सम्पादकीय

2022 के नतीजों में 2024 के लिए सबक; राहुल और प्रियंका को कांग्रेस को बचाने के लिए जल्द ही फैसला लेना होगा

Gulabi Jagat
16 March 2022 8:22 AM GMT
2022 के नतीजों में 2024 के लिए सबक; राहुल और प्रियंका को कांग्रेस को बचाने के लिए जल्द ही फैसला लेना होगा
x
पांच में से चार राज्यों के चुनावों में भाजपा के क्लीन स्वीप ने उसे 2024 के आम चुनावों के लिए एक मजबूत स्थिति में ला दिया है
मिन्हाज मर्चेंट का कॉलम:
पांच में से चार राज्यों के चुनावों में भाजपा के क्लीन स्वीप ने उसे 2024 के आम चुनावों के लिए एक मजबूत स्थिति में ला दिया है। उत्तराखण्ड, गोवा और मणिपुर में मिली जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आम मतदाताओं से बेहतरीन कनेक्ट का नतीजा थी, लेकिन उत्तरप्रदेश की जीत मोदी के करिश्मे के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता का मिला-जुला परिणाम है।
वास्तव में योगी 2022 के उत्तरप्रदेश चुनावों के सबसे बड़े लाभार्थी बनकर उभर सकते हैं। उन्हें इस जीत से सबसे दीर्घकालीन राजनीतिक लाभ होगा। योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति में खासा सुधार किया है। उन्होंने विकास और लोककल्याणकारी योजनाओं पर भी ध्यान लगाया है। एक ध्रुवीकृत राजनीतिक माहौल में योगी ने हिंदुत्व की बात जरूर खुलकर की, लेकिन अल्पसंख्यकों के तबकों को भी चतुराईपूर्वक जोड़े रखा। उनकी लोककल्याणकारी योजनाओं का फायदा महिलाओं को मिला और उन्होंने बड़ी संख्या में उन्हें वोट दिए।
इनमें मुस्लिम महिलाओं का एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण तबका भी शुमार था, जो तीन तलाक और कानून-व्यवस्था की बेहतर स्थिति से खुश था। वे भाजपा की साइलेंट-वोटर बनी हैं। इसी का नतीजा था कि अनेक विधानसभा क्षेत्रों में, जहां कांटे का मुकाबला था, वहां अंतत: नतीजे भाजपा के पक्ष में आए हैं। मायावती ने भले ही सपा के लिए बसपा वोटों का 'बलिदान' दिया हो, उससे बात बनी नहीं। अखिलेश यादव की पार्टी ने अपना वोट-शेयर जरूर बढ़ाया। 2017 में जहां उन्हें 21.82 प्रतिशत वोट मिले थे, वहीं 2022 में यह 32.06 प्रतिशत हो गए।
दूसरी तरफ बसपा का वोट शेयर 22.23 प्रतिशत से घटकर 12.88 हो गया। इसके परिणामस्वरूप सपा अपनी सीटों की संख्या 2017 में जीती गई 47 सीटों से बढ़ाकर 2022 में 111 सीटों तक ले गई और गठबंधन सहयोगियों के साथ मिलकर उनके खाते में कुल 125 सीटें आईं, लेकिन यह मोदी-योगी वियजरथ को रोकने के लिए नाकाफी था। दूसरी तरफ कांग्रेस का वोट शेयर 2017 में 6.25 प्रतिशत से घटकर 2022 में 2.33 प्रतिशत पर पहुंच गया।
इसकी तुलना भाजपा के वोट शेयर से करें, जो 39.67 से बढ़कर 2022 में 41.29 में हो गया है। लेकिन चूंकि इस बार के चुनाव बहुकोणीय नहीं थे, इसलिए उसे 2017 जितनी सीटें नहीं मिलीं। लेकिन 2022 के चुनावों ने अनेक मिथकों को ध्वस्त कर दिया है। इनमें से एक पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन के राजनीतिक प्रभाव का भी था। वास्तव में संयुक्त समाज मोर्चा और उसके नेता बलबीर सिंह राजेवाल तो समरला में बुरी तरह हारे। वे छठे क्रम पर आए।
इसने यूपी की राजनीति में किसान नेता राकेश टिकैत- जिन्हें किसान आंदोलन के दौरान कांग्रेस का समर्थन मिला था- के राजनीतिक प्रभाव की कलई खोल दी। इन चुनावों में कांग्रेस के लिए जो संदेश निहित है, वह तो बहुत हताश कर देने वाला है। कांग्रेस अभी तक आईसीयू (इलेक्टोरल इंटेंसिव यूनिट) में तो नहीं पहुंची है, लेकिन अगर वो इसी तरह से मल्टी-ऑर्गन फेल्योर से जूझती रही तो जल्द ही पहुंच जाएगी। उत्तराखंड और गोवा में तो उसका भाजपा से सीधा मुकाबला था।
वहां पर हार उसके लिए 2024 के चुनावों के लिए खतरे की घंटी है। राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा को कांग्रेस को बचाने के लिए जल्द ही एक फैसला लेना होगा और वह है- दूसरों के लिए जगह खाली कर देना। ये अलग बात है कि कांग्रेस में पैठ बना चुकी वंशवाद की राजनीति के लिए यह अनुकूल नहीं। इंदिरा गांधी ने तो 1969 में कांग्रेस का विभाजन करके उसे एक परिवार द्वारा संचालित उद्यम बना ही डाला था।
अगर कांग्रेस अपने में बदलाव नहीं लाएगी, तो वह इसी तरह चुनाव-पर-चुनाव हारती चली जाएगी। 2022 के चुनावों से एक और बड़ी तस्वीर उभरकर सामने आई है और वह है आम आदमी पार्टी की परिपक्वता। पंजाब में उसने जिस तरह से सूपड़ा साफ किया, उसने इससे पूर्व दिल्ली में हुई उसकी चुनावी जीतों की याद ताजा की। 'आप' गोवा में भी दो सीटें जीतने में कामयाब रही है। क्या इसके बाद अरविंद केजरीवाल स्वयं को मोदी को चुनौती देने वाले नेता के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं? शायद नहीं।
क्योंकि एक अन्य मजबूत क्षेत्रीय नेत्री ममता बनर्जी उनकी राह में खड़ी हैं। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की शानदार जीत की याद अभी बहुतों को ताजा है। वह पंजाब से कहीं बड़ा राज्य है और 13 संसदीय सीटों वाले पंजाब की तुलना में उसके पास 42 संसदीय सीटें हैं। गोवा में फ्लॉप शो के बावजूद 2024 के चुनावों में तृणमूल कांग्रेस सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में उभरकर सामने आ सकती है।
पश्चिम बंगाल के दम पर वह कांग्रेस के बराबर या उससे थोड़ी कम सीटें ला सकती है, क्योंकि कांग्रेस केरल, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, राजस्थान जैसे राज्यों में अपनी चुनावी विरासत के चलते कुछ सीटें जीतने में सफल रह सकती है। पंजाब में जैसे नवजोत सिंह सिद्धू और चरनजीत सिंह चन्नी के बीच ठन गई थी, उससे यही साबित हुआ कि चुनावों में आपस की लड़ाई में दूसरे का फायदा होता है।
उत्तरप्रदेश के चुनाव परिणामों ने दिखलाया है कि भाजपा से आमने-सामने की लड़ाई में सपा जैसा विपक्षी दल अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ मिलकर अपनी सीटों की संख्या पिछले चुनाव की तुलना में तीन गुना कर सकता है। लेकिन उसके लिए मायावती जैसे नेताओं को पीछे हटना होगा। इसकी गुंजाइश कम ही है कि 2024 में कोई विपक्षी नेता आत्म-बलिदान देना चाहेगा। और यही मोदी का ट्रम्प-कार्ड साबित हो सकता है।
मोदी के सामने कौन?
अगर विपक्ष की ओर से 2024 में प्रधानमंत्री पद के तीन दावेदार होंगे- ममता बनर्जी, राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल- तो मोदी इनसे ऊपर रहेंगे। केसीआर, उद्धव ठाकरे, एमके स्टालिन ने स्पष्ट किया है कि कांग्रेस के बिना विपक्ष कोई साझा गठबंधन नहीं बना सकता। लेकिन क्या केजरीवाल और राहुल मिलकर काम कर सकते हैं? या क्या ममता और राहुल साझा मोर्चा बना सकेंगे?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
Next Story