सम्पादकीय

यूक्रेन संकट से हमारे लिए सबक

Rani Sahu
25 Feb 2022 5:29 PM GMT
यूक्रेन संकट से हमारे लिए सबक
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यूक्रेन संकट महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच चुका है

सी उदय भास्कर,

यूक्रेन संकट महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच चुका है। पहले रूस ने दोनेत्स्क और लुहांस्क नामक दो अलग-अलग क्षेत्रों को मान्यता दी, फिर 'डीमिलिटराइज' (सैन्य क्षमता विहीन) करने के लिए यूक्रेन पर हमला बोल दिया। मॉस्को का यह फैसला यूरोप में राष्ट्रीय सीमाओं पर हिंसा न करने संबंधी उस वादे के खिलाफ है, जिस पर 1975 में हेलसिंकी समझौते में सहमति बनी थी। जाहिर है, यह वैश्विक व्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती है।
शीत युद्ध के बाद मध्य यूरोपीय क्षेत्र पर वर्चस्व की जंग और सुनहरे रूसी अतीत को फिर से जीवित करने की चाह यूक्रेन संकट के मूल में है। अमेरिका व उसके उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सहयोगी देश एकजुट हैं और मॉस्को पर प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। अभी 1939 में शुरू दूसरे विश्व युद्ध और जर्मन युद्ध-मानसिकता को विभिन्न तरीके से याद किया जा रहा है। अमेरिका और नाटो भी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की इस चेतावनी के बावजूद सैन्य विकल्प तलाश रहे हैं, जिसमें उन्होंने यूक्रेन के समर्थन में किसी 'हस्तक्षेप' के खिलाफ गंभीर नतीजे भुगतने की सख्त चेतावनी दी है।
मगर क्षेत्रीय प्रभुत्व को लेकर ऐसा संघर्ष सिर्फ यूक्रेन तक सीमित नहीं है। हाल ही में संपन्न म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन (एमएससी), 2022 में जिस तरह से अमेरिका व रूस का तनावपूर्ण संबंध हावी रहा, उसी तरह विवादित क्षेत्रों पर भारत-चीन की तनातनी भी सुर्खियों में रही। सम्मेलन में जिस तरह से विचार-विमर्श हुए, वह बीजिंग के सीमा-उल्लंघन संबंधी नई दल्ली के आकलन को स्पष्ट करते हैं।
सम्मेलन में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताया कि बीजिंग द्वारा सीमा समझौतों के उल्लंघन (जून, 2020 में हुई गलवान घटना के संदर्भ दिया गया) के बाद दोनों देशों के आपसी रिश्ते 'बहुत नाजुक' हो गए हैं। उन्होंने कहा, 'मसला यह है कि सीमा पर 45 वर्षों से शांति थी और 1975 के बाद से वहां कोई सैनिक हताहत नहीं हुआ था।'
गलवान संघर्ष के संदर्भ में विदेश मंत्री ने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर फौज को न लाने संबंधी चीन के साथ समझौते थे, जिसका बीजिंग ने उल्लंघन किया। इस पर नाराजगी जताते हुए चीन के ग्लोबल टाइम्स ने 20 फरवरी को तीखे शब्दों में लिखा, 'नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय समुदाय का साथ लेकर लाभ कमाने की कोशिश कर सकती है, ताकि खुद को मजबूत बना सके और सीमा मुद्दे पर आग से खेल सके। इस तरह की खतरनाक प्रवृत्ति से चीन को सावधान रहने की जरूरत है।'
जिस तरह से यूक्रेन का संकट सामने आया है, उसे हाइब्रिड युद्ध मॉडल का विस्तार कहा जा सकता है, जिसे मॉस्को ने पुतिन के नेतृत्व में सीरिया से लेकर कजाकिस्तान और अब मध्य यूरोप तक सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया है। इस घटनाक्रम में मजबूत सूचना अभियान के साथ सैन्य चढ़ाई की गई और उन्माद का पूरा इस्तेमाल किया गया, जो ब्रिंकमैनशिप रणनीति (घटनाओं को सक्रिय संघर्ष का रूप देकर फायदा उठाने की रणनीति) की पुष्टि करता है। यह परिस्थिति चीन के साथ तनातनी के संदर्भ में भारत को कुछ संकेत देता है।
बेशक, भारतीय सेना को अक्तूबर, 1962 से लेकर गलवान तक पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) से मुकाबला करने का अच्छा-खासा अनुभव है, लेकिन चीन का मौजूदा हाइब्रिड मॉडल एक नया अध्याय है, जिसमें शामिल ह, बुनियादी ढांचे का तीव्र निर्माण, विशेष जनसांख्यिकीय का फायदा उठाना, घरेलू कानूनों को मजबूत बनाना और एक अभिनव सूचना अभियान द्वारा पीड़ित-कार्ड खेलना व इस बात को लेकर जनभावना बनाना। यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत ने इसको लेकर उदासीनता बरती है। गलवान के बाद सूचना को लेकर हीला-हवाली इसका उदाहरण है। जून, 2020 में हिंसक झड़प के बाद साल 2021 की शुरुआत तक भारत ने कुछ सामरिक लाभों को इस उम्मीद में गंवा देना पसंद किया कि इससे बातचीत के लिए जरूरी राजनीतिक व राजनयिक ढांचा तैयार हो सकेगा। मगर एक साल से भी अधिक समय के बाद भारत की वह उम्मीद धराशायी हो चुकी है। बीजिंग का दावा है कि नई दिल्ली का अगंभीर रुख इसकी वजह है।
जहां तक भारत का संबंध है, तो यह दुखद है कि गलवान हिंसा और वास्तविक नियंत्रण रेखा की स्थिति के बारे में हमारा सामरिक संचार सामान्य से कमतर रहा है। केंद्र सरकार ने यह कहते हुए राष्ट्रीय संप्रभुता की चुनौती को परे धकेलने का फैसला किया कि कोई भी भारतीय क्षेत्र गंवाया नहीं गया है। इसी तरह, होशियारपुर की एक चुनावी रैली में भारतीय रक्षा मंत्री ने भी दावा किया कि गलवान में चीन को एक इंच जमीन पर भी कब्जा नहीं करने दिया गया गया है। इन सब बयानों ने पीएलए के सीमा उल्लंघन को लेकर आम लोगों को भ्रमित कर दिया है। जबकि, लद्दाख में सेवा देने वाले वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों का कहना है कि चीन अब भौतिक रूप से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर 1959 के अपने दावे के करीब पहुंच गया है।
वास्तविक नियंत्रण रेखा की मौजूदा स्थिति और गलवान के बाद भारत की सामरिक स्थिति व गश्त संबंधी मुश्किलों के बारे में पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन बताते हैं, 'मैं यह नहीं कह रहा कि भारत ने पूर्वी लद्दाख के कुछ क्षेत्रों में गश्त करने के अपने अधिकार गंवा दिए हैं, लेकिन इससे इनकार नहीं है कि भारतीय सैनिकों को उन इलाकों में गश्त करने से चीनी सैनिक रोक रहे हैं, जहां वे गलवान घटना से पूर्व नियमित रूप से गश्ती किया करते थे। देपसांग मैदान, हॉट ्प्रिरंग्स और गोगरा क्षेत्रों में यह स्थिति बनी हुई है। निस्संदेह, हम यह कह सकते हैं कि भारत ने किसी भी क्षेत्र पर अपना दावा छोड़ा नहीं है, लेकिन जमीनी स्तर पर स्थिति यही है कि कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां अब हमारी भौतिक पहुंच नहीं है।'
साफ है, विवादित क्षेत्र भारत-चीन तनावपूर्ण संबंध का एक महत्वपूर्ण पहलू है। यूक्रेन के लिए पैदा हुई सामरिक चुनौती जैसी स्थिति से निपटने के लिए
भारत यदि खुद को तैयार करना चाहता है, तो उसे
इससे सामरिक संचार और राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर सही सबक सीखना होगा।


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