्ड समय में मंगल अभियान को सफल बनाना। स्मरण रहे कि परमाणु परीक्षणों के कारण लगे प्रतिबंधों से विदेशी तकनीक हमारे लिए दूभर हो गई थी, फिर भी भारत ने पहले ही प्रयास में मात्र 7.4 करोड़ डालर वाले मंगल अभियान को सफल बना दिया। ऐसे मिशन पर अमेरिका ने पांच वर्षों के दौरान 67.1 करोड़ डालर खर्च किए और हमने यह काम 15 महीनों में ही कर दिखाया।
भारत रिकार्ड समय में कोरोना रोधी टीकों की 100 करोड़ से अधिक खुराक लगाने में सक्षम हुआ। धाराओं के विरुद्ध तैरकर जीतना हमें बखूबी आता है। इस बार हमारा एकनिष्ठ लक्ष्य होना चाहिए कि अगले 25 वर्षों के दौरान देश को विकसित राष्ट्र बनाना है। हम एक समृद्ध, सतत और खुशहाल भारत चाहते हैं। हमें अपनी दृष्टि, संस्थानों, प्रणालियों, नीतियों, संस्कृति और मानसिकता को परिभाषित कर योजनाबद्ध ढंग से इस मुद्दे का समाधान निकालना है। इन सभी को विकसित भारत मिशन के साथ जोड़ना चाहिए। विकसित भारत मिशन के अंतर्गत हम इसका खाका खींच रहे हैं। अपने आर्थिक माडल पर पुनर्दृष्टि के साथ ही हमारी मानसिकता में भी बदलाव आवश्यक है। हमें सभी मतभेद भुलाकर '2047 तक विकसित भारत' मिशन में जुटना चाहिए। अगर हम इसे संभव नहीं कर सके तो उसमें किसी और का दोष नहीं होगा।

(लेखक लोक नीति विशेषज्ञ हैं)
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