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Written by जनसत्ता; कुछ दिनों पहले विभिन्न शहरों में बुलडोजर से मकान ढहाने को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाई गई थी कि इस तरह लोगों के घर तोड़ने पर रोक लगाई जाए। इस पर अदालत ने कहा कि वह ऐसा कोई आदेश नहीं दे सकती, जिससे स्थानीय निकायों के अधिकारों में कटौती होती हो। यानी स्पष्ट है कि जहां भी अवैध निर्माण होगा, उसे तोड़ने का अधिकार सरकारों को है। हालांकि याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि पिछले दिनों हुई तोड़-फोड़ एक खास समुदाय को लक्ष्य बना कर की गई।
उन्होंने दिल्ली के फार्म हाउसों का उदाहरण देते हुए बताया कि उनमें से बहुत सारे अवैध हैं, पर उन पर कभी बुलडोजर नहीं चलता। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा था, जिस पर उसने सफाई देते हुए कहा है कि कुछ लोग इस तरह की दलीलों से अवैध निर्माण को बचाने का प्रयास कर रहे हैं, जितने भी मकान ढहाए गए, उनमें कानूनी तरीका अपनाया गया। हालांकि इस संदर्भ में अदालत ने मध्यप्रदेश और गुजरात सरकारों को भी नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा है और इस पर सुनवाई की अगली तारीख दे दी है।
शहरों में सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा कर भवन निर्माण करना कोई छिपी बात नहीं है। इसके अलावा बहुत सारे लोग अपने मकान की तय सीमा से बाहर जाकर पार्क, पैदल चलने या सड़क आदि के लिए छोड़ी गई जमीन पर अतिक्रमण कर मकान का आकार बढ़ाते भी देखे जाते हैं। देश के सारे शहर अवैध कब्जा कर बनाए भवनों, कच्ची बस्तियों की वजह से सुविधाओं का दबाव झेल रहे हैं।
इस पर पहले भी अदालत ने स्थानीय निकायों को फटकार लगाई थी। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर अनेक अवैध बस्तियां तोड़ी जा चुकी हैं। ऐसे में वह स्थानीय निकायों के अधिकार में कटौती का आदेश कैसे दे सकता था। यह ठीक है कि पिछले दिनों कई ऐसे मकानों पर बुलडोजर चले, जो किसी फसाद के फौरन बाद चले थे, इसलिए उनके पीछे राजनीतिक रंग तलाशे जा रहे हैं, मगर केवल उनको नजीर मान कर किसी व्यापक समस्या के हल में बाधा उत्पन्न करना न्यायसंगत नहीं माना जा सकता। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अगर अदालत सीधे-सीधे बुलडोजर चलाने पर रोक लगा देगी, तो अवैध निर्माण और कब्जा करने वाले माफिया की पौ बारह हो जाएगी।
मगर इस बात की भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अगर प्रशासन या सरकार किसी गलत भावना से किसी का घर गिराती है, तो उसे कठघरे में न खड़ा किया जाए। अवैध निर्माण ढहाने के नियम-कायदे हैं। उसके अनुसार अदालती आदेश पर नोटिस देने के बाद ही कोई अवैध निर्माण गिराना होता है। यह भी कि जितने हिस्से में अवैध निर्माण हुआ या कब्जा किया गया है, उसी को तोड़ना होता है, न कि पूरे मकान को।
प्रयागराज में एक व्यक्ति के पूरे घर को जिस तरह जमींदोज कर दिया गया, उस पर स्वाभाविक ही तीखी प्रतिक्रिया उभरी और उसे लेकर उत्तर प्रदेश सरकार की मंशा पर सवाल खड़े हुए। इसलिए अभी सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारों से स्पष्टीकरण मांगा है और वह क्या अंतिम फैसला सुनाता है, इसका इंतजार करना चाहिए। अभी अदालत ने एक सामान्य कार्रवाई से जुड़े नियमों की रक्षा करते हुए फैसला दिया है, सरकारों ने जहां भी गलत तरीके से, नियम-कायदों का उल्लंघन कर मकान ढहाए हैं, वह एक अलग विषय है।