सम्पादकीय

श्रीलंका का सबक

Subhi
13 July 2022 5:47 AM GMT
श्रीलंका का सबक
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महंगाई की मार इस कदर पड़ी कि सोने की लंका आज सबसे बुरे वक्त से गुजर रही है। लोगों ने राजभवन में प्रदर्शन कर गुस्सा जाहिर किया। यही वजह रही कि प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे को इस्तीफा देना पड़ा।प्रदर्शनकारियों ने उनके घर को आग के हवाले कर दिया।

Written by जनसत्ता; महंगाई की मार इस कदर पड़ी कि सोने की लंका आज सबसे बुरे वक्त से गुजर रही है। लोगों ने राजभवन में प्रदर्शन कर गुस्सा जाहिर किया। यही वजह रही कि प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे को इस्तीफा देना पड़ा।प्रदर्शनकारियों ने उनके घर को आग के हवाले कर दिया। इस विरोध से साफ है कि श्रीलंकाई अब ऐसे नेताओं को बिल्कुल बदर्शत नहीं करने वाले, जिन्हें सिर्फ सत्ता का लोभ हो।

सालों से धीरे-धीरे महंगाई की इतनी बढ़ गई है कि श्रीलंकाई लोगों को पेट भरना भी मुश्किल हो गया है। आबादी का एक बड़ा हिस्सा एक-दो दिन भूखे रहने को मजबूर है। स्कूल, कालेज, रेल सब बंद हैं। श्रीलंका को लूटने में एक नाम चीन का भी है, जो लंका को भारी कर्ज देता रहा और नतीजा यह निकला कि आज श्रीलंका चीन के कर्ज से दबा पड़ा है। चीन की साजिश में श्रीलंका पूरी तरह तबाह हो गया। श्रीलंका में भ्रष्टाचार और लूटपाट का मौहाल बना हुआ है।

श्रीलंका में ऐसे हालात हैं कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में सालों लग जाएंगे। लेकिन उससे पहले एक ऐसी सरकार का सहारा चाहिए, जो व्यावहारिक रणनीति बना कर आर्थिक संकट से उबार सके। ऐसे में जनता का विरोध करना बता रहा है कि लंबे समय तक अब जनता कुशासन बर्दाश्त नहीं करेगी और न ही सत्ता का मोह रखने वालों को गद्दी हासिल करने देगी।

विश्व जनसंख्या दिवस पर संयुक्त राष्ट्र ने जो आंकड़े जारी किए, उसे लेकर कहीं खुशी तो कहीं गम का माहौल बन गया है। सबसे पहली बात यह कि दुनिया की आबादी इसी साल 15 नवंबर को आठ अरब की हो जाएगी। दूसरा आंकड़ा है कि भारत अगले वर्ष आबादी के मामले में चीन को पछाड़ देगा। इसी वजह से कुछ हलकों में फिर से जनसंख्या नियंत्रण कानून की वकालत शुरू हो चुकी है।

कहा जा रहा है कि जनसंख्या ही हर समस्या की वजह है। अगर सच में यही परेशानी का कारण है, तो फिर जरा चीन से पूछिए कि उसकी जो आबादी लगातार पिछले दो दशकों से गिरती जा रही है, क्या वह उससे खुश है? क्या कम आबादी के कारण अब चीन की सारी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी? नहीं, चीन उलटे पछता रहा है। युवा आबादी खत्म होती जा रही है। सरकार द्वारा प्रोत्साहन और प्रलोभन देने के बावजूद वहां के ज्यादातर दंपति कोई बच्चा जनना नहीं चाहते। इससे वहां कामकाजी लोगों की किल्लत हो रही है। इसलिए भारत इस तरह के कानून थोपने में जल्दबाजी न करे।

भारतीय समाज में बच्चों को गोद लेने के संबंध में पिछले तीन वर्षों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो बहुत सकारात्मक और सुखद रुझान नजर आता है। पिछले तीन वर्षों में अट्ठावन प्रतिशत बालिकाओं को घर की छत और परिवार का साथ नसीब हुआ है। बालक, बालिका दोनों गोद लिए जा रहे हैं, लेकिन बालिकाओं को गोद लेने के प्रति ज्यादा रुझान नजर आता है। बच्चों को गोद लेने में महाराष्ट्र सबसे आगे है। विदेशों में भी भारतीय मूल के बच्चे गोद लिए जा रहे हैं। लगभग अट्ठाईस हजार दंपत्ति बच्चा गोद लेने के इंतजार में हैं। यह चलन बहुत सकारात्मक है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए।


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