सम्पादकीय

छोड़ो कल की बातें

Subhi
4 Jun 2022 3:41 AM GMT
छोड़ो कल की बातें
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने आखिर वह बात कही जिसकी जरूरत पिछले कुछ समय से बहुत बढ़ गई थी। उन्होंने नागपुर में संघ पदाधिकारियों के प्रशिक्षण शिविर को संबोधित करते हुए कहा कि हर मस्जिद में शिवलिंग ढूंढने की कोई जरूरत नहीं है।

नवभारत टाइम्स; राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने आखिर वह बात कही जिसकी जरूरत पिछले कुछ समय से बहुत बढ़ गई थी। उन्होंने नागपुर में संघ पदाधिकारियों के प्रशिक्षण शिविर को संबोधित करते हुए कहा कि हर मस्जिद में शिवलिंग ढूंढने की कोई जरूरत नहीं है। वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद शुरू होने के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों की विभिन्न मस्जिदों पर ही नहीं ताजमहल और कुतुबमीनार जैसे ऐतिहासिक स्मारकों को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। इनसे न केवल स्थानीय स्तर पर माहौल बेवजह तनावपूर्ण हुआ बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी यह संदेश जा रहा था कि देश में सबकुछ ठीक नहीं है। इस संदर्भ में आरएसएस प्रमुख ने युक्तिसंगत हस्तक्षेप करते हुए बिल्कुल ठीक कहा कि ऐसे मंदिरों और मस्जिदों का अपना एक इतिहास रहा है, जिसे हम बदल नहीं सकते। उस इतिहास के बनने में आज के लोगों की कोई भूमिका नहीं है। न हिंदुओं की और न मुस्लिमों की। फिर यह बात भी है कि श्रद्धास्थल तो श्रद्धास्थल ही होते हैं, चाहे वे किसी भी धर्म के हों। ऐसे में कोई कारण नहीं कि इन्हें लेकर आज हायतौबा मचाई जाए। संघ प्रमुख ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अयोध्या का आंदोलन एक अपवाद था जिसमें संघ अपनी प्रकृति के विरुद्ध शामिल हुआ था। अब वह ऐसे किसी आंदोलन का हिस्सा नहीं बनने वाला।

हालांकि वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद विवाद को हिंदू समाज की श्रद्धा से जोड़ते हुए उन्होंने जाने-अनजाने उसे परोक्ष मान्यता दे दी, लेकिन उस मामले में भी साफ-साफ कहा कि अदालत का जो भी फैसला हो, वह सबको स्वीकार्य होना चाहिए। बहरहाल, ज्ञानवापी विवाद पर भी संघ प्रमुख की कही सारी बातें लागू होती हैं। इतिहास में जो कुछ हुआ, उसके लिए हमारे वर्तमान का कोई भी हिस्सा जिम्मेदार नहीं है। दूसरी बात यह कि अतीत की किसी गलती को वर्तमान में दोहरा कर हम उस गलती को न तो मिटा सकते हैं और न ही ठीक कर सकते हैं। बस एक और नई गलती करते हैं। और अब तो देश में 1991 में बना पूजास्थल कानून भी लागू है, जो कहता है कि 15 अगस्त 1947 के समय देश भर के पूजास्थलों की जैसी स्थिति थी, वह किसी भी रूप में बदली नहीं जा सकती। ध्यान रहे, उस समय सीमा से पहले न तो यह देश आधुनिक अर्थों में एक देश था और न ही इसका कोई एक संविधान था। ऐसे में उससे पहले की घटनाओं को लेकर अपनी भावनाओं को उद्वेलित होने देना और उस आधार पर पूजा स्थल कानून में छिद्र तलाशना या उसे चुनौती देना कतई उचित नहीं कहा जा सकता। सबकी बेहतरी इसी में है कि इस तरह के प्रयासों के जरिए देश की ऊर्जा बर्बाद होने देने के बजाय इन पर जल्द से जल्द विवेक का अंकुश लगाने का इंतजाम किया जाए।


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