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पंजाब में लंबे समय से जो रस्साकशी और उथलपुथल चल रही थी, उसी का नतीजा है कि विधानसभा चुनावों से पांच महीना पहले राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की नौबत आ गई
एनबीटी डेस्क पंजाब में लंबे समय से जो रस्साकशी और उथलपुथल चल रही थी, उसी का नतीजा है कि विधानसभा चुनावों से पांच महीना पहले राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की नौबत आ गई। कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफा देने के बाद मुख्यमंत्री बनाए जा रहे चरणजीत सिंह चन्नी से पार्टी को यह उम्मीद जरूर रहेगी कि वह आने वाले चुनावों में उसकी सत्ता में वापसी कराएंगे, लेकिन इस उम्मीद का पूरा होना इतना आसान है? सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिन वजहों से कांग्रेस विधानसभा चुनावों से ठीक पहले इस बवंडर में फंसी, क्या वह उनसे पीछा छुड़ा चुकी है?
निश्चित रूप से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच की अनबन सारी सीमाएं पार कर चुकी थी, लेकिन कैप्टन के इस्तीफे की पूरी जिम्मेदारी सिद्धू पर नहीं डाली जा सकती। कैप्टन की कार्यशैली को लेकर पार्टी में नाराजगी काफी पहले से थी। कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इस असंतोष से अवगत रहा है। उसकी समस्या यह रही कि सब कुछ जानते समझते हुए भी वह समय पर फैसला नहीं कर सका। 79 साल के कैप्टन के भरोसे प्रदेश पार्टी को ज्यादा समय तक नहीं छोड़ा जा सकता था। नए नेतृत्व की जरूरत पार्टी को थी ही।इसके बावजूद कांग्रेस की सोच यह थी कि आने वाले विधानसभा चुनाव कैप्टन के ही नेतृत्व में लड़ा जाए। सिद्धू को प्रदेश पार्टी अध्यक्ष बनाकर यह मान लिया गया कि चुनावों तक दोनों साथ मिलकर काम करेंगे।
तय हुआ कि नेतृत्व परिवर्तन के सवाल पर आखिरी फैसला चुनावों के बाद किया जाएगा। मगर हाईकमान की यह व्यवस्था कितनी अव्यावहारिक थी, यह पिछले दो महीने के घटनाक्रम ने पूरी तरह स्पष्ट कर दिया। अभी चुनावी प्रक्रिया शुरू भी नहीं हुई थी, टिकट बंटवारे का सवाल उठा भी नहीं था लेकिन चाहे कैप्टन हों या विरोधी खेमा- दोनों संगठन पर पूरा कब्जा करने के लिए दूसरे पक्ष पर निर्णायक बढ़त कायम कर लेने में लग गए। यही वजह रही कि आलाकमान के संकेत देने के बावजूद युद्धविराम नहीं हो सका। असतुंष्ट विधायक बार-बार दिल्ली पहुंचते रहे, मुख्यमंत्री बदलने के लिए दबाव बनाते रहे।
आखिरकार शनिवार को विधायक दल की बैठक बुलाई गई, जिसमें अपनी हार निश्चित देख कैप्टन ने इस्तीफा दे दिया। लेकिन अब अहम सवाल यह है कि क्या चन्नी के आने से पार्टी के अंदर अलग-अलग गुटों के बीच की रस्साकशी थम जाएगी या आगे टिकट बंटवारे के समय भी गुल खिलाएगी? दूसरी बात यह कि कैप्टन ने मुख्यमंत्री पद भले छोड़ा हो, उनकी अगली चाल का सस्पेंस बना हुआ है। वह पार्टी में कैसी भूमिका निभाते हैं, कब तक रहते हैं और पार्टी छोड़ते हैं तो कहां जाते हैं, जैसे सवालों पर सबकी नजर बनी रहेगी। केवल कांग्रेस ही नहीं प्रदेश राजनीति के समीकरण भी काफी कुछ इन सवालों के जवाब पर निर्भर करेंगे।
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