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- लीक-लीक गाड़ी चले
'लीक-लीक गाड़ी चले, लीकहिं चले कपूत। लीक छोड़ तीनों चलें, शायर, सिंह, सपूत'-कहावत को सुन कर ही शायद सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ने कविता कही होगी, 'लीक पर वे चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं'। इसीलिए बाईबिल की तर्ज़ पर कहा जाए तो 'धन्य हैं वे जो अंग्रेज़ी के लीक का सहारा लेकर हिंदी की लीक पर न चलने में अखंड विश्वास रखते हैं, ऐसे लोगों को ही सरकारी स्वर्ग में सोने का सिंहासन मिलता है।' फिर सोना चौबीस कैरेट वाला है या नींद वाला, यह पुनः आपके अंग्रेज़ी और हिंदी वाले लीक-लीक पर चलने पर निर्भर करता है। अगर पोस्टिंग कमाई वाली है और आप उससे होने वाली कमाई को मिल-बाँट कर लीक करते हैं अर्थात् मिल-बाँट कर खाते हैं तो ताउम्र सोने के सिंहासन पर बने रहेंगे। नहीं तो आयोडेक्स की पंच लाईन 'आयोडक्स मलिए काम पर चलिए' की तरह सरकारी नौकरी की उम्र बीत जाने तक आवेदन करते रहिए और हिंदी वाले लीक पर चलते रहिए। अब देवधरा में ही देख लीजिए, जिन्हें लीक पर नहीं चलना था वे दसवीं की परीक्षा में बमुश्किल पास होने के बाद भी कांस्टेबल भर्ती की लिखित परीक्षा में मेरिट में रहे। यह तो बुरा हो पेपर लीक होने की बात के लीक होने का।