सम्पादकीय

दक्षिणी शहरों की स्वच्छता से सीखें

Deepa Sahu
28 March 2022 6:41 PM
दक्षिणी शहरों की स्वच्छता से सीखें
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इस बात से शायद ही किसी को आश्चर्य हुआ होगा,

इस बात से शायद ही किसी को आश्चर्य हुआ होगा कि साल 2021 के लिए जारी विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट में भारत के सबसे कम प्रदूषित 35 शहरों में से 30 शहर दक्षिण के चार राज्यों- कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश के हैं। हालांकि, जब उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और हरियाणा (सभी उत्तरी राज्य) की नजर से इस रिपोर्ट को देखते हैं, तो यह एक कटु सत्य लगता है। देश की राजधानी दिल्ली ने तो प्रदूषण में सभी को पीछे छोड़ दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, जहां कोच्चि, चेन्नई, अमरावती और बेंगलुरु जैसे दक्षिणी शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर 40 से 70 के बीच है, वहीं लखनऊ, पटना, जयपुर और रोहतक में यह 100 से 170 के बीच है। दिल्ली का औसत स्तर तो 230 है।

दक्षिण के राज्यों को भौगोलिक रूप से भी एक बड़ा लाभ हासिल है। दरअसल, उनकी सीमाएं कम से कम एक तरफ से समुद्र से लगती हैं। ऐसे में, उप-महाद्वीप के आसपास के महासागरों से आने वाली हवाएं एक झटके में प्रदूषक तत्वों को उड़ा ले जाती हैं। इनकी तुलना में जमीनी सीमाओं वाले उत्तरी राज्यों को यह सुविधा हासिल नहीं है। धूल भरी हवा इन क्षेत्रों में फंसी रहती है और उसी में घूमती रहती है, जिससे अधिक से अधिक प्रदूषण फैलता है। गरमियों के महीनों में तो ऐसा लगता है कि पूरा उत्तर भारत ही धूल का कटोरा बन गया है। इन महीनों में जहां धूल भरी आंधी दृश्यता कम कर देती हैं,तो वहीं सर्दियों में ठंडी हवा नमी व प्रदूषक तत्वों के साथ मिलकर ऐसा घना कोहरा बनाती है कि दृश्यता करीब-करीब शून्य हो जाती है।
उत्तर भारत में थार मरूस्थल से आने वाली हवाएं उत्तर प्रदेश के शहरों को अपनी गिरफ्त में ले लेती हैं। इसके अलावा, फैक्टरियों और गाड़ियों से होने वाले उत्सर्जन भी समस्या बढ़ाते हैं। फिर, उत्तर भारत के कई शहरों में बड़े पैमाने पर निर्माण संबंधी गतिविधियां भी लगातार चलती रहती हैं, जिसके कारण यहां की आबोहवा और बिगड़ती जा रही है। पर सिर्फ प्राकृतिक लाभ की वजह से दक्षिणी राज्य कम प्रदूषित नहीं हैं। पिछले अनेक वर्षों में यहां कई ऐसे उपाय किए गए हैं, जिनसे इस मामले में तरक्की हुई है।
इनमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि दक्षिण के राज्य देश के उत्तरी राज्यों की तुलना में बेहतर सामाजिक संकेतकों को जी रहे हैं। नीति आयोग के मुताबिक, बड़े राज्यों में किए गए विश्व बैंक के अध्ययन बताते हैं कि केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना समग्र प्रदर्शन के मामले में अन्य सभी राज्यों पर बीस साबित हुए हैं। इस अध्ययन में स्वास्थ्य सेवाओं, शासन और सूचना आदि को भी शामिल किया गया था।
दक्षिण की तुलना में उत्तर भारत में कहीं अधिक युवा है, क्योंकि दक्षिणी राज्य की आबादी तेजी से बुजुर्ग हो रही है। उत्तर भारत को अपने इस जनसांख्यिकीय लाभांश को निश्चय रूप से राष्ट्र के समग्र और तेज विकास के लिए उपयोगी बनाने की जरूरत है। मगर उच्च जनसंख्या वृद्धि उत्तरी राज्यों पर दबाव बढ़ा रही है। मसलन, अगले 15 वर्षों में बिहार की आबादी महाराष्ट्र से अधिक हो सकती है। राजस्थान भी तमिलनाडु से अधिक आबादी वाला राज्य है। जाहिर है, उत्तर में जहां जनसंख्या विस्फोट की स्थिति है, वहीं दक्षिण में जनसंख्या वृद्धि दर गिर रही है।
इसका निस्संदेह वायु प्रदूषण के स्तर पर प्रभाव पड़ता है। 'ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज' की हालिया रिपोर्ट बताती है कि साल 2013 में दुनिया भर में 55 लाख अकाल मौत का कारण वायु प्रदूषण था। यह अब सभी जानते हैं कि वायु प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है, खासतौर से श्वसन तंत्र और हृदय पर। इसके अलावा, यह फसल की पैदावार और जैव विविधता व पारिस्थितिकी तंत्र को भी काफी गहरे तौर पर प्रभावित करता है।
वायु प्रदूषण का एक अन्य कारण बढ़ता शहरीकरण है। तमिलनाडु और केरल भारत के सबसे अधिक शहरीकृत सूबों में एक हैं। राज्य की जनसंख्या लगभग ग्रामीण और शहरी के बीच बंटी हुई है। यहां तक कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं और नागरिक प्रशासन देखे जा सकते हैं। कमोबेश यही कहानी केरल और कर्नाटक की है। इसके उलट, उत्तर प्रदेश का 22 फीसदी हिस्सा शहरी है। देखा जाए, तो ग्रामीण आबादी में बसावट के लिहाज से उत्तर प्रदेश देश में सबसे ऊपर है।
सर्दियों के मौसम में उत्तर भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति और खराब हो जाती है। इस समय दक्षिणी राज्यों में जहां प्रदूषण का औसत स्तर अच्छे से मध्यम के बीच होता है, वहीं उत्तर में यह कभी सामान्य नहीं हो पाता। यहां तक कि सबसे अच्छी स्थिति में भी दिल्ली जैसे शहरों में वायु प्रदूषण का सूचकांक स्वीकार्य स्तर से तीन गुना अधिक रहता है। दिवाली के समय तो पटाखों के कारण पीएम 2.5 का स्तर 1,000 के पार चला जाता है। जबकि तमिलनाडु जैसे राज्यों में यह कोई भी अनुभव कर सकता है कि किस तरह से लोग पर्व-त्योहारों में अपने गांव की ओर जाते हैं, और अपनी जड़ों की ओर लौटने के कारण प्रकृति एवं वहां की आबोहवा की सुरक्षा के मामले में तत्पर होते हैं।
दिल्ली में वायु प्रदूषण तो पंजाब-हरियाणा में किसानों द्वारा फसल कटाई के बाद पराली जलाने के कारण भी होता है। वायुमंडल में फंसा धुआं पूर्व की ओर राजधानी व अन्य शहरों की तरफ बढ़ता है। इससे वहां धुंध और कोहरे की काली चादर पसर जाती है। यहां इस बाबत कई ऐसे अध्ययन हुए हैं, जो बताते हैं कि वायु प्रदूषण के कारण जीवन प्रत्याशा कम हो जाती है।
साफ है, अस्वीकार्य स्तर पर वायु प्रदूषण के कारण साफ आबोहवा को लेकर आम लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने की दरकार है। औद्योगिक इकाइयों को घनी बस्तियों से ज्यादा से ज्यादा दूर करना चाहिए, निर्माण गतिविधियों के दौरान प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए और शहरी इलाकों में हरियाली बढ़ाई जानी चाहिए। इन सबके अलावा, हरित परिवहन को बढ़ावा दिए जाने की भी जरूरत है। अगर दक्षिण के कुछ सबक हैं, तो उत्तर उन पर अमल कर सकता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)


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