सम्पादकीय

रूस युक्रेन युद्ध से सीखने वाले सबक, जिसकी लाठी उसकी भैंस आज भी एक सच्चाई

Gulabi
10 March 2022 8:34 AM GMT
रूस युक्रेन युद्ध से सीखने वाले सबक, जिसकी लाठी उसकी भैंस आज भी एक सच्चाई
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यूक्रेन पर रूस के हमले से दुनिया चौंक गई थी
चेतन भगत का कॉलम:
यूक्रेन पर रूस के हमले से दुनिया चौंक गई थी। अनेक विशेषज्ञ भी इसका पूर्वानुमान नहीं लगा सके थे। खटपट तो लम्बे समय से चल रही थी, लेकिन किसी को उम्मीद नहीं थी कि रूस यूक्रेन पर पूरे दमखम से धावा बोल देगा। साल 2022 में यह अकल्पनीय ही है कि कोई सम्प्रभु देश किसी दूसरे पर हमला कर सकता है। दुनिया स्तब्ध है। न्यूज चैनलों पर नॉन-स्टॉप कवरेज चल रहा है। सोशल मीडिया पर वीडियोज, मीम्स और लेख भरे पड़े हैं।
पश्चिमी देशों ने एकजुट होकर रूस की निंदा की है। कठोर प्रतिबंध लगाए गए हैं। इसके बावजूद यूक्रेन अपने से कहीं ताकतवर शत्रु से अकेला ही लड़ रहा है। युद्ध समाप्त करने की मांगें, यूक्रेनवासियों का समर्थन, रूस की निंदा- ये सब अपनी जगह दुरुस्त हैं, लेकिन इस युद्ध ने जीवन और दुनिया के बारे में कुछ कड़वी सच्चाइयों को भी उजागर किया है।
अगर आप बहुत जल्द किसी बात से चोट खा जाते हैं और भड़क उठते हैं तो इससे आगे ना पढ़ें। अगर आप सच्चाई का सामना नहीं करना चाहते और 'जो है' उसके बजाय 'जो होना चाहिए' की आदर्शवादी बातें करते हैं, तो कृपया पढ़ना बंद कर दें! क्योंकि जो मैं कहने जा रहा हूं, वो आपको परेशान कर देगा। ठीक है, आपको चेतावनी दे दी गई है। तो ये रहे रूस-यूक्रेन से सीखने वाले पांच सबक, जो आपके जीवन पर भी लागू होते हैं।
ताकत और क्षमता मायने रखती हैं : रूस के व्यवहार पर आपका नैतिक रुख चाहे जो हो, तथ्य यही है कि रूस ने यह हमला इसलिए किया क्योंकि वह मजबूत है। यूक्रेन पिट रहा है, क्योंकि वो उसके जितना ताकतवर नहीं है। ये सच है कि यूक्रेन के साथ आज सबकी हमदर्दी है। लेकिन हमें जीवन में- या एक देश के रूप में- ताकत की खोज करनी चाहिए, हमदर्दी की नहीं। काबिलियत को तलाशें, रहम को नहीं।
किसी पर भी भरोसा न करें : यूक्रेन के पास न्यूक्लियर हथियार थे। पश्चिम ने न्यूक्लियर हथियारों को समाप्त करने पर जोर दिया और निरस्त्रीकरण जैसे शब्दों को कूल और महान बना दिया। यूक्रेन ने अपने न्यूक्लियर हथियारों को त्याग दिया। उससे वादा किया गया था कि जरूरत पड़ने पर मदद की जाएगी, लेकिन आज कोई मदद नहीं कर रहा है। भारत से भी न्यूक्लियर हथियारों को छोड़ने को कहा गया था।
हमें युद्ध चाहने वाला, ताकत दिखाने वाला, अमन-चैन का दुश्मन आदि कहा गया। लेकिन आपने देखा यूक्रेन में क्या हुआ? अगर उसके पास न्यूक्लियर हथियार होते तो क्या ऐसा हो पाता? यूक्रेन ने भरोसा किया और कीमत चुकाई। जीवन में भी- या एक देश के रूप में- किसी पर भरोसा न करें। और अपनी सुरक्षा को किसी और के हाथों में ना सौंपें।
जो जितना निर्मम, उतना ही ताकतवर : अमेरिका के पास सबसे ताकतवर हथियार और शायद सबसे बेहतरीन डिफेंस फोर्स है, लेकिन आज दुनिया रूस से डर रही है। चाहे लाखों मर जाएं रूस को परवाह नहीं, अमेरिका को है। आज अमेरिका न्यूक्लियर हथियारों का इस्तेमाल करने के बारे में सोच भी नहीं सकता, इसके बावजूद उसे रूस की बात सुननी पड़ रही है। आज जहां अनेक देशों के पास दुनिया का अंत करने में सक्षम हथियार हैं, वहां सबसे निर्मम और क्रूर नेता ही सबसे ताकतवर साबित होता है। यही कारण है कि नॉर्थ कोरिया जैसा छोटा-सा देश भी आज इतना दबदबा रखता है।
दुनिया सॉफ्ट और कमजोर हो गई है : सोशल मीडिया पर भावुकता और वोकनेस का बोलबाला रहता है। यहां न्याय, समानता, करुणा की मांगें की जाती रहती हैं। ब्रांड्स भी इन बातों को भुनाकर पैसा कमाने का मौका नहीं चूकते। राजनेता इसे प्रोत्साहित करते हैं, क्योंकि उनकी नजर वोटों पर है।
आज यह माना जाने लगा है कि आप जितना विरोध-प्रदर्शन करेंगे और खुद को व्यक्त करेंगे, चीजें उतनी ही बेहतर होंगी। इसके पीछे यह खुशफहमी है कि दुनिया और लोग न्याय चाहते हैं। जबकि दुनिया कभी न्यायपूर्ण नहीं थी, ना होगी। ताकतवर हमेशा कमजोर को हराएगा। इसलिए विक्टिम कार्ड खेलकर खुद को कमजोर दिखलाने के बजाय ताकतवर बनने की कोशिश कीजिए। मनुष्यता का इतिहास संघर्षों से भरा रहा है। पहले लोग तीर-तलवार चलाते थे, आज रील्स बनाते हैं और पोस्ट लिखते हैं। अंतर देख लीजिए।
युद्ध एक कंटेंट है और आप अकेले हैं : जमीनी हकीकत चाहे जितनी भयावह हो, तथ्य यही है कि युद्ध में ड्रामा के लिए सभी जरूरी तत्व होते हैं। यह अल्टीमेट रियल्टी शो बन सकता है और बन चुका है। इसमें सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर्स से लेकर सामाजिक-न्याय के योद्धाओं और वर्चुअल सिग्नलर्स तक सभी यूक्रेन के लिए प्यार जता रहे हैं। यह सब अमूमन लाइक्स, कमेंट्स और इंगेजमेंट्स के लिए किया जाता है। हममें से बहुतेरे यथास्थिति को बदलने के लिए कुछ नहीं कर सकते, इसके बावजूद हम इस भयानक-कंटेंट से चिपके हुए हैं। जीवन में भी यही होता है। जब आप दु:खी होते हैं तो दुनिया के बड़े हिस्से के लिए केवल एक गॉसिप का साधन होते हैं।
बीते अनेक दशकों ने हमें इस भ्रम में डाल दिया था कि दुनिया शांतिपूर्ण व न्यायप्रिय जगह है। यह झूठ है। हर मनुष्य और हर देश को अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए। अगर वो खुद ताकतवर नहीं होगा तो किसी ताकतवर का गुलाम बन जाएगा। भावनाओं और आदर्शवाद से फर्क नहीं पड़ता, क्षमताओं और ताकत से पड़ता है। उम्मीद करें युद्ध जल्द ही खत्म हो जाएगा। लेकिन साथ ही युद्ध ने जो सबक सिखाए हैं, उन्हें हमेशा याद भी रखें। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
कंटेंट और वर्चुअल-चर्चाओं के एडिक्ट
आप चाहे जितना ट्वीट करते रहें और दुनिया को न्यायपूर्ण बनाने की मांग करते रहें, लेकिन इसका ताकतवर दुश्मन पर कोई असर नहीं होता। इंस्टाग्राम पोस्ट्स में यूक्रेन का झंडा लगाने, फेसबुक पर उसे सांत्वना देने और ट्विटर पर रूस को गरियाने से कुछ नहीं होगा। अपने-अपने फोन में डूबे हम कंटेंट और वर्चुअल-चर्चाओं के एडिक्ट हो चुके हैं। हम कमजोर हो गए हैं और लड़ना भूल गए हैं।
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