सम्पादकीय

कोई कसर न छोड़ें: कोरोना से जंग जीतने के लिए जरूरी है कम समय में ज्यादा से ज्यादा टीके उपलब्ध हों

Triveni
10 May 2021 1:25 AM GMT
कोई कसर न छोड़ें: कोरोना से जंग जीतने के लिए जरूरी है कम समय में ज्यादा से ज्यादा टीके उपलब्ध हों
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कोरोना से उपजे कठिन हालात के बीच रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी डीआरडीओ की ओर से तैयार की गई 2-डीजी नामक दवा उम्मीद की एक किरण है।

भूपेंद्र सिंह| कोरोना से उपजे कठिन हालात के बीच रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी डीआरडीओ की ओर से तैयार की गई 2-डीजी नामक दवा उम्मीद की एक किरण है। डॉ. रेड्डीज लेबोरेटरीज के सहयोग से विकसित इस दवा को कारगर मानते हुए ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ने इसके उपयोग की मंजूरी भी दे दी है। अब आवश्यकता इसकी है कि इस दवा का जल्द से जल्द बड़े पैमाने पर उत्पादन हो। चूंकि यह एक जेनरिक दवा है, इसलिए इसके व्यापक उत्पादन में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। उत्पादन के साथ यह भी देखना होगा कि वह देश भर में यथाशीघ्र उपलब्ध हो। चूंकि आसानी से उपयोग में लाई जा सकने वाली इस दवा का परीक्षण इसी मार्च तक हुआ है, इसलिए यह उम्मीद की जाती है कि यह कोरोना वायरस के बदले हुए रूपों के शिकार मरीजों पर भी असर करेगी। जो भी हो, इसे सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। इसी तरह की आवश्यकता इसकी भी है कि कोविड रोधी जो टीके इस्तेमाल किए जा रहे हैं, वे कोरोना वायरस के बदले हुए रूपों पर असरकारी हैं या नहीं? यह पता लगाने में देर नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि टीके की दोनों खुराक लेने के बाद भी कुछ लोग कोरोना का शिकार बने हैं।

वास्तव में जिस तरह सरकारों ने अस्पताल बेड से लेकर आक्सीजन और कोरोना रोधी दवाएं उपलब्ध कराने में अपनी ताकत झोंक दी है, उसी तरह इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च को इस बात को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए कि सरकारी और निजी क्षेत्र की संस्थाएं कोरोना रोधी दवा विकसित करने के साथ कोरोना वायरस के बदले हुए रूपों की प्रकृति का अध्ययन करने में युद्धस्तर पर जुट जाएं। इस काम में कोई कसर बाकी नहीं रहनी चाहिए, क्योंकि कोरोना से जंग एक तरह से वक्त के खिलाफ लड़ाई है। यह कठिन लड़ाई हर हाल में जीतने के लिए यह भी जरूरी है कि कम समय में ज्यादा से ज्यादा टीके उपलब्ध हों। विश्व व्यापार संगठन की ओर से टीकों के उत्पादन के मामले में बौद्धिक संपदा अधिकार कानून में रियायत देने की पहल अपनी जगह है। भारत को अपने स्तर पर यह देखना होगा कि टीका बनाने वाली कंपनियों को इसके लिए कैसे राजी किया जाए कि वे अन्य कंपनियों को अपने टीकों का उत्पादन करने की अनुमति दें? कम से कम स्वदेशी टीके कोवैक्सीन विकसित करने वाली भारत बायोटेक से संपर्क कर तो यह संभावना टटोली ही जानी चाहिए कि क्या उसके टीकों का उत्पादन अन्य कंपनियां कर सकती हैं? इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि रूसी टीके स्पुतनिक का भारत में उत्पादन होने जा रहा है, क्योंकि बात तो तब बनेगी जब वे जल्द उपलब्ध हो सकें।


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