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- रहस्य की परतें
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष संत नरेंद्र गिरि की रहस्यमय स्थितियों में हुई मृत्यु से स्वाभाविक ही पूरा संत समाज स्तब्ध है। कमरे में उनका शव फंदे से लटका पाया गया। उनके कमरे से एक पर्चा भी मिला है, जिसमें नरेंद्र गिरि ने अपने एक शिष्य की हरकतों की वजह से लगातार अवसाद में रहने और अंतत: अत्महत्या कर लेने की बात कही है। मगर यह बात किसी के गले नहीं उतर रही कि नरेंद्र गिरि जैसा संत कभी आत्महत्या की बात सोच भी सकता है। उनकी मौत के पीछे गहरी साजिश मानी जा रही है।
सरकार ने इस मामले की उच्च स्तरीय जांच कराने की घोषणा कर दी है। फिलहाल नरेंद्र गिरि के उस शिष्य को गिरफ्तार कर लिया गया है, जिसकी वजह से संत के अवसाद में चले जाने की बात कही जा रही है। उसके साथ दो अन्य लोगों को भी हिरासत में ले लिया गया है। पर नरेंद्र गिरि की मौत को लेकर रहस्य अभी बना हुआ है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद पूरे देश के अखाड़ों का परिसंघ है, जिसका अध्यक्ष किसी प्रतिष्ठित संत को चुना जाता है। नरेंद्र गिरि पिछले छह सालों से परिषद के अध्यक्ष थे और लगातार दूसरी बार सर्वसम्मति से चुने गए थे।
नरेंद्र गिरि का मान-सम्मान न सिर्फ संत समाज में, बल्कि हर धर्म और दल के नेताओं के बीच था। उत्तर प्रदेश में चाहे जिस दल की सरकार रही हो, उसके मुखिया नरेंद्र गिरि का आशीर्वाद जरूर लेने पहुंचते थे। अनेक संत उनसे बहुत कुछ सीखते थे। जाहिर है, वे कोई सामान्य व्यक्ति नहीं थे। लंबी साधना के बाद वे इस जगह तक पहुंचे थे। यों भी माना जाता है कि संतों को मोह-माया, दुनिया के झमेले प्रभावित नहीं कर पाते, वह उन सबसे ऊपर उठ चुका होता है।
यह सवाल स्वाभाविक है कि उन जैसा संत ऐसे गहन अवसाद का शिकार कैसे हो गया कि उसे खुदकुशी का रास्ता अख्तियार करना पड़ा। अगर वे अपने किसी शिष्य के व्यवहार से आहत थे, तो वे उससे छुटकारा क्यों नहीं पा सके। ऐसे अनेक अनुत्तरित प्रश्न हैं, जिनकी परतें जांच के बाद खुलेंगी। पर उनकी आत्महत्या के पीछे जो कारण बताया गया है, उससे कुछ बातों का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। जिस शिष्य का नाम इस मामले में आया है, उससे नरेंद्र गिरी के जमीन-जायदाद संबंधी विवाद प्रकट हैं। इसी को देखते हुए किसी गहरी साजिश का अनुमान लगाया जा रहा है।
मंदिरों, मठों, अखाड़ों के प्रमुखों की हत्या या रहस्यमय मौत के अनेक उदाहरण हैं। संपत्ति और प्रतिष्ठा अर्जित करने के लोभ या उस संत की वजह से पैदा होने वाली किसी बड़ी बाधा से मुक्ति पाने के फेर में कई बार ऐसे संतों की हत्याएं करा दी जाती हैं। इसलिए संत नरेंद्र गिरि की आत्महत्या को कोई भी स्वीकार नहीं कर पा रहा। अगर वे सचमुच गहन अवसाद में चले गए थे, तो उनके आसपास ऐसी कौन-सी स्थितियां पैदा कर दी गई थीं, जिनमें वे लगातार घिरते गए थे। आत्महत्या तत्काल आवेग या आवेश में आकर कोई नहीं करता, उसके पीछे एक लंबी प्रक्रिया होती है। अगर कोई सामान्य व्यक्ति होता, तो ऐसी घटना के पीछे उसकी पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक स्थितियों आदि को वजह माना जा सकता था। आज के प्रतिस्पर्धी और संघर्ष भरे समय में अवसाद के अनेक कारण हैं। पर नरेंद्र गिरि जैसे संत के मन पर दुनियावी जकड़बंदियों का दबाव रहा होगा, यह समझ से परे है।