सम्पादकीय

बेहतर भविष्य के लिए मिले सबक

Subhi
17 Sep 2022 3:22 AM GMT
बेहतर भविष्य के लिए मिले सबक
x
पिछले ढाई वर्षों में, जब मानवता एक ‘विज्ञान कथा’ में रहने के करीब आ गई, हमने कोविड-19 संकट के दौरान जीवन भर के लिए एक सबक सीखा। अब हम सामूहिक रूप से दावा कर सकते हैं

अदार पूनावाल: पिछले ढाई वर्षों में, जब मानवता एक 'विज्ञान कथा' में रहने के करीब आ गई, हमने कोविड-19 संकट के दौरान जीवन भर के लिए एक सबक सीखा। अब हम सामूहिक रूप से दावा कर सकते हैं कि भारत और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अथक नेतृत्व में हमने कई महत्त्वपूर्ण बातें सीखी हैं। इस दौरान हमने अपनी विनम्रता, दृढ़ संकल्प और शक्ति का प्रदर्शन किया, जिसके चलते दुनिया भर से सम्मान मिला, जो अपने आप में हमारी एक बड़ी उपलब्धि है।

खासकर भारत में टीका बनाने के मामले में यह दावा किया जा सकता है। चाहे वह भारत का टीका बनाने का कौशल हो, इस क्षेत्र में अनुसंधान और विकास में नवाचार परीक्षण हो, सार्वजनिक-निजी भागीदारी की संभावनाओं को उजागर करना हो, टीकाकरण अभियान का डिजिटलीकरण हो, मिशन मोड पर सरकारी विभागों को एक साथ लाना हो, चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सवा अरब लोगों का जीवन बचाने के लिए संवाद स्थापित करने और उन्हें समझाने के लिए किए गए प्रयास हों, हम हर मोर्चे पर सफल हो सके।

इस तरह हम दावा कर सकते हैं कि दशकों का सबक हमने इन दो सालों में सीख लिया। यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। खासकर तब जब स्थितियां बहुत तेजी से बदल रही हैं, विज्ञान के क्षेत्र में तेजी से विकास हो रहा है और कई देशों में टीके को लेकर कलह और सामाजिक झिझक भी देखी जा रही है।

एक साल से भी कम समय में सार्स को-वी2 जैसे नए विषाणु के लिए सुरक्षित और प्रभावी टीकों का विकास आधुनिक विज्ञान के इतिहास में सबसे प्रभावशाली कारनामों में गिना जाएगा। उस इतिहास में भारत के टीका पारिस्थितिकी तंत्र की भूमिका महत्त्वपूर्ण मानी जाएगी। कई दुर्घटनाओं और असंख्य स्थानीय और वैश्विक चुनौतियों, जैसे कच्चे माल की भारी कमी आदि के बावजूद सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया (एसआइआइ), जो दुनिया का सबसे बड़ा टीका निर्माता है, और अन्य भारतीय टीका-निर्माताओं ने दो अरब से अधिक खुराक टीके का निर्माण किया, जो अगर पूरे पृथ्वी ग्रह की आबादी के अनुपात में देखें तो लगभग एक तिहाई मानवता को एक खुराक देने के लिए पर्याप्त है।

विनिर्माण का यह पैमाना दुनिया के सामने भारत की क्षमता का एक संकेतक मात्र है, क्योंकि टीके बनाने के लिए बेहद उच्च तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है और ये व्यक्ति को अन्य बीमारियों के खिलाफ जीवन भर सुरक्षा प्रदान करते हैं।

टीकाकरण अभियान में को-विन ऐप के रूप में रीढ़ की हड्डी जैसी स्वास्थ्य तकनीक उपलब्ध कराई गई, जिसका बेहतरीन प्रदर्शन देखने को मिला। जिस रफ्तार से भारत ने ई-विन को अपनाया, उसकी स्मार्ट टीका आपूर्ति शृंखला प्रबंधन प्रणाली का विकास किया, जिसका उपयोग को-विन के अलावा बच्चों और महिलाओं के लिए सार्वभौम टीकाकरण कार्यक्रम में किया जाता है, वह अनुकरणीय कदम है।

भारत ने शुरू से ही डिजिटल टीकाकरण प्रमाणपत्र जारी करना शुरू कर दिया था, जबकि कई विकसित देश इसके लिए संघर्ष कर रहे थे और इसे मैन्युअल रूप से जारी कर रहे थे। को-विन वह महत्त्वपूर्ण मंच है, जो किसी आपात स्थिति से निपटने और अन्य सार्वभौमिक या उम्र विशेष के लिए चलाए जाने वाले टीकाकरण अभियानों को संचालित करने में उपयोगी साबित हो सकता है। यह एक ऐसी संपत्ति है, जिसे विभिन्न तरीकों से अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिए भी अनुकूलित किया जा सकता है।

तीन क्षेत्र, जिनमें देश ने नए प्रयोगों के प्रयास में एक छलांग लगाई और मूल्यवान सीख प्राप्त की, वे हैं टीका अनुसंधान और विकास, दवा नियामक प्रणाली, और सरकार की गहरी भागीदारी। इसमें कोविड-19 से पार पाने के लिए समस्त विभागों और निजी हितधारकों की सहभागिता भी सुनिश्चित की गई। सबसे पहले इस बात का पूरी तरह पता लगाया गया कि उग्र महामारी के दौरान टीके की खोज का मार्ग कितना अनिश्चित हो सकता है, फिर सरकार ने एक सोची-समझी रणनीति तैयार की।

उस समय कोई नहीं जानता था कि कौन-सा टीका प्रभावी साबित होगा। भले उस दौरान कई टीका निर्माता सफल थे, पर कौन सबसे सुरक्षित, सबसे प्रभावी और उपयोग करने में सबसे सुविधाजनक होगा, स्पष्ट नहीं था। टीका बनाने का विज्ञान इतना जटिल है कि दावा नहीं किया जा सकता कि जरूरी नहीं कि जो सबसे पहले बना वही सबसे अच्छा हो। इसलिए एक ऐसी योजना पर दांव लगाना था, जो संख्यात्मक रूप से समृद्ध और प्रौद्योगिकी के लिहाज से विविध थी।

इस तरह वैज्ञानिक समुदाय और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र ने अपने को एक दशक में विकसित की जा सकने वाली समझ को एक वर्ष में समेट दिया। इससे हमें यह भी सीखा कि अगर कंपनियां, नीति निर्माता और वैज्ञानिक एक साथ आ जाएं तो टीके के विकास में कुछ भी संभव हो सकता है। हमारी दवा-नियामक प्रणाली, जिसे पारंपरिक रूप से धीमी गति से चलने वाला माना जाता है, उसने परिपक्व बाजारों में कई वैश्विक नियामकों की तरह, टीकों को मंजूरी देने के लिए त्वरित मार्ग अपनाना सीखा। इससे यह भी अनुभव मिला कि अगर कभी कोविड-19 की तुलना में अधिक भयावह किन्हीं बीमारियों के विरुद्ध प्रभावी और जबर्दस्त अभियान छेड़ने की जरूरत पड़ी तो रोगी सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए, तेजी और दक्षता के साथ ये सबक नियामक प्रणाली की कार्यप्रणाली में दिखेंगे।

इस महामारी से लड़ने में इसलिए भी मदद मिली कि सरकार 'समग्र' रूप से इसमें लग गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में, कई अंतर-अनुशासनात्मक, अंतर-विभागीय अधिकार प्राप्त समूहों ने अपने खास ढर्रे में काम करने की संस्कृति को छोड़ कर तेजी से निर्णय लेने के लिए 'संपूर्ण सरकार' के रूप में अपने को ढाल लिया। उद्योग समूहों ने भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मीडिया, स्थानीय प्रभावशाली तंत्र, नागरिक समाज और अंतरराष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय भागीदारों सहित सभी हितधारकों ने इसमें सहायक की भूमिका अदा की। अगर यही जज्बा बना रहा, तो भविष्य में अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों से लड़ने में हमारे देश की अद्भुत क्षमता का परिचय मिल सकता है।

अंत में, हमने जो सबसे बुनियादी लेकिन मूल्यवान सबक सीखा, वह यह कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के संदर्भ में समुदाय के साथ पारदर्शी रूप से संवाद करना, प्रभावी ढंग से जुड़ना और उन्हें विज्ञान में अपना विश्वास उस भाषा में रखने के लिए प्रोत्साहित करना है, जिसे वे सबसे अच्छी तरह समझते हैं। ऐसे वक्त में जब कई विकसित देश टीका-विरोधी आंदोलन से जूझ रहे थे, भारतीयों ने टीकाकरण अभियान में भारी हिस्सेदारी करके दिखा दिया कि यह एक ऐसा देश है, जहां वैज्ञानिक स्वभाव हिचक को कम करता है।

दूसरा, सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद, 96.7 प्रतिशत पात्र आबादी को पहली खुराक का टीका लगाया जा चुका है, 89.2 प्रतिशत ने दोनों खुराक ले ली है, और 18.7 करोड़ से अधिक एहतियाती खुराक दी जा चुकी है। यह कोविड-19 टीकाकरण की भव्य सफलता का एक स्पष्ट प्रमाण है। पात्र लाभार्थियों को उनकी आवश्यक खुराक लेने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए देश भर में विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं।

मानव विकास रिपोर्ट 2022 में उद्धृत एक अनुमान के अनुसार, अकेले 2021 में, कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रमों ने विश्व स्तर पर लगभग दो करोड़ मौतों को रोका। सभी चुनौतियों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने वास्तव में कोविड-19 की प्रतिक्रिया को बदल दिया है। एक जन आंदोलन पूरे सरकार के माध्यम से, सभी हितधारकों की भागीदारी से पूरी तरह सफल हुआ।

Next Story