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दिल्ली में संक्रमितों की संख्या में कमी राहत की बात है। पिछले डेढ़ महीने में दिल्ली को जिस तरह के विकट हालात का सामना करना पड़ा है,
दिल्ली में संक्रमितों की संख्या में कमी राहत की बात है। पिछले डेढ़ महीने में दिल्ली को जिस तरह के विकट हालात का सामना करना पड़ा है, उसने सबको दहला दिया। संक्रमितों और मौतों के रोजाना बढ़ते आंकड़े बता रहे थे कि महामारी से निपटने में केंद्र और दिल्ली सरकार लाचार हैं। दस अप्रैल को दिल्ली में संक्रमण के सात हजार नौ सौ मामले आए थे, जो अगले दस दिन में यानी बीस अप्रैल को अट्ठाईस हजार तीन सौ पनचानवे तक जा पहुंचे।
यह दिल्ली में एक दिन में सबसे ज्यादा संक्रमितों का रिकार्ड था। इसके बाद ही दिल्ली सरकार ने पूर्णबंदी लगाई, ताकि संक्रमण की शृंखला तोड़ी जा सके। अब पंद्रह मई को संक्रमितों का रोजाना का आंकड़ा छह हजार चार सौ तीस दर्ज किया गया। संक्रमण दर 32.82 फीसद से घट कर 11.32 फीसद पर आ गई। हालांकि पहले के मुकाबले जांच में काफी कमी भी आई है। महामारी का जोखिम कम नहीं हुआ है। बस तसल्ली की बात सिर्फ इतनी है कि जिस खतरनाक तेजी से संक्रमण दर बढ़ रही थी, उस तेजी की रफ्तार में कमी आई है। संक्रमितों के ठीक होने की दर लगभग तिरानवे फीसद है। जाहिर है, अगर सावधानी बरती और महामारी से बचाव कोशिशों में कोई कसर नहीं छोड़ी तो जल्द ही इससे छुटकारा मिलने के आसार बनने लगेंगे।
इसमें कोई दो राय नहीं कि अचानक मरीजों की तादाद बढ़ने से दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा लड़खड़ाना ही था। सरकार को इस बात का अंदाजा ही नहीं रहा कि राजधानी इस तरह से भी संक्रमण की चपेट में आ सकती है। हालांकि विशेषज्ञ लंबे समय से चेताते आ रहे हैं कि महामारी की दूसरी, तीसरी लहरें आएंगी और कहीं ज्यादा कहर बरपाएंगी। लेकिन दिल्ली ही नहीं, केंद्र और सभी राज्यों ने इन चेतावनियों की अनदेखी की। इसी का नतीजा था कि दूसरी लहर से निपटने की कहीं कोई तैयारी नहीं हुई। इसकी कीमत बड़ी संख्या में लोगों की जान के रूप में चुकानी पड़ी। पंद्रह दिन तक दिल्ली के ज्यादातर अस्पताल आक्सीजन की कमी से जूझते रहे और मरीज दम तोड़ते रहे।
अस्पतालों में बिस्तरों और दवाइयों तक का अकाल पड़ गया। हालात बदतर होते देख सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट को संज्ञान लेना पड़ा। दिल्ली के अस्पतालों को आक्सीजन उपलब्ध कराने को लेकर केंद्र सरकार का जो रवैया सामने आया, वह भी कम शर्मनाक नहीं था। यह तो बड़ी अदालतों का धन्यवाद कि उनकी सख्ती से दिल्ली को पर्याप्त आक्सीजन तो मिलने लगी!
दिल्ली ने दहला देने वाला जो मंजर देखा है, उससे अब सबक लेने की जरूरत है। दूसरी लहर का संकट बरकरार है। तीसरी या चौथी लहर की आशंका को जरा भी खारिज नहीं किया जा सकता। महामारी विशेषज्ञ बता रहे हैं कि तीसरी लहर बच्चों के लिए ज्यादा घातक होगी। जाहिर है, ऐसे में बच्चों को संक्रमण से बचाने और संक्रमित बच्चों को अस्पतालों में पर्याप्त इलाज मुहैया कराना बड़ी चुनौती होगी। हकीकत तो यह है कि गंभीर संक्रमितों के लिए अस्पतालों में आइसीयू बिस्तरों की समस्या अभी भी दूर नहीं हुई है। ऐसे में दिल्ली सरकार को अब अस्पतालों में आॅक्सीजन संयंत्र लगाने और नए अस्पतालों की तैयारी जैसे काम तेज करने ही होंगे। इसके अलावा ऐसा भी कुछ करना होगा जिससे बाजारों में भीड़ न लगे और कारोबार भी चलते रहें। महामारी से निपटने में सरकारों का कुछ करना या ना करना अपनी जगह है, लेकिन नागरिकों की भूमिका भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि आखिरकार भुगतना तो उन्ही को ही है!
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