सम्पादकीय

बच्चों से सीखें जीवन प्रबंधन

Rani Sahu
29 July 2022 7:03 PM GMT
बच्चों से सीखें जीवन प्रबंधन
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सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीश यूयू ललित ने हाल ही में टिप्पणी की, अगर बच्चे सुबह 7.00 बजे स्कूल जा सकते हैं तो जज और वकील अपना कार्य 9.00 बजे क्यों नहीं शुरू कर सकते?

By: अदित कंसल, लेखक नालागढ़ से हैं

सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीश यूयू ललित ने हाल ही में टिप्पणी की, अगर बच्चे सुबह 7.00 बजे स्कूल जा सकते हैं तो जज और वकील अपना कार्य 9.00 बजे क्यों नहीं शुरू कर सकते? गौरतलब है कि जस्टिस ललित 26 अगस्त को जस्टिस एनवी रमणा की सेवानिवृत्ति के पश्चात प्रधान न्यायाधीश होंगे। बच्चों की दिनचर्या से प्रभावित सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने एक घंटा पूर्व कार्य शुरू कर दिया। नि:संदेह यह छोटे बच्चों द्वारा बड़ा सामाजिक परिवर्तन है। बच्चों से हमें मासूमियत, परिश्रम, लगन, समर्पण, सदाचार, प्रेम, भाईचारा, उत्साह, उत्सुकता, जिज्ञासा शक्ति, संकल्प शक्ति, कर्मठता, एकाग्रता, सहनशीलता, नवाचार इत्यादि कई नैतिक गुण सीखने को मिलते हैं। बच्चे स्पष्टवादी, सकारात्मक व निडर होते हैं। बच्चे अपने से भारी स्कूल बैग मुस्कुराते हुए स्वयं उठाते हैं, जबकि आपको अफसर, राजनेता मिल जाएंगे जिनकी डायरी भी चपरासी उठा कर चलते हैं। माननीयों का तो कार का दरवाजा भी इर्द-गिर्द वाले लोग ही खोलते हैं
बच्चे हमें अपना कार्य स्वयं करने हेतु तथा आत्मनिर्भर बनने हेतु प्रेरित करते हैं। यद्यपि चंचलता बच्चों का प्रमुख चरित्र है, परंतु उनका दिल वैमनस्य रहित व साफ होता है। वे स्थायी शत्रुता नहीं पालते। जितनी जल्दी कुट्टी करते हैं, उससे जल्दी अब्बा कर लेते हैं। मैंने अक्सर देखा है कि पड़ोस में बच्चों का आपस में झगड़ा होने पर उनके मां-बाप भी झगड़ा कर लेते हैं। कुछ दिन बाद बच्चे फिर भी एक हो जाते हैं। साथ खेलते हैं, बातें करते हैं, परंतु बड़ों की बोलचाल बंद ही रहती है। बच्चों से हमें सेवाभाव की भावना सीखनी चाहिए। विद्यालय में बच्चे स्वच्छता कार्यक्रमों, रैलियों, पर्यावरण गतिविधियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, निर्माण कार्य, श्रमदान, आवाभगत, विद्यालय व कक्षा कक्ष की सुसज्जता, कैंपस सौंदर्यीकरण इत्यादि में पूरी तन्मयता से अपना श्रेष्ठतम देते हैं। वे अपने स्कूल अध्यापकों-सहपाठियों से निस्वार्थ प्रेम करते हैं। खेलों में भी विद्यार्थी अपनी पूरी जान लगा देते हैं।
लक्ष्य प्राप्ति हेतु हर कसौटी पर खरे उतरते हैं। टीम भावना भी विद्यार्थियों से ही सीखी जा सकती है। बच्चे अपने आपको वातावरण के अनुकूल बना लेते हैं। अगर परिश्रम करना है तो विद्यार्थियों से ही सीखना होगा। मिलेनियल करियर्स 2020 विजन के मुताबिक भारत के युवा हर हफ्ते दुनिया भर में सबसे अधिक 52 घंटे तक काम करते हैं। भारत मां के बच्चे विश्व के अन्य देशों के बच्चों की अपेक्षा अधिक सक्रिय हैं। 'दि लैंसेट चाइल्ड एंड एडोलिसेंट हेल्थ' पत्रिका में प्रकाशित डब्ल्यूएचओ के अनुसंधानकर्ताओं के अध्ययन में स्पष्ट किया गया है कि किशोरों की पर्याप्त सक्रियता के मामले में अमेरिका, बांग्लादेश व भारत का प्रदर्शन बेहतर है। किशोरियों के मामले में भी भारत का प्रदर्शन सबसे अच्छा देखा गया है। बच्चों से हमें एकाग्रता एवं संकल्पवान बनना भी सीखना चाहिए। वर्ष 2017 में गुजरात बोर्ड में 12वीं कक्षा में 99.9 परसेंटाइल प्राप्त कर टॉप करने वाले विद्यार्थी वर्शील शाह ने वैराग्य की राह अपना ली। वर्शील ने जैन संन्यासी के रूप में दीक्षा ले ली। वर्ष 2018 में भारत के 11वीं कक्षा के छात्र सौरभ चौधरी 16 वर्ष के निशाने ने वल्र्ड चैंपियन को चित कर दिया तथा 10 मीटर एयर पिस्टल में पीला तमगा जीतने के साथ ही सौरभ एशियाई खेलों के इतिहास में स्वर्ण जीतने वाले भारत के पांचवें निशानेबाज बने। अपने जीवन काल में 32 वर्षों से अध्यापन कार्य करते हुए मैंने बच्चों से बहुत कुछ सीखा। बच्चों पर अधिक नियंत्रण भी नकारात्मकता पैदा करता है।
'दि जर्नल डेवलपमेंट साइकोलॉजी' पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि बच्चों को उनके बारे में लिखने और पढऩे के लिए स्वतंत्रता और समय दोनों देने चाहिए। अमेरिका में 'मिनेसोटा यूनिवर्सिटी' की 'निकोल बी पेरी' ने कहा हमारे शोध से ज्ञात होता है कि बच्चों को अधिक नियंत्रण में रखने पर वह विकास करने की चुनौतीपूर्ण मांगों से निपटने में सक्षम नहीं हो पाते हैं। हम किसी भी हालत में महान वैज्ञानिक एवं पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम की इस बात को झुठला नहीं सकते कि देश का सबसे अच्छा दिमाग क्लास रूम की आखिरी बैंचों पर भी मिल सकता है। आवश्यक है कि हम बच्चों को खुला आकाश दें। उन्हें अपनी प्रतिभा और क्षमता प्रदर्शन करने का सुअवसर प्रदान करें। आओ! हम सब एक सशक्त, सुदृढ़, संस्कारयुक्त व भ्रष्टाचारमुक्त भारत निर्माण के लिए बच्चों को अपना आदर्श बनाएं। उनसे जीवन प्रबंधन सीखें। अंत में प्रख्यात शायर मुनव्वर राणा के अश'आर पर गौर करें : 'मेरी ख्वाहिश है कि फिर से मैं फरिश्ता हो जाऊं। मां से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं।' बच्चों की मासूमियत हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है। वास्तव में बच्चे किसी से वैर भाव नहीं रखते हैं। उनकी अगर किसी से लड़ाई हो भी जाती है, तो भी वे इसे जल्दी ही भूल जाते हैं। बच्चे साफ मन के होते हैं तथा नफरत-विहीन समाज के निर्माण के लिए ऐसा मन जरूरी है।
दित कंसल
लेखक नालागढ़ से हैं


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