सम्पादकीय

दुर्घटना से देर भली, संभलें कि घातक ना हो जाए तेज गति

Rani Sahu
17 May 2022 1:14 PM GMT
दुर्घटना से देर भली, संभलें कि घातक ना हो जाए तेज गति
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अत्यधिक बोझ थका देता है. सड़कों पर अनवरत दौड़ते वाहनों नें भी सड़कों को थका दिया है. रात दिन अपने वक्ष पर असंख्य वाहनो को झेलती ये सड़कें भी कभी-कभी सुबकने लगती हैं

रेखा गर्ग

अत्यधिक बोझ थका देता है. सड़कों पर अनवरत दौड़ते वाहनों नें भी सड़कों को थका दिया है. रात दिन अपने वक्ष पर असंख्य वाहनो को झेलती ये सड़कें भी कभी-कभी सुबकने लगती हैं. शून्य की परिभाषा से धूमिल होती ये सड़कें सबकों उनके गन्तव्य तक पहुॅचाती हैं. लेकिन तनिक सा विश्राम इनके जीवन में नहीं है. वाहन निरन्तर दौड़ते रहें ये भी स्वीकार है पर उनकी तीव्र गति और लगातार लगते जाम ने इनकी कमर ही तोड़कर रख दी है. जाम की स्थिति से और बढ़ती दुर्घटनाओं से मौत का सन्देश जब घर में पहुॅंचता है तो वहॉं भी हाहाकार मच जाता है.
ये सड़कें बहुत सहती हैं. पर कभी-कभी ये भी टूट जाती है कराह उठती हैं और प्रत्युत्तर में हमें हमारे ही वाहनों के द्वारा दण्ड देकर कुछ क्षण के लिए दर्द की पीड़ा से स्वयं भी छटपटाती हैं. दुर्घटना से घायल हुए अपने प्रिय के रक्त से रंजित होकर यें भी बहुत व्याकुल होती हैं. बड़ी निरीह दृष्टि से सवाल करती हैं. इतनी जल्दी तो ठीक नहीं. तनिक तो ठहरो. कुछ तो रफ्तार कम करों . मेरा सीना इतना तो छलनी ना करो. मुझे भी तो कष्ट होता है पर निरंकुश मानव दण्ड स्वीकार करना मंजूर है लेकिन अपनी रफ्तार कम करना मंजूर नहीं
अपने शौक की खातिर नये-नये वाहनो के प्रयोग से जो जाम की समस्या बढ़ रही है वह चिन्ताजनक है. प्रयास करने पर भी ये समस्या सुलझ नहीं रही है. जाम ने मनुष्य को बहुत प्रभावित कर रखा है. कहीं भी किसी भी जगह जाना हो समय पर पहुॅंचना आज बड़ा कठिन हो गया है. सड़कें पार करना भी असहज हो जाता है. हर वक्त हादसे का डर लगता है.
कभी जिन्दगी शान्ति का पर्याय हुआ करती थी. इतने वाहन देखने तो क्या सुनने में भी नहीं आते थे. इक्के दुक्के लोगों पर ही गाड़ियां हुआ करती थी. लोग सुकून से जीते थे पर आज वाहन ही वाहन दिखाई देते हैं. टकराव की स्थिति बन जाती है. जीना ही मुहाल हो रहा है. बढ़ते वाहन, बढ़ता प्रदूषण और निरन्तर सड़कों के निर्माण की प्रक्रिया सब कुछ जटिल हो रहा है. प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से मानव अपने ही किये आविष्कारों से बहुत जूझ भी रहा है.
आजकल घूमना भी एक फैशन की तरह हो गया है. युवा वर्ग को तो कोई भय ही नहीं रहा. दिन रात किसी भी समय गाड़ी लेकर निकल जाना. शराब पीकर तीव्र गति से वाहन चलाना आम हो गया है. बाइक लेकर जब सड़कों पर चलते हैं तो आसमान से बातें करने लगतें हैं. मौत का तो जैसे डर ही नहीं है. बाइक की सवारी असमय ही तीव्र गति के कारण काल के गाल में धकेल देती है. बहुत जिद करने पर ही तो बेटे को बाइक दिलाई थी. घर से निकलकर ही गया था. किसी अज्ञात वाहन ने टक्कर मार दी. मौत की खबर ने दीपक जी को तोड़ दिया. आज तक अपने को दोषी मानते हैं क्यों बेटे को बाइक दिलाई? बेटा भी बाइक पाकर फूला ना समाया. हवा से बातें करने लगा. पल भर में सब कुछ समाप्त हो गया. जिन्दगी भर के लिए सिर्फ और सिर्फ दर्द रह गया. अचानक ही मौत के मुँह में जिन्दगी का जाना बड़ा कष्टकारी है.
यातायात के नियमों की अवहेलना करना भी जिन्दगी पर भारी पड़ रहा है. सड़कें जिन्दगियां लील रहीं हैं इसलिए इन पर चलने से पूर्व परीक्षा की तैयारी के समान ही स्वयं को समझाकर चलना चाहिए. आजकल हर व्यक्ति गाड़ी में चलना ही अपनी शान समझता है. रात्रि भ्रमण का भी ज्यादा ही दौर आ गया है. रातें नींद के लिए होती हैं पर आजकल रात-दिन का फर्क ही समाप्त हो गया है. किसी भी समय निकल पड़ते हैं. प्रकृति के नियमों की अवहेलना हो रही है. जरा सी झपकी आते ही पूरे परिवार की खुशियां दम तोड़ देती हैं
कभी सड़कों की खामोशियों को सुनने की कोशिश कीजिए. ये बार बार हमें निर्देश देती हैं. मूक होकर भी बहुत समझाती हैं. हमारे आगे बढ़ते कदमों को भी रोक देती हैं. बता देती हैं अभी गुंजाइश नहीं. जगह-जगह संकेत चिह्नों को भी दर्शाती हैं. मार्गदर्शन करती है फिर भी गति के कारण जिन्दगी इनके आगोश में समाप्त हो जाती है. सड़कों का मन भी बहुत रोता है. इनका उद्देश्य हर किसी को उसके गन्तव्य तक पहुॅंचाने का होता है. रास्ता लम्बा हो या छोटा, ये हर कदम पर हमारे साथ रहती हैं पर भाग्य की कुदृष्टि कहें या व्यक्ति का उतावलापन ये व्यक्ति को अन्तिम पड़ाव पर पहुॅंचा देती हैं.
वैसे तो ये सड़कें हमारी बहुत आत्मीय होती हैं. पर हमारे लापरवाह होने पर छिटक कर अलग हो जाती हैं. दूर तक दृष्टि डालो तो हमारे साथ होती हैं. कोई हमारा साथ दे या ना दे ये साथ देती हैं. पर हमारे गलत निर्णय से नाखुश रहती हैं. जिन सड़कों को बना कर, सजाकर, सँवारकर, जिन गाड़ियों में सफर कर हम अपनी प्रगति पर, अपने सपनों को सच होता देखते हैं, वहीं सड़कें हमारी मौत का पयार्य बन जाती हैं.
सड़कों से आता मौत का ये सच बहुत खौफनाक और दर्दनाक है. जो पल भर में जीवन की दिशा को बदल देता है. खुशियों को गम में परिवर्तित कर देता है. सड़कों के साथ सामन्जस्य बनाकर चलना सबके हित में हैं. छोटा बच्चा जब तक मॉंं-पिता का हाथ थामे रहता है स्वयं को सुरक्षित समझता हैं. जब हाथ छुड़ाकर भागता है तो भागता जाता है. पीछे मुड़कर देखना भूल जाता है. जब देखता है तो ठोकर खाकर गिर भी जाता है. ये सड़कें भी बिल्कुल ऐसी ही हैं. हमारा हाथ पकड़े रहती हैं, पर जब हम तेज गति से भागने लगते हैं तो ये विवश हो जाती हैं और फिर अनहोनी हो जाती है. ऐसी अनहोनी की कल्पना तो ये सड़कें भी नहीं करती. अपने और परिवार को सुरक्षित रखने के लिए अनिवार्य रुप से यातायात के नियमों का पालन करना चाहिए. इसलिए समय और सीमा का ध्‍यान रखकर सड़कों से सुरक्षित अपने गन्तव्य तक पहुॅंंचें.


Rani Sahu

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