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विधानसभा चुनावों के नतीजे (Assembly Election Result) आ चुके हैं
सैय्यद ज़ेघम मुर्तुज़ा
विधानसभा चुनावों के नतीजे (Assembly Election Result) आ चुके हैं. बीजेपी (BJP) की शानदार जीत, विपक्षी दलों को कई सबक दे गयी है. तमाम कोशिशों के बावजूद, विपक्ष (Apposition) लोगों का भरोसा नहीं जीत पाया. वह मतदाताओं को यह समझाने में पूरी तरह नाकाम रहा है, कि वो जनता के लिए एक बेहतर, भरोसेमंद विकल्प है. पहले दिन से किंग मेकर मानी जा रही, मायावती की बसपा महज एक सीट पर सिमट गयी है.
ये बहुजन समाज पार्टी का विधानसभा चुनावों में अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है, ऐसा लगता है, कि मायावती ने उत्तर प्रदेश में अपनी जमीन को खो दिया है. उसके बेस वोटर ने बीजेपी की जीत में अहम भूमिका निभाई है. मुफ्त राशन योजना और अन्य सुविधाओं ने सत्तारूढ़ पार्टी के लिए चुंबक का काम किया है, उसने बीएसपी मतदाताओं के एक बड़े हिस्से को अपनी तरफ खींचा है. इतना होने पर भी मायावती अपने आप को ये तसल्ली तो जरूर दे सकती है, कि वो मुस्लिम वोटों का बंटवारा करने में अब भी सक्षम हैं, ऐसा करके वो समाजवादी पार्टी के कई उम्मीदवारों को बीजेपी से हराने में कामयाब रही है.
मायावती के लिए सबसे बुरी खबर ये है, कि उन्होंने अपनी पार्टी का करिश्माई चरित्र खो दिया है, अब उत्तर प्रदेश में मायावती को अपनी पार्टी के लिए जमीन तलाशना बहुत मुश्किल है, और ना उनके पास सतीश चंद्र मिश्रा और काशीराम जैसे जुझारू, जमीनी नेता है. अपने मतदाताओं के अधिकारों के लिए लड़े बिना अब मायावती की कोई प्रासंगिता नहीं है.
विपक्ष के पास लोकसभा में बीजेपी की संख्या कम करने की चुनौती है
इन चुनावों ने एक और बड़ा सबक, कांग्रेस पार्टी को भी दिया है, कांग्रेस ने एक बार फिर से उत्तर प्रदेश में खोए हुए गौरव को वापस पाने का मौका गंवा दिया है. पार्टी अमेठी,रायबरेली और सुल्तानपुर जैसे अपने पुराने गढ़ में कहीं भी बीजेपी को टक्कर देती नज़र नहीं आई, ऐसा तब हुआ, जब प्रियंका गांधी ने अपनी पूरी ताकत पार्टी के प्रचार में झोंक दी. लेकिन पार्टी हर जगह बेदम नज़र आई.कई जगहों पर तो कांग्रेस प्रत्याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए. कांग्रेस को बीजेपी की ताकत का मुकाबला करने के लिए एक पार्टी संगठन और ज़मीनी स्तर के कार्यकर्ताओं की जरूरत है. जो भविष्य में लगभग असंभव नजर आता है. यह कांग्रेस के लिए एक बड़ी चिंता का विषय इसलिए भी है, क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनावों में अब महज 2 साल बाकी हैं.
अब आइए बात करते हैं, प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी की, हालांकि इस बार अखिलेश यादव ने सत्ता में वापसी के लिए काफी मेहनत की. उन्होंने महंगाई,बेरोजगारी, पेंशन आदि समस्याएं उठा कर मतदाताओं को रिझाने की पूरी कोशिश की. उनकी जनसभाओं में जुटी भारी भीड़ वोटों में तबदील नहीं हो पाई. उन्होंने पिछले चुनाव से काफी बेहतर प्रदर्शन किया लेकिन एक चुनाव हारने से पार्टी को, उसके कैडर की कीमत चुकानी पड़ती है. अखिलेश यादव ने अच्छा प्रयास किया, लेकिन ऐसा लगता है, कि छोटे गठबंधनों को जोड़ने में देर हो गई, साथ ही उन्हें मानना होगा, कि ट्विटर और पीसी रूम पॉलिटिक्स से सत्ता नहीं जीती जा सकती. हालांकि वो असफल रहे, लेकिन उनकी पार्टी ने सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए आने वाले समय में चुनौती जरूर पैदा की है. उन्होंने दिखा दिया कि बीजेपी को हराया जा सकता है. और 2014, 2017 और 2019 की हार के बाद अपने पारंपरिक वोट को फिर से, एक किया जा सकता है.
बीजेपी के लिए यह है एक तरफा जीत है, पार्टी गरीब मतदाताओं को वोटों में तबदीली करने में कामयाब रही है, उसकी मुफ्त योजनाओं ने पार्टी के लिए ट्रम्प कार्ड का काम किया है, लेकिन बार-बार ऐसा नहीं हो सकता. विपक्षी दलों ने, मोदी योगी शाह की तिकड़ी की ताकत को चुनौती दी है, बेरोजगारी महंगाई जैसी समस्याएं जनता को परेशान कर रही थी, और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में , ये समस्याएं पार्टी के लिए परेशानी का सबब हो सकती है. बीजेपी के लिए फिलहाल खुशी मनाने का अवसर है. और विपक्ष के पास जैसा यूपी विधानसभा में हुआ है वैसे ही, लोकसभा में बीजेपी की संख्या कम करने की चुनौती है.
Rani Sahu
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